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झाबुआ

आओ पता लगाए:- जनजाति कार्य विभाग में वह कौन करोड़पति बाबू है जिस पर अनियमितताओं के मामले में जांच , सिर्फ जांच तक ही सीमित है कारवाई तक नहीं…

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झाबुआ – मध्यप्रदेश शासन आदिवासी बाहुल्य जिले के विद्यार्थियों के सुविधाओं और विकास के लिए करोड़ों की राशि का आवंटन करती है लेकिन कई बार यह राशि विभागीय अनियमितताओं के कारण उन गरीब आदिवासियों तक नहीं पहुंच पाती है और विद्यार्थी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं । लेकिन विभाग द्बारा कागज खानापूर्ति में यह राशि उनकी सुविधाओं के लिए दर्शाई जाती है ।

ऐसा ही जनजाति कार्य विभाग में विगत कई वर्षों से तटस्थ बाबू की कार्यप्रणाली के कारण शासन द्वारा आवंटित राशि आदिवासियों के सुविधाओं और विकास के लिए नहीं पहुंच पाई.थी । जिसको लेकर कई बार शिकायतें भी हुई और करीब 12 मामलों में अनियमितताओं को लेकर जांच भी चल रही है लेकिन इन सभी में जाच में क्या सामने आया यह आज तक कलेक्टर कार्यालय के कमरों में ही कैद होकर रह गया । जानकारी अनुसार कुछ शिकायतकर्ता ने जिला प्रशासन से जनजाति कार्य विभाग में मनमानी कार्यशैली को लेकर कई बिंदुओं पर जांच पश्चात कारवाई की मांग की है :- 1. झाबुआ जिले के आदिम जाति कल्याण विभाग झाबुआ को भारत सरकार की ग्रैंड बैंक योजना अंतर्गत राजीव गांधी खाद्य सुरक्षा मिशन अंतर्गत वर्ष 2010-11 में स्वीकृत 230 ग्रेन बैंक हेतु भोपाल से 15 लाख 37 हजार और परिवहन हेतु ₹220000 की राशि प्राप्त हुई थी ग्रामीण ग्रैन बैंक योजना की इस राशि का उपयोग व बिल वाउचर को लेकर जांच की मांग की गई । 2. कार्यालय सहायक आयुक्त आ. वि झाबुआ के बजट शाखा प्रभारी ने बिना मांग पत्र के राशि 31 मार्च 2011 को बी.ई.ओ थांदला को देकर लापरवाही का कार्य किया और इसको लेकर भी जांच की मांग की.।3. जिला कोषालय झाबुआ ने 21 मार्च 2011 को 226000 का चैक ए.सी झाबुआ को दिया । राशि रू 31 लाख 15 हजार जिला कमिश्नर मध्य प्रदेश भारतीय स्काउट झाबुआ के बैंक खाते 6304238604 को लेकर भी जांच की मांग की है तथा इस राशि का कहा उपयोग हुआ है इससे संबंधित वाउचर की मांग की है । 4.मध्य प्रदेश सरकार से छात्रावास आश्रमों में सुदृढ़ीकरण के लिए 350000, 6 लाख,14 लाख ₹36000 के बिल बनाए गए । वही मरम्मत कार्यो की टी.एस/ ए.एस. नहीं लाई गई और न हीं निर्माण कार्यों की एमबी बताई गई । सहायक यंत्री से एस्टीमेट भी प्राप्त नहीं किए गए । कुल मिलाकर इस संपूर्ण राशि के निर्माण कार्य मरम्मत कार्य नहीं हुए , लेकिन शासकीय केसबुक में खर्चा बताकर राशि का किस तरह से उपयोग किया गया ,यह भी जांच का विषय । 5. बीईओ थांदला के.एन.द्बिवेदी ने भी राशी रुपए 60 लाख 61 हजार में से रुपए 31 लाख एसी झाबुआ को वापस किए , किंतु राशि 29 लाख के वाउचर या हिसाब किताब के कागज सरकारी रिकॉर्ड में उपलब्ध हैं या नहीं …..। इसको लेकर भी जांच की मांग रही है । शिकायतकर्ताओ ने सीएम हेल्पलाइन, ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त को भी इस मामले को लेकर शिकायती पत्र डाक के माध्यम से पहुंचाकर जांच व कार्रवाई की मांग की है । शिकायतकर्ता ने जून 2010 सितंबर 2010 व मार्च 2011 में निकाली गई राशि और सरकारी कैश बुक में बताए गए खर्चा के मिलान को लेकर भी जांच पश्चात गलत पाए जाने पर कार्रवाई की मांग की है ।

जिले के गरीब आदिवासी व हरिजन बच्चों की शिक्षण व्यवस्था के लिए मध्यप्रदेश सरकार और भारत सरकार ने वर्ष 2010-11 में लाखों रुपए का बजट आबंटित किया । लेकिन विभागीय जोड़-तोड़ ने बजट को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । इस पूरे प्रकरण को 10 वर्ष से अधिक समय हो गया, परंतु आज दिनांक तक यह जाच, जाच तक ही सीमित है इस जांच को लेकर क्या सामने आया, यह आज तक कलेक्टर कार्यालय के एसी कमरों से बाहर नहीं आया है । वही शिकायतकर्ताओं ने जनजाति कार्य विभाग के बाबू के आर्थिक विकास को लेकर भी जांच की मांग की है शिकायतकर्ता ने शिकायत में बताया कि इस बाबू के ग्वालियर व इंदौर में बंगले हैं इन बंगलों में इतने सितारे हैं जो इस क्षेत्र के सांसद और विधायक के बंगलों पर भी नहीं होंगे । शिकायतकर्ता ने इस बाबू की आय से अधिक संपत्ति की जांच को लेकर भी मांग की है । वही यदि हम गौर करें तो यदि कोई व्यापारी टैक्स को लेकर चोरी करता है तो इनकम टैक्स विभाग नोटिस देता हैं । लेकिन इस बाबू की संपत्ति पर अब तक इनकम टैक्स , ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त की नजरे नहीं पडी हैं । इस और विशेष ध्यान देने की जरूरत है । कया शासन-प्रशासन इस ओर ध्यान देकर, इस तरह के बाबू की कार्यप्रणाली और अनियमितताओं में चल रही जांच को लेकर कोई कारवाई करेगा या फिर यह बाबू करोड़पति से अरबपति बनेगा….?

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