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झाबुआ

पंचपुष्प शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन दुगुने हुए श्रोता

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कोटेश्वर धाम (जन समाचार डेस्क से वत्सल आचार्य ) प्रसिद्ध कोटेश्वर महादेव मंदिर परिसर में आयोजित श्री पंचपुष्प शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन शनिवार श्रोताओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई। इनमें 80 प्रतिशत से अधिक तादाद महिलाओं की थी। जिन्होंने भाव विभोर होकर रसमयी कथा का आनंद लिया।
स्व. शिव कुमार सिसोदिया एवं ओमप्रकाश पांडे की स्मृति में आयोजित पांच दिवसीय संगीतमय कथा की शुरुआत में जब पंडित मिश्रा ने वर्तमान हालातों में घर घर की कहानी की चर्चा की तो असंख्य महिलाएं सुबकने लगी और उनकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली। आपने पंचपुष्प के अंतर्गत आज केतकी फूल की चर्चा की और बताया कि यह फूल महादेव को क्यों नहीं चढ़ाया जाता है, और चढ़ाने पर कितना बड़ा दोष लगता है।
आपने कथा के दौरान कहा कि हम पर भक्ति का रंग तभी चढ़ता है जब मुक्ति की चाहत रहती है। यदि भक्ति पर विश्वास बढ़ता है तो यह माना जाना चाहिए कि हम पर परमात्मा की कृपा अवश्य है। आपने कहा कि श्रोता तपती धूप में यहां सुबह से आकर बैठते हैं तो कथा को अपने दिल में
बिठाना चाहिए तभी इसका पुण्य मिलेगा। कई बार अच्छा कार्य करते हुए भी हमारे मन में अहम का भाव पैदा हो जाता है। इसे दूर रखने के लिए सत्कर्म करना जरूरी है और जो करते हैं उसका अभिमान नहीं करना चाहिए।
कथा प्रारंभ के पूर्व शरद सिंह सिसोदिया एवं परिजनों ने पांडाल भ्रमण कर श्रोताओं का अभिवादन किया। कथा वाचक पंडित मिश्रा ने आगे कहा कि
फूलों के बारे में हमें जो अच्छा लगता है उसे तोड़ कर अपने पास रखते हैं और मृत्यु लोक में भगवान शिव को जो पुष्प अच्छा लगता है अपने पास रख लेते हैं। हम महादेव को एक लोटा जल चढ़ाने मंदिर जाते हैं पर यह समझना चाहिए कि महादेव बुलाते हैं तभी हम वहां जा पाते हैं। उनकी कृपा होना जरूरी है।
आपने कहा कि अर्जुन से यह बात सीखना चाहिए कि हमें जीवन में कोई भी प्रबल निर्णय लेकर बाकी निर्णय भोलेनाथ पर छोड़ देना चाहिए। अर्जुन ने बड़ा निर्णय लेते हुए कहा था कि मुझे कृष्ण चाहिए। जब कृष्ण अर्जुन के हो गए तो फिर बाकी तमाम निर्णय कृष्ण ने लिए। आपने भगवान को अपना बना लिया तो फिर बाकी निर्णय उस पर छोड़ देना चाहिए।
कभी माता-पिता, गुरु, संत सन्यासी का शीश नहीं उनके चरणों को देखा जाता है। जिसने इनके चरणों को पकड़ लिया समझो वह भवसागर पार हो गया। जो बड़ों की बात मान लेता है वह एक दिन बड़ा बन जाता है। इसी तारतम्य में आपने कहा कि आज घर में बहू को सास ससुर की बात बुरी लगती है और पड़ोसन की कही बात अच्छी लगती है। घर के बड़ों की बात मानने लग जाओगे तो छोटे नहीं रहोगे। दूसरों की बात मान लेते हैं पर अपनों की बात नहीं मानते। यह बड़ी विडंबना है। हम घर के बुजुर्गों से बात नहीं करते। पास बैठकर खाना नहीं खिलाते हैं। जबकि वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गों से बात करते हैं। उन्हें खाना खिलाकर फोटो खिंचवाते हैं। जरूरी है कि वहां जाने से पहले घर के बुजुर्गों के पास बैठ जाना सीख जाओ। वे तुम्हारा इंतजार करते हैं कि मेरा बेटा 5 मिनट मेरे पास बैठकर दिल की बात करेगा। आज प्रत्येक घर के युवक, बहू बेटा घर के बुजुर्गों का आदर करना सीख जाए तो वृद्धाश्रम की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। साधु सन्यासी का चोला पहनकर ढोंग की जिंदगी जीने से अच्छा है कि ढंग की जिंदगी जीना सीख जाए तो किसी को भी शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।
करीब 2 घंटे की कथा में आपने अपार हर्ष ध्वनि के बीच कहा कि तुमने जो प्रॉपर्टी बनाई है वह यहीं छूट जाएगी। साथ में केवल यही जाएगा कि किसे एक गिलास पानी पिलाया। किस जरूरतमंद की मदद की। सत्संग में शामिल हुए। आपने समझाइश दी कि अपने परिवार के साथ रहो और घर का भोजन व घर का दरवाजा कभी मत छोड़ना। परिवार में किससे कितना भी झगड़ा हो जाए, आधे घंटे बाद फिर अम्मा के पास पहुंच जाओ और चाय बनाकर पियो। हम घर क्यों छोड़े यह निर्णय लेना है।
आपने वाणी बोलते समय संयम बरतने की भी सलाह दी। कहा कि वाणी का घाव इतना विचित्र होता है कि वह जिंदगी भर नहीं भरता। मन दुखे ऐसी वाणी कभी नहीं बोलना चाहिए। जमीन पर दरार पड़ती है तो बारिश का पानी भर देता है और फटा हुआ कपड़ा भी सुई धागे से जुड़ जाता है किंतु वाणी का घाव कभी नहीं भरता।
आपने केतकी का फूल भूलकर भी महादेव पर नहीं चढ़ाने के पीछे छुपी कहानी का जिक्र किया तथा इसे विस्तार से समझाया। महादेव को केवड़ा व चंपा भी नहीं चढ़ाए जाने के बारे में बताया। इन्हें शिवजी ने श्राप दिया था। कहा कि संसार में झूठ बोलोगे तो चल जाएगा किंतु शिव मंदिर में जाकर कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। जिससे कि बुढ़ापा बिगड़ जाए। बोले कि दुनिया में छल कपट, अंधविश्वास और चमत्कार के चक्कर में कभी मत पड़ना किंतु महादेव के चक्कर में पड़ गए तो जीवन की नैया पार हो जाएगी।
कथा के बीच में कई मधुर लोकप्रिय भजन भी सुनाए गए। जिसे सुनकर श्रद्धालु थिरकने लगे। आयोजक परिजन भी जमकर थिरके।कथा के दूसरे दिन आयोजक शरद सिंह सिसोदिया, केबिनेट मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, बड़नगर विधायक मुरली मोरवाल,पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मनोज सिंह गौतम, मनोज सोमानी, कमल सिंह पटेल, टिंकू बना, ईश्वर कटारा, सिसोदिया की पत्नी रीना सिसोदिया, पूर्व राज्य मंत्री एवं उनकी माताजी चंदा सिसोदिया, पुत्र राजवीर सिंह, चंद्रवीर सिंह, पुत्री, शिवांजली, दामाद कर्मवीर सिंह सहित अनेक पुजारी, प्रशासनिक अधिकारी, सेवादार उपस्थित थे।
समापन पर आरती का लाभ आयोजक शरदसिंह सिसोदिया परिवार एवं उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव ने लिया।

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