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झाबुआ

संयम मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशस्त करने की आज्ञा प्रदान करने वालो का भी मार्ग प्रशस्त बनता है । – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा.

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झाबुआ । आत्मोद्धार वर्षावास मे 2 सितम्बर शुुक्रवार को विराट धर्मसभा को संबोधित करते हुए पूज्य प्रवर्तक जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ने कहा कि आज दो मुमुक्ष आत्माओं श्री प्रांशुक कांठेड़, तथा श्री अचल श्री श्रीमाल के आज्ञापत्र का प्रसंग है । ठाणांगसूत्र में 8 बातों के लिये जीव को प्रयत्न करने का उल्लेख है । 1- जिस आत्मा ने धर्म को नही सुना, उसे धर्म सुनने के लिये प्रयत्न करना चाहिये । सुने हुए धर्म को सुनकर उसके लिये तत्पर बनना चाहिये । 02- भगवान की वाणी सुनकर प्रयत्न कर लिया, उसमें उपस्थित होने के लिये पुरूषार्थ करना 3- पाप कर्म नही करने के लिये त्याग करने के लिये संयम में उपस्थित होने के लिए प्रयत्न करना चाहिये 4- पुराने कर्म का बंध कर, क्षय करने के लिये तप द्वारा विशुद्धि करने के लिये प्रयत्न करना । 5- जो आत्मा संयम के लिये उद्यत हुए है, उनके परिजनों को धर्म में आगे बढाने, योग्यता को अर्जित करने का प्रयत्न करना । 6- जो संयमी बन गये हे, उनको संयम संबंधी विधि सिखाने के लिये प्रयत्न करना ।7,तपस्वी की, संयमी की आत्मा की सेवा के लिए तत्पर बनना 8- आचार का पालन बराबर करने वाले को कर्म का उदय आ जाए और परस्पर में कलह हो जाए तो उनको शांत बनाना ।थोड़े कलह केसे मिटे उसके लिये प्रयत्न करना ।

आपने आगे कहा कि आज दो मुमुक्षु आत्माओं का संयम पथ पर पहला कदम रखने का आज्ञा-पत्र परिवार जन प्रस्तुत कर रहे हे । आज परिवार जन ही नही सारा नगर, सगे संबंधी, पडौसी मित्र और सारा धर्मदास गण हर्ष मना रहा हे । संयम मार्ग पर आगे बढने के लिये मार्ग प्रशस्त करने की आज्ञा प्रदान जो करते है,उनका भी मार्ग प्रशस्त बनता है । यह मार्ग तीर्थंकर भगवान ने बताया, स्वयं ने इसे अपना कर आत्म कल्याण किया । यह मार्ग सुख का मार्ग है, यहां पर किसी भी प्रकार का दुःख नही है ।यह वितराग का मार्ग है, सर्वज्ञों का मार्ग हे ’’ एकांत सुख’’ प्रदान करने का मार्ग हे । इस भव पूर्व भव मे ऐसी भावना भाई हो ,तो इस मार्ग पर चलने का मन होता हे । जो आज्ञा देता हे, वह अपना संसार अल्प करता है, दूसरे का मार्ग प्रशस्त करता हे । ऐसी आत्मा के परिवार में पहले की अपेक्षा धर्म की अभिवृद्धि अधिक होती हे । आज भी इस गण मे कई आत्माओं, कई परिवारों के सभी सदस्यों द्वारा संयम ग्रहण किया हे । इस पांचवें आरे में आचार्य पुज्य उमेशमुनिजी म.सा. की कृपा बरस रही है, धर्म की अभिवृद्धि हो रही है, मोक्ष मार्ग पर चलने में अभिवृद्धि होना बहुत बडी बात हे । दोनो मुमुक्षों की माता की कोख धन्य हो गई है । परिवार जनों, रिश्तेदारों का रोम रोम आज पुलकित हो रहा हे । वेसे तो परिवारों मेे राग के बाजे तो खुब बजते है, परन्तु ऐसा प्रसंग आता है, तब विराग के बाजे बजते हे । हलुकर्मी आत्मा को सर्वाधिक प्रसन्नता होती हे । मोह का त्याग करना आसान बात नही है । आज बडी संख्या में श्रावक श्राविका अनुमोदना करने के लिये आए हे । हमारा भी मन हो, हम भी इस मार्ग पर चले , ऐसी भावना होना चाहिए। श्रावक का मनोरथ भी है कि ’’ कब मैं आरंभ, परिग्रह का त्याग कर मुण्डित होकर प्रवज्या अंगीकार करूंगा । वह दिन मेरा धन्य एवं परम कल्याणकारी होगा । ऐसी भावना भाने से दीक्षा की अंतराय टूटती है ।
संसार छोड़कर संयम ग्रहण करने वाला कायर नहीं शूरवीर है ।पुज्य संयत मुनिजी म.सा.। धर्मसभा में अणुवत्स पुज्य संयत मुनिजी म.सा. ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी जी की 28 वर्ष की उम्र पूर्ण होने पर उनकी यह प्रतिज्ञा पूर्ण हुई कि माता-पिता जब तक रहेगें तब तक दीक्षा नही लुंगा । भाई नंदीवर्धन जी से आज्ञा मांगी, कुछ समय रूकने का कहा । 2 साल बाद दीक्षा ली । हमारे हृदय में भी दीक्षा के भाव आए तो देर नही करना । संसार नश्वर है, भौतिक सुख में सुख नही हेै । भौेतिक सुख को धक्का मार कर भगवान दीक्षित हुए । संसार में रहने की अपेक्षा संयम मे रहना अच्छा हेै । वास्तविक सुख का मार्ग संयम का मार्ग है । ’भौतिक सुख की जगह आत्मिक सुख श्रेष्ठ है ।  सभी के भाव यह होना चाहिये कि मेरा वह दिन धन्य होगा जब मैं आगार भाव से अणगार बनुगा । ।’’ संसार में वास अधोगति की दीक्षा है, संयम में वास उर्ध्वगति की दीक्षा है ।’’ संयमी आत्मा को देखकर संयम की भावना आना चाहिए । जीव ने संसार में वास अधिक किया है, संयम में कम किया है, मोह संयम लेने से अटका रहा हे । 5 वे आरे में संयम पालना मुश्किल हे , ऐसा नहीं हे । कर्म हल्के होने पर संयम के भाव आते हे । संसार में कुछ व्यक्ति यह भी कहते है कि संसार को छोड कर भाग रहा है, कायर हे । पर वास्तव में ’’ संसार छोड कर संयम ग्रहण करने वाला कायर नही शुरवीर है । ।’’ वक्र चिंतन, वक्र बुद्धि होगी तो वक्रता रहेगी । यही चिंतन होगा तो आगे रहेगा । जीव को संसार का अभ्यास ज्यादा है, छूटता नही हे । धन्य है उन महापुरूषों को जिन्होने संसार छोड कर अपनी आत्मा का कल्याण किया, धन्य है जो संयम मार्ग पर बढते हैे । कर्म बंध तथा कर्म निर्जरा दोनो के लियेे आज्ञा प्रदान की जाती हे । शादी के लिये, विदेश जाने, घुमने फिरने, मकान बनाने की आज्ञा दी जाती है यह कर्म बंध की आज्ञा है ।संयम पर जाने की आज्ञा देना कर्म निर्जरा की आज्ञा है । पूज्य गुरूदेव की कृपा से यह गण फल फुल रहा हे । आज होनहार, युवावर्ग द्वारा गण की शोभा आज्ञापत्र के माध्यम से बढ़ रही हे । आज होनहार कमाउ पुत्र को दीक्षा की आज्ञा प्रदान करने वाले धन्य हे । अपने कलेजे के टुकड़े को जिन शासन को समर्पित कर हर्ष, उल्लास मना रहे हे । मुमुक्ष आत्मा संयम की ओर एक कदम बढा रहे हे । आपने कहा कि मुमुक्ष आत्मा अनंत सुख प्राप्त करे, यही मंगल कामना है ।
धर्मसभा में मुमुक्ष श्री प्रांशुक जी कांठेड के पुज्य पिताजी श्री राकेश जी कांठेड ने अत्यन्त ही भावुक होकर अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे बेटे ने कहा था कि पिताजी संसार में पाप ही पाप है, व्यक्ति धन के पीछे भाग रहा है, मैं संसार छोडना चाहता हूं, जीव से जिन बनने का मार्ग संयम है, मेरे इस निर्णय को परिवार जन मान्य करें । 13 वर्ष पहले आज्ञा मांगी थी, वह, आज वह आज्ञा मूर्त रूप ले रही है । श्री अंचल जी श्रीश्रीमाल जो कि नागदा धार के निवासी है, वहां के श्री संघ अध्यक्ष सुनील जी चौधरी ने विचार व्यक्त करते हुए नागदा धार मे दीक्षा कार्यक्रम सम्पन्न हो, ऐसी विनती प्रवर्तक श्रीजी से की । श्री उमेश जी कांठेड ने श्री प्रांशुक जी तथा श्री अंकीत पारेवाल ने श्री अचलजी के आज्ञापत्र का वाचन किया । दोनो मुमुक्ष का आज्ञा पत्र परिवार जन ने प्रवर्तक श्रीजी को सौपा आज बडी संख्या मे नागदा धार हाटपिपल्या इन्दोर, मेघनगर एवं अन्य शहरों, नगरों से श्रावक श्राविका दर्शनार्थ पधारे । दोनो मुमुक्षों की जयकार यात्रा नगर से होती हुई बावन जिनालय में आचार्य पुज्य नित्यसेनसूरिजी एवं साधुमंडल से आशीर्वाद प्राप्त किया ।

धर्मसभा में श्रीमती भीनी कटकानी ने 31 उपवास, श्री सुधीर रूनवाल ने 22, कु.सोनिका बरवेटा ने 17, श्रीमती सीमा व्होरा ने 16, कु.आयुषी घोडावत ने 11 श्री संजयगांधी, श्रीमती सीमा गांधी ने 10 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । पूरे प्रवचन का लेखन सुभाषचन्द्र ललवानी द्वारा किया गया । सभा का भावपुर्ण सुंदर शब्दों के माध्यम संचालन श्री संजय जी मुणत तथा श्री प्रदीप जी रुनवाल ने किया

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