हेमंत भट्ट रतलाम, । शनिवार का दिन रतलाम की भाजपा और कांग्रेस पार्टी के लिए संकट बनकर सामने आया है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं सहित अन्य को न्यायालय ने 6-6 और 7-7 साल की सजा सुनाई। मुद्दे की बात यह है कि पार्टी नेताओं को 2 साल से अधिक की सजा मिली है इसलिए खास बात यह है कि क्या वे भविष्य में जनप्रतिनिधि बनने का या बने रहने का सपना पूरा कर पाएंगे?
शनिवार को जैसे ही न्यायालय में एक दशक पुराने प्रकरण में दो पक्षों के पार्टी नेताओं को सजा सुनाई तो राजनीति क्षेत्र में मानो खलबली मच गई। एक भाजपा के दिग्गज सर्वाधिक मतों से पार्षद की जीत हासिल करने वाले भगत सिंह भदोरिया हैं तो दूसरे कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी मयंक जाट हैं जिन्होंने नगर निगम चुनाव में अपनी खासी उम्मीदवारी जताते हुए भाजपा को नाकों चने चबा दिए। वही एक व्यक्ति भाजपा के खेल प्रकोष्ठ के प्रदेश सह संयोजक जितेंद्र भारद्वाज भी हैं, जिन्हें सजा मिली है। खैर अब मुद्दा यह है कि राजनीति में दखल रखने वाले क्या जनप्रतिनिधि बनने का सपना पूरा कर पाएंगे?। कानून विदों तो मानना है कि ऐसा अब संभव नहीं है।
वरिष्ठ अभिभाषक एवं लोक अभियोजक विमल छिपानी का मानना है कि जब किसी आपराधिक प्रकरण में 2 साल से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो फिर मुद्दा गंभीर बन जाता है।
इन्हे मिली 7 वर्ष सजा
⚫ भाजपा नेता पार्षद भगतसिंह पिता सुरेशसिंह भदौरिया (52) निवासी सैलाना यार्ड।
⚫ शरद पिता मोहनलाल भाटी (40) निवासी महेशनगर।
⚫ रवि पिता रमेशचंद्र मीणा (29) निवासी नयागांव।
⚫ रितेशनाथ पिता वीरेंद्रनाथ (45) निवासी 80 फीट रोड को 7 वर्ष की सजा मिली।
इन्हे मिली 6 वर्ष सजा
⚫ कांग्रेस नेता मयंक पिता दौलत राम जाट (31) निवासी अखंडज्ञान आश्रम (सैलाना बस स्टैंड)।
⚫ योगेंद्र सिंह पिता लोचनसिंह तोमर (30) निवासी आनंद विहार।
⚫ किशोर सिंह पिता मनोहर सिंह चौहान (31) निवासी शक्तिनगर।
⚫ अमित पिता सुरेंद्र जायसवाल (42) निवासी फ्रीगंज रोड।
⚫ ऋषि पिता विजेंद्र जायसवाल (35) निवासी फ्रीगंज रोड।
⚫ यतेंद्र पिता विश्वकांत भारद्वाज (38) निवासी इंद्रानगर।
⚫ भूपेश पिता जगदीश नेगी (32) निवासी महेशनगर को 6 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।
सजा के बाद यह है प्रावधान
जनप्रतिनिधित्व एक्ट के तहत जिन्हें 2 साल से अधिक की सजा दी गई है, वह कभी भी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। इसके साथ ही जो निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं, और उन्हें 2 वर्ष से अधिक की सजा न्यायालय द्वारा दी जाती है, तो उसकी जानकारी कलेक्टर द्वारा संभागायुक्त को दी जाएगी। संभागायुक्त द्वारा निर्वाचन आयोग को निर्वाचित जनप्रतिनिधि को मिली सजा की जानकारी दी जाएगी। तत्पश्चात निर्वाचित जनप्रतिनिधि का चुनाव निरस्त कर दिया जाएगा।
तो संभव है ऐसा
अभिभाषक सतीश त्रिपाठी का कहना है कि रिप्रेजेंटेंशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 8 (1) और 8 (2) के मुताबिक जहां सजायाफ्ता को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिए जाने की बात की गई है। वहीं 8 (3) में इसे दो साल या इससे ज्यादा सजा होने पर व्यक्ति विशेष को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिए जाने की बात कही गई है। आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होती है और अगर उसकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जाती है तो ऐसा व्यक्ति जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव लड़ने के अयोग्य है।
यदि करते हैं दोनों पक्ष समझौता तो
अभी तो जिला न्यायालय से सजा मिली है यदि दोनों पक्ष हाईकोर्ट में समझौता कर लेते हैं, तो सजा निरस्त हो सकती है। तो फिर उनके लिए चुनाव लड़ने के रास्ते साफ हो सकते हैं। बस शर्त है, इसमें हाई कोर्ट क्या निर्णय देता है।
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