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झाबुआ

यदि जीवन में संत नहीं बन सकते, तो संतोषी बन जाओ, संतोष और शांति दुनिया का सबसे बड़ा धन -ः आचार्य पं. अनुपानंदजी,

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यदि जीवन में संत नहीं बन सकते, तो संतोषी बन जाओ, संतोष और शांति दुनिया का सबसे बड़ा धन -ः आचार्य पं. अनुपानंदजी, कथा के अंतिम दिवस श्री कृष्ण और सुदामाजी की प्रगाढ़ मित्रता प्रसंग पर भक्तजन हुए भाव-विभोर
कथा की विश्रांति पर शहर में निकाली गई भव्य शोभायात्रा, जगह-जगह हुआ भव्य स्वागत-सत्कार
झाबुआ। मनुष्य स्वयं को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देखकर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है, तो वह सब कुछ छोड़कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते है। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जबकि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष और शांति मनुष्य जीवन का अनुपम गहना है।
उक्त प्रेरणादायी प्रवचन शहर के श्री विश्व शांति नवग्रह शनि मंदिर परिसर में श्री पद्मवंशीय मेवाडा राठौर (तेली) समाज द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन व्यास पीठ से श्रीमद् भागवत कथा के सरस प्रवक्ता कानपुर, उत्तरप्रदेश से पधारे आचार्य पं. अनुपानंदजी महाराज ने दिए। कथा की विश्रांति पर बैंड-बाजों के साथ शहर में भागवत पौथीजी के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई। श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन भगवान श्री कृष्ण एवं उनके बाल सखा सुदामाजी के चरित्र का वर्णन कथा वाचक पं. अनुपानंदजी महाराज ने बखूबी किया।
सच्ची मित्रता में पैसा आड़े नहीं आता
इस दौरान आपने श्री कृष्ण एवं सुदामाजी की मित्रता के बारे में बताते हुए कहा कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार मूरली मनोहर दौड़ते हुए दरवाजे तक उनसे मिलने गए थे। श्रीकृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए कि द्वारिका के नाथ हाथ जोड़कर और जल भरे नेत्र लिए सुदामा का हालचाल पूछने लगे। आचार्य श्री ने बताया कि इस प्रसंग से हम यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती। पं. अनुपानंदजी ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
भगवान श्री कृष्ण सभी के ह्रदय में है विराजमान
आपने कहा कि सुदामाजी की मित्रता भगवान के साथ निःस्वार्थ थी, उन्होने कभी उनसे सुख-साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए कच्चे चावलों ने भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भागवतजी के अंतिम दिवस कथा में सुदामा चरित्र का वाचन हुआ, तो इस दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं की आंखो से प्रगाढ़ मित्रता के भाव-भरे पलों को सुनकर नेत्रों सेे अश्रु बहने लगे। भगवताचार्य ने कहा कि मथुरा और वृंदवन में निवास करने वाले सांवरिया सेठ भक्त वत्सल हैं, वह सभी के दिलों में विराजते है, जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की।
गोलानिया परिवार ने की आरती
कथा के सातवें दिन के लाभार्थी शंकरलाल टेकचंदजी गोलानिया परिवार द्वारा भागवतजी की आरती की गई। इससे पूर्व आयोजन समिति की और से लाभार्थी शंकरलाल गोलानिया परिवार का पुष्पमाला, शाल- श्रीफल एवं साफा बांधकर बहुमान किया गया।
लाभार्थी परिवारों का किया गया सम्मान
श्री पद्मवंशीय मेवाडा राठौर तेली समाज द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन राठौर समाज के पदाधिकारियों द्वारा कथावाचक आचार्य पं. अनुपानंदजी का पुष्पमाला, शाल, श्रीफल एवं साफा बांधकर अभिनंदन किया गया। पश्चात् सात दिवसीय कथा में भोजन प्रसादी के लाभार्थी परिवारों में रामनाथ देवचंदजी झरवार, शांतिबाई सागरमल मावर, रणछोडलाल गुलाबचंदजी सोनावा, सत्यनारायण कन्हैयालालजी सोनावा, रामचंद्र कचरूजी गोलानिया, मुकेश मदनलालजी रोजा एवं शंकरलाल टेकचंदजी गोलानिया का समाज अध्यक्ष रामचंद्र चांदमलजी गोलानिया ने पुष्पमाला पहनाकर एवं स्मृति चिन्ह के रूप में राधा-कृष्ण भगवान की सुंदर तस्वीर भेंट कर सम्मान किया गया।
बैंड-बाजों के साथ निकाली शोभायात्रा, बड़ी संख्या में समाजजन हुए शामिल
लाभार्थी परिवारों के अभिनंदन समारोह के बाद शनि मंदिर परिसर से बैंड-बाजों के साथ भागवत पौथीजी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली गई। जिसमें आगे पुरूष वर्ग और पीछे ढोल पर नृत्य करते हुए युवतियां और महिलाएं चल रही थी। इनके पीछे सु-सज्जित रथ में भगवताचार्य सरस प्रवक्ता पं. अनुपानंदजी विराजमान रहे। जिनका यात्रा मार्ग में विभिन्न समाज के लोगों ने पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया। शोभायात्रा सिद्वेश्वर महादेव मंदिर के प्रवेश द्वार से आरंभ होकर थांदला गेट, लक्ष्मीबाई मार्ग, राजवाडा, श्री गौवर्धननाथ मंदिर तिराहा, आजाद चौक, बाबेल चौराहा, थांदला गेट होते हुए पुनः शनि मंदिर पहुंची। जहां यात्रा का समापन हुआ।
आयोजक समिति ने माना आभार
इस बीच जगह-जगह भक्तजनों द्वारा भागवत पौथीजी कोे सिर पर उठाकर चलने में अत्यधिक उत्साह के साथ यात्रा में शामिल सभीजनों पर पुष्पवर्षा की गई। विभिन्न संस्थाओं और समाज के युवाजनों की ओर से आईस्क्रीम, फ्रुटी आदि का वितरण किया गया। आयोजक समिति ने सात दिवसीय संगीतमय, समुधर श्रीमद् भागवत कथा को सफल बनाने हेतु श्री पद्म वंशीय मेवाड़ा राठौर ‘तेली’ समाज के साथ समस्त भक्तजनों और सभी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त किया है।

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