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झाबुआ

देवझिरी तीर्थ पर श्रावण महीनें में शिव आराधना से होती है मनोकामनायें पूरी~~ श्रद्धा और भक्ति के साथ श्रावण के दुसरे सोमवार को रही भक्तो की भीड।

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देवझिरी तीर्थ पर श्रावण महीनें में शिव आराधना से होती है मनोकामनायें पूरी~~
श्रद्धा और भक्ति के साथ श्रावण के दुसरे सोमवार को रही भक्तो की भीड।

झाबुआ ।  श्रावण का महीना भगवान शिवजी का माह माना जाता हेू, इस महीनें में भगवान शिव की आराधना, पूजा, अर्चना, अभिषेक आदि अनुष्ठान का मानव के जीवन पर सकरात्मक प्रभाव निश्चिात तौर पर पडता है। द्वितीय श्रावण सोमवार होने से निकटवर्ती देवझिरी तीर्थ स्थल पर पूरे श्रावण में जहां देर देर से आये श्रद्धालुओं का तांता लगता है, वही सावण माह के सोमवार का महत्व हुत अधिक माने जाने के कारण वहां श्रद्धालुओं की अथाह भीड अपने आराध्य की पूजा अर्चना के लिये  एकत्रित हुई है ।देवझिरी तीर्थ के बारे में जैसा कि नाम से ही प्रतीत है कि भगवान शिव ओर देवझिरी या एक बारह मासी बसंत । बसंत एक कुंड  में निर्मित किया गया है । एक समाधि वैशाख पूर्णिमा जो अप्रेल के महिनं में आयोजित की जाती है । देवझिरी तीर्थ में भगवान  शिव का भव्य मंदिर चारों तरफ हरियाली युक्त दृश्य और मंदिर प्रागंण में ही एक जल कुंड जहां पिछले कई बरसों से नर्मदा नदी का जल अनवरत प्रवाहित होरहा है । जल का निकास और मार्ग आज तक भक्तों के लिये एक आश्चर्य का विषय है कि यह जल कुंड यहां तक किस मार्ग से  आरहा है । देवझिरी तीर्थ  एक धार्मिक, ऐतिहासिक, पर्यटन और एक चमत्कारिक स्थल जहां भक्तों की सभी मनोकामनाये पूरी होती है ।
ेदेवझिरी के इतिहास के बारे में किवदंती एवं बडे बुजुर्गो के अनुसार देवझिरी तीर्थ में किसी समय संत सिंघा जी महाराज नाम के सन्यासी निवास करते थे । वे प्रतिदिन यहां शिवजी का अभिषेक नर्मदा के जल से किया करते थे । देवझिरी से  लगभग 150 किलोमीटर दूर कोटेश्वर से प्रतिदिन नमर्दा का जल लाना और जल से शिवजी का अभिषेक करना, संत सिंघाजी महाराज की दिन चर्या थी । समय गुजरता गया सिंघाजी वृद्ध हो गये मगर फिर भी उन्होने नर्मदा के जल से शिवजी का अभिषेक बंद नही किया । एक दिन सिंघाजी महाराज के तप और साधना से मां नर्मदा प्रसंन्न हुई और सिंघाजी को साक्षात् दर्शन देते हुए कहा कि मैं व ही आ जाउगी जहां से तुम आते हो । सिंघाजी ने कहा कि मै कैसे मान लू कि आप आयेगंी, नर्मदा जी ने कहा कि तुम्हारा कमंडल यही छोड जाओं ।

सिंघाजी महाराज ने मां नर्मदा की आज्ञानुसार कमण्डल वहां छोड कर देवझिरी आश्रम चले आये । अगले दिन सिंघाजी की निंद ख्ुाली तो देवझिरी में एक छोटे जल स्त्रोत  से निरंतर जल प्रवाहित हो रहा था । साथ ही इस जल स्त्रोत के अंदर सिंघाजी का वह कमंडल जिसे वे नर्मदा नदी पर छोड आये थे, वह भी मौजूद था । इस प्रकार  उस दिन से  देवझिरी तीर्थ पर नर्मदा नदी का जल अनवरत प्रवाहित हो हा है । संत सिंघाजी ने इसी देवझिरी तीर्थ पर समाधी ली । आज भी प्रतिदिनि इस नर्मदा नदी के  जल  से शिवजी का अभिषेक किया जाता है । वर्ष 1934 में झाबुआ के महाराजा ने यहां एक कुंड का निर्माण करवाया । देवझिरी तीर्थ पर झाबुआ जिले के गा्रमीण की विशेष आस्था  है,। झाबुआ से निकलने वाली कावड यात्रा में गा्रमीणो द्वारा कोटेश्वर महादेव से नर्मदा का जल ले जाकर देवझिरी तीर्थ में शिवजी का अभिषेक किया जाता है । देवझिरी तीर्थ में भक्तों की मान्यता है कि यहां प्राचीन काल में एक शेर आया करता था जो देवझिरी कुंड में स्नान करता और फिर शिवजी के दर्शन कर चला जाता था । गा्रमीणो एवं श्रद्धालुओं में  मान्यता है कि आज भी उसी रूप  में है ।
इस प्रकार देवझिरी तीर्थ झाबुआ जिले के साथ ही पूरे प्रदेश में एक अलग महत्वता के साथ ऐसा प्राचीन स्थल, धार्मिकस्थल और पर्यटन स्थान जहां एक बारभगवान शिव के दर्शन करने के उपरान्त ताउम्र इस स्थान की दिव्य छबि सदैव हर भक्त के जहन में बनी रहती है । इन दिनों देवझिरी तीर्थ काशी विश्वनाथ की तरह ही श्रद्धालुओं के लिये आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

 

 

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