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झाबुआ

मकर संक्रांति- एक त्योहार के साथ-साथ एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण- मनोज अरोरा

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झाबुआ । हमारा भारत पर्वों एवं त्योहारों का देश है। यहाँ कोई भी महीना ऐसा नहीं होता जिसमें कोई न कोई त्यौहार न आता हो, इसीलिए अपने देश के लिए यह बात कही जाती है कि सदा दीवाली साल भर, सातों बार त्यौहार। इन्हीं त्यौहारों में मकर संक्रांति भी है, जो एक त्योहार के साथ-साथ एक वैज्ञानिक आधार भी रखता है । उक्त बात भाजपा स्वयंसेवी प्रकोष्ठ के जिला संयोजक मनोज अरोरा ने कहते हुए बताया कि यह पर्व प्रगति का पर्व माना जाता है ।
श्री अरोरा ने बताया कि गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण का महत्व स्पष्ट किया गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे भरतश्रेष्ठ जो व्यक्ति दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं, पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है। जो योगी रात के अंधेरे में, कृष्ण पक्ष में, धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्रलोक में जाकर पुनः जन्म लेते हैं। वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुनरू जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुनरू जन्म लेता है। यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमशः सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है। संभवतः सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है और सूर्य की यह उत्तरायण स्थिति चूँकि मकर संक्रांति से ही प्रारंभ होती है, यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने का प्रावधान है और इसे प्रगति का पर्व माना गया है।
हम लोगों में से बहुत कम लोग जानते है कि मकर संक्रांति का त्योहार क्यों मनाया जाता है और वह भी हर साल 14 जनवरी को ही क्यों? ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक जैसी नहीं रहती है। हमारी पृथ्वी सदैव घूमती रहती है। यहाँ पृथ्वी के घूमने से तात्पर्य पृथ्वी का अपने अक्ष पर भ्रमण से है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर घूमने के कारण दिन-रात होते है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सू सूर्य के सामने नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है। किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अतः मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को ही मनायी जाती है। किन्तु इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जावेगा ।
उन्होने कहा कि शास्त्र विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय ज्योतिष पद्धति में मकर राशि का प्रतीक घड़ियाल को माना गया है जिसका सिर एक हिरण जैसा होता है, हिंदू धर्म में मकर (घड़ियाल) को एक पवित्र पशु माना जाता है । मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है। इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है। चूँकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है । यही कारण है कि मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाने की व्यवस्था हमारे भारतीय मनीषियों द्वारा की गई है।
श्री अरोरा ने सभी को मकर संक्राति पर्व की बधाईयां दी है ।

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