जिसने सत्य को खो दिया , शिवत्व को खो दिया वह युवा, युवा नही होता – आचार्य श्री रामनुज जी
श्री हनुमंत निवास आश्रम मे शिव मानस चरित्र कथा में उमड रही श्रद्धालुओं की भी ।
झाबुआ । पवित्र तीर्थ हनुमंत निवास आश्रम में चल रही शिव मानस चरित्र कथा में दिनों दिन श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है। व्यास पीठ पर बिराजित परम पूज्य आचार्य श्री रामानुज जी ने छटवे दिन राम चरित्र मानस की चैपाई’’ संभु चरित सुनी सरस सुहावा, भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ,बहुलालसा कथा पर बाढ़ी ,’’नयनन्हि नीरू रोमावली ठाढ़ी के साथ शिव मानस चरित्र कथा कहते हुए कहा कि बहुत बार यह सुनने में मिलता है, धर्म करना चाहिए ,ब्राह्मणों के सानिध्य में बैठना चाहिए, सत्संग करना चाहिए आदि आदि पर यह किस लिये ? इसका प्रत्युत्तर अलग अलग मिलता है उसके आधार पर हम तय करलेते है , की भगवान प्रसन्न होजाए , राजी होजाए , किंतु भगवान कभी नाराज होता ही नही , जो तृप्त है, शाश्वत है, सम्पूर्ण है ,शिव है जो राजी है, उसको भला क्या राजी करना?
आचार्य श्री ने कथा सुनाते हुए कहा कि यदि आपको भगवान ने सुवर्ण धन दिया है । आपका शरीर ,मन, अथवा जो भी उपलब्ध है वह सब धन है और ऐसे धन से किये जा रहे सत्कार्य ही मुझे ओर आपको धर्म की यात्रा करवाता है । उन्होने कहा कि जिसने सत्य को खो दिया , शिवत्व को खो दिया वह युवा, युवा नही होता । मन की शुद्धता चरित्र की शुद्धता बताती है । युवानी उसे कहते है जिसमे सच्चरित्र हो । गुरु मुस्कुराते है, जब वे हमारे भीतर शिवत्व को महसूस कर ले । आपके अस्तित्व के भीतर ईश्वर समाया हुआ है । जीवन की समस्या व्यथित कर रही हो तो हरि नाम का आश्रय लो। अपनों की आंख में अश्रु देखकर सद्गुरु बिलख जाते है ओर गुरु की प्रार्थना से प्रभु गुरु के आश्रित पर कृपा करते है । परिश्रम में यदि परमात्मा की लगन लग जाए तो परमात्मा हमारे सदकर्म के परिणाम में मिलता है।
आचार्य श्री के अनुसार सत्संग का अवसर भगवान की कृपा से ही मिलता है। भगवान श्रीराम भी कथा सुना करते थे। संस्कृति प्रधान समाज के लिए कथा का आयोजन होना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि आज के युग में भौतिक विकास से भारतीय संस्कृति का धीरे-धीरे पतन होते दिख रहा है। परिवारों में दूरियां बढ़ रही हैं। संयुक्त परिवार खत्म होते जा रहे हैं और एकांकी परिवार बढ़ते जा रहे हैं। अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए उन्हें सुबह में सूर्योदय के बाद सूर्य को अघ्र्य देना सिखाना चाहिये ।
उन्होने कहा कि शिव पुराण की कथा सुनने से चित्त की शुद्धि एवं मन निर्मल हो जाता है। शुद्ध चित्त में ही भगवान शिव व माता पार्वती का वास होता है। शिव महापुराण की कथा का श्रवण सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है। भगवान शिव की कथा सुनकर हृदय में उसका मनन करना चाहिए। इससे चित्त की शुद्धि होती है। चित्तशुद्धि होने से ज्ञान के साथ महेश्वर की भक्ति निश्चय ही प्रकट होती है। भगवान संतों पर कृपा करने के साथ ही भक्तों को दर्शन देने एवं दुष्टों का संहार करने के लिए ही अवतार ग्रहण करते हैं। भगवान शिव ने एकादश रुद्र के रूप में अवतार लेकर देवताओं की दैत्यों से रक्षा की थी।
पिपलखुटा में श्री शिव चरित्र मानस कथा को श्रवण करने के लिये दूर दूर से श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है। प्रतिदिन कथा के विराम के अवसर पर महामंगल आरती के साथ प्रसादी का वितरण किया जाता है। आयोजन समिति ने सभी सनातन धर्म प्रेमियों से शिव पुराण मानस कथा का लाभ लिये जाने की अपील की है ।