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झाबुआ

क्या सीएम साहब की नजर इस बार जनजातीय कार्य विभाग और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर पड़ेगी…..

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झाबुआ – प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने विगत सप्ताह पेटलावद सभा के दौरान मिली शिकायतों के आधार पर झाबुआ तत्कालीन कलेक्टर सोमेश मिश्रा को हटाकर स्थानांतरित कर दिया था । इसके अलावा उसके कुछ दिन पूर्व ही पॉलिटेक्निक कॉलेज के 2 गुटो के आपसी विवाद में अमर्यादित शब्दों का प्रयोग करने पर झाबुआ एसपी को निलंबित किया था । इसके पश्चात नवागत कलेक्टर रजनीसिंह ने भी झाबुआ एसडीएम को स्थानांतरित किया । इस प्रकार जिले में प्रशासनिक सर्जरी का दौर शुरू हुआ है । वहीं यदि हम बात करें झाबुआ के सहायक आयुक्त कार्यालय या जनजाति कार्य विभाग और स्वास्थ्य विभाग की तो इन विभागों में भी विभागीय अधिकारी और कर्मचारी द्वारा मनमाने तौर पर कार्य किए जा रहे हैं और जो राशि जिले की जनता की भलाई के लिए लगाई जानी चाहिए । वह राशि उनके निजी आर्थिक विकास के लिए लगाई जा रही है । इन विभागों में कई बाबू विगत कई वर्षों से जमे हुए हैं । यदि हम बात करें स्वास्थ्य विभाग की तो कोरोना काल में बस टिकट का घोटाला के अलावा सामग्री खरीदी घोटाला, अटैचमेंट पर मलाईदार पद पर बैठा बाबू मनीष की मनमानी कार्यशैली और आर्थिक विकास की कहानी । अटैचमेंट के नाम पर कार्यरत बाबू मनीष वाहन अटैचमेंट से लेकर सामग्री की खरीदी करना तथा अन्य खरीदी के लिए अपने खास ठेकेदारों को बाहर से बुलाकर काम देना । जिले में किसी से छुपा नहीं है । इस विभाग के 6 और लेखापाल ने लूट सको तो लूट लो की तर्ज पर जिले में कार्य किया है और आर्थिक विकास किया है । इस विभाग में अटैचमेंट प्रथा जोर शोर से कार्य कर रही है और हर कर्मचारी अपने मूल स्थान पर काम करने के बजाय अटैचमेंट पर कार्य कर रहा है । यदि हम बात करें सहायक आयुक्त कार्यालय की तो इस विभाग में भी कई बाबू वर्षों से जमे हुए हैं और अपनी मनमानी कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं वहीं सूत्रों के अनुसार इस विभाग के अधिकारी या कर्मचारी का रिश्तेदार द्वारा सामग्री सप्लाई का कार्य किया जाता है तथा यह सामग्री बाजार भाव से अधिक या दुगूने दरों में खरीदी की जा रही है । यदि हम बात करें विभागीय सूत्रों की तो विगत माह में ही इस विभाग द्वारा जिले के कई छात्रावासो हेतु टीवी खरीदी संभवत की गई थी । जिसमें विभाग के किसी अधिकारी या कर्मचारी का रिश्तेदार द्वारा टीवी या एलईडी विभिन्न छात्रावासों में प्रदान की गई और भुगतान लिया गया है । क्या इस तरह की खरीदी के लिए कोई निविदा प्रक्रिया अपनाई गई है या नहीं यह जांच का विषय है । यदि हमारी सूत्रों की मानें तो इस विभाग द्वारा संभवतः.टीसीएल कंपनी की एलईडी खरीदी है जो कि संभवत बाजार में 13 से ₹15000 में उपलब्ध है और उसके बिल करीब ₹29000 के लगाए गए हैं और भुगतान किया गया है । यदि इसकी जांच की जाए तो उसका खुलासा हो सकता है । यदि यह मान लिया जाए कि सप्लायर सहायक आयुक्त कार्यालय के किसी अधिकारी या कर्मचारी का रिश्तेदार है तो यह खरीदी अंतर्गत विभागीय अधिकारी / कर्मचारी पर लाभ का पद माना जाएगा और इसके तहत जिला प्रशासन द्वारा कारवाई भी की जाना चाहिए । इसके अलावा और भी कई खरीदी है जो इस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी द्वारा मनमाने तौर पर की जा रही है और शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है । आखिर क्या कारण है कि विगत कई वर्षों से जनजाति कार्य विभाग का अधिकारी / कर्मचारी जिले में लंबे समय से जमे हुए हैं । सूत्रों के अनुसार इस विभाग में जमे रहने के लिए भोपाल में किसी रिचार्ज टोकन की बात कही । आखिर क्या है यह रिचार्ज टोकन । सीएम साहब आज झाबुआ सभा जनसभा के लिए आ रहे हैं । क्या सीएम साहब जिले में इन दो विभागों की मनमानी कार्यशैली के लिए कोई दिशा निर्देश देंगे या फिर यह दोनो विभाग यूं ही मनमाने तौर पर कार्य करते रहेंगे….?

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