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मंदिरों में भजन कीर्तन के कार्यक्रम शुरू:होली का डांडा रोपण के साथ मस्ती भरे त्योहार की शुरु, पूर्णिमा पर रोपा होली का डांडा रतलाम

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मंदिरों में भजन कीर्तन के कार्यक्रम शुरू:होली का डांडा रोपण के साथ मस्ती भरे त्योहार की शुरु, पूर्णिमा पर रोपा होली का डांडा

रतलाम~~डांडा रोपण पूर्णिमा रविवार को मनाई गई। होली का डांडा रोपण के साथ मस्ती भरे त्योहार की शुरुआत हो गई है। फाल्गुन माह शुरू होते ही देवालयों में धार्मिक संस्थाओं, गांवों-शहरों में फागोत्सव शुरू हो जाएगा। फाल्गुन के साथ मंदिरों में श्रद्धालु अबीर, गुलाल व फूलों के साथ ठाकुर जी के संग होली खेलना शुरू कर देते हैं, जो पूरे माह चलता है। मंदिरों में भजन कीर्तन के कार्यक्रम भी शुरू होंगे।

शास्त्रों में माघ मास की पूर्णिमा की बड़ी महिमा बताई गई है। माघ मास की पूर्णिमा को डांडा रोपणी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। होली पर्व के तहत इसी पूर्णिमा पर सर्वप्रथम डांडा होली हेतु खोजकर गाड़ा जाता है तथा होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। माघ मास की पूर्णिमा पर होली की डूंड के बाद फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन होली उत्सव धुलेंडी मनाई जाती हैं।

रविवार को डांडा रोपण पूर्णिमा होने पर सुबह से ही भक्तों की मंदिरों में आवाजाही ज्यादा रही, वहीं दान-पुण्य करने के साथ ही गोशाला में गो सेवा भी की। पहले डांडा रोपण पूर्णिमा के साथ ही होली का त्योहार पूरे महीने मनाया जाता था। अब त्योहार 2 दिन का रह गया है। फाल्गुन माह सोमवार से शुरू हो जाएगा।

अंचल में विशेष कर आदिवासी क्षेत्रों में फाल्गुन माह लगते ही त्योहार के धूम शुरू हो जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरा के अनुसार जिस स्थान पर होली दहन होता है, वहां बड़ा डंडा लगाया जाता है, जो भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है। होलिका दहन से ठीक पहले इसे सुरक्षित निकाल लिया जाता है। होली का डांडा एक महीने पूर्व माघ शुक्ल पूर्णिमा रविवार को रोपा गया। पूर्णिमा पर अधिकांश घरों में व्रत-उपवास कर भगवान सत्यनारायण की कथा कर आरती की और प्रसादी बांटी गई।

कुछ ग्रामीण अंचलों में पारंपरिक नियम और परंपरा के अनुसार डांडा रोपण पूर्णिमा से लेकर होली दहन पर्यंत तक इस मध्य किसी भी प्रकार के बड़े मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, लेकिन शास्त्र नियम अनुसार इस मध्य सभी मांगलिक कार्य मुहूर्त विशेष अनुरूप किए जा सकते हैं। शास्त्र नियम अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत अवधि के (होलाष्टक) इस मध्य विशेष तौर पर किसी भी बड़े मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं। इस मर्तबा होलाष्टक 27 फरवरी से शुरू हो जाएगा जो 7 मार्च को समाप्त होगा। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यन्त अवधि को होलाष्टक कहा जाता है।

डांडा रोपने के बाद कुछ राज्यों में मांगलिक कार्य निषेध माने गए

दाण्डारोपणी पूर्णिमा के अगले दिन से फाल्गुन मास शुरू हो जाता है। इस बार फाल्गुन मास का आरंभ 6 फरवरी से हो रहा है जो 7 मार्च को पूर्ण होगा। सिद्धविजय पंचांग के अनुसार इसमें विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए विपाशा अमरावती तथा शतद्रु नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में त्रिपुष्कर प्रदेशों ( पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व राजस्थान आदि ) में निषिद्ध हैं, कुछ विद्वानों के मतानुसार अन्य क्षेत्रों ( मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र आदि ) में प्रायः होलाष्टक वर्जित नहीं माना गया है। पंडित संजय शिवशंकर दवे, ज्योतिषी

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