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झाबुआ

सामायिक है जीवन कल्याण का माध्यम : समणी डॉ. निर्वाण प्रज्ञा जी

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शुक्रवार को पर्युषण पर्वाधिराज का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में समायोजित हुआ।।

झाबुआ- महातपस्वी, महायशस्वी, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्वाण प्रज्ञा जी व समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के सानिध्य में समाजजन द्वारा पर्युषण महापर्व लक्ष्मी बाई मार्ग स्थित तेरापंथ सभा भवन पर जप, तप और स्वाध्याय के द्वारा मनाया जा रहा है शुक्रवार को पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में समायोजित हुआ।
सुबह करीब 9:00 बजे स्थानीय तेरापंथ सभा भवन पर पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया गया । समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग कराते हुए सर्वप्रथम वंदे अहम , वंदे गुरुवरम , वंदे सच्चम का तीन तीन बार उच्चारण कराने के बाद , सभी श्रावक श्राविकाओ को सामूहिक रुप से सामायिक प्रतिज्ञा करवाई । तत्पश्चात एक लोगस्स का ध्यान करवाया गया । उसके बाद परमेष्ठी वंदना का उच्चारण , नमस्कार महामंत्र का जाप, कायोत्सर्ग साधना , दीर्घ श्वास प्रेक्षा, उपयुक्त स्वाध्याय , त्रिगुप्ति साधना का प्रयोग करवाए । इस प्रकार संपूर्ण एक सामायिक 50 मिनट में यह सभी प्रयोग किए गए और सामायिक दिवस मनाया गया ।
तत्पश्चात समणी डॉ निर्वाण प्रज्ञा जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा- जैन धर्म का महान पर्व पर्युषण महापर्व है । यह पर्व पूर्ण आध्यात्मिक पर्व है ।अन्य पर्वों में खानपान का महत्व होता है किंतु इस पर्व में त्याग, तपस्या ,धर्म श्रवण का विशेष महत्व होता है । इसमें केवल आत्म शुद्धि कैसे हो इस प्रकार की क्रियाओं पर ध्यान दिया जाता है । पर्युषण परि चारो ओर से सीमटकर, वरन एक स्थान पर निवास करना या आत्मा में निवास करना । यह वर्ष में 8 दिन तक, जैन धर्मावलंबी लोग सिनेमा, नाच गाना, रात्रि भोजन जमीकंद इत्यादि का त्याग करते हैं । आत्म शोधन के लिए सामायिक, प्रतिक्रमण, जप ध्यान और स्वाध्याय कर आत्म शुद्धि करते हैं । पर्युषण में किसी को कठोर वचन नहीं बोलना, संपूर्ण प्राणी मात्र के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना, सब जीवों से क्षमायाचना करना । यह पर्व हमें प्रेरणा देता है उपशम भाव का विकास करने की , इंद्रिय संयम की । इन 8 दिनों में प्रभु महावीर के जीवन दर्शन का वर्णन किया जाता है ।. प्रभु ने अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह का मार्गदर्शन देकर शुद्ध धर्म की स्थापना की । समणी जी ने श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए पर्यूषण पर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस, दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया और तीसरा सामायिक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है । उन्होंने यह भी कहा कि सामायिक दिवस पर जितना संभव श्रावक-श्राविकाओं को अधिक से अधिक समायिक करने का प्रयास करना चाहिए। जैन धर्म का एक आधार है समता। सामायिक में समता की साधना समाहित है। यू तो साधु को सामायिक है हीं, किन्तु उसके साथ एक श्रुत सामायिक की बात भी आती है। एक मुहूर्त तक चारित्रात्माएं आगम स्वाध्याय का प्रयास करें , तो वह श्रुत सामायिक हो जाएगी और जो उनके निर्जरा का माध्यम भी बन सकता है। सामायिक तो मानों जीवन कल्याण का माध्यम है।

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