जबलपुर के अस्पताल में आगजनी की घटना के बाद नगर निगम आयुक्त अभिषेक गेहलोत ने किया निरीक्षण तो सामने आई पोल
फायर सेफ्टी की एनओसी मांगी तो बगलें झांकने लगे जिम्मेदार, न नगर निगम के अमले को फुर्सत न ही स्वास्थ्य विभाग के कारिंदों को
एसीएन टाइम्स @ रतलाम । जबलपुर के निजी अस्पताल में लगी आग में कई जानें अकाल काल का ग्रास बन गईं। लापरवाही का ऐसा ही आलम रतलाम में भी है। यहां न तो नगर निगम के फायर सेफ्टी विभाग को इसकी पड़ी है और न ही स्वास्थ्य विभाग के कारिंदों को। नतीजतन धरती के भगवान कहने वालों द्वारा संचालित 19 निजी अस्पतालों में मरीजों को आग में झोंकने का सारा इंतजाम है, आग पर काबू पाने का नहीं।
शहर के निजी अस्पतालों की यह पोल सोमवार को तब खुल गई जब अपर कलेक्टर और नगर निगम आयुक्त अभिषेक गेहलोत ने उनकी चहारदीवारी में झांका। इससे पहले न तो नगर निगम ने और न ही स्वास्थ्य विभाग के अमले ने यह जानने का प्रयास किया कि निजी अस्पतालों में नियमों और निर्देशों का पालन हो भी रहा है या नहीं। इससे बेपरवाह अस्पताल संचालक मरीजों की जेब और चांदी काटने में व्यस्त हैं लेकिन मरीजों की सुरक्षा को लेकर संजीदा नहीं हैं। निगम आयुक्त गेहलोत ने शहर 26 अस्पतालों का आकस्मिक निरीक्षण किया लेकिन सिर्फ 7 के पास ही फायर सेफ्टी डिपार्टमेंट की एनओसी मिली। 19 अस्पतालों के संचालक और कर्मचारी एनओसी मांगने पर बगलें झांकते नजर आए।
दरवाजा चौड़ाकर सुविधाजनक बनाने के निर्देश

निगम आयुक्त गेहलोत शास्त्री नगर स्थित रतलाम हॉस्पिटल में फायर सेफ्टी सिस्टम व एनओसी के लिए 3 दिन में ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। इतना ही नहीं बाहर निकलने वाले रास्ते एवं दरवाजे को सुविधाजनक बनाने की हिदायत भी दी। निरीक्षण के दौरान पता चला कि कई अस्पतालों के पास प्रोविजनल फायर एनओसी नहीं है किन्तु इसके लिए प्रबंदन द्वारा कन्सलटेंट से एनओसी प्राप्त करने के लिए पूरी तैयारी करवा ली है। जिन अस्पतालों के पास प्रोविजनल एनओसी नहीं मिली उन्हें 3 दिन की मोहलत ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत करने के लिए दी गई।
नाम बताने से बचते रहे जिम्मेदार
शहर के निजी अस्पतालों का निरीक्षण तो निगम आयुक्त द्वारा किया गया और उसका प्रचार भी हो गया लेकिन किन-किन अस्पतालों को नोटिस जारी हुए, यह जानकारी सार्वजनिक नहीं होने दी गई। इससे लापरवाही बरतने वालों पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, जिम्मेदारों भी सवालों के घेरे में हैं। कहा जा रहा है कि जिम्मदारों द्वारा जानबूझ कर ऐसे अस्पतालों के नाम छिपाए गए हैं। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कौन, किसे बचा रहा है। चर्चा है कि इनमें से ज्यादातर वे अस्पताल हैं जहां कोरोना काल में मरीज को महज बकरा रूपी ग्राहक मानकर ट्रीट किया गया”