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झाबुआ

बेटी तेरापंथ की” ….कुछ व्यक्ति जैन समाज के स्वयंभू नेता बनने के लिए दुष्प्रचार कर रहे हैं, उनके बहकावे में न आए…….

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झाबुआ – भगवान महावीर के अनुयायी, जैन एकता के लिए हर संभव प्रयास करने वाले , मानवता के मसीहा , शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य में मुंबई में बैटी तेरापंथ की… को लेकर सम्मेलन का आयोजन किया गया । जिसका मुख्य उद्देश्य स्नेह, संस्कार और समन्वय । इस सम्मेलन में आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा दिए गए वक्तव्य को जैन समाज के कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया । जिससे उन शब्दों का अर्थ गलत निकला तथा इसी बात को मुद्दा बनाते , तथाकथित धर्म के ठेकेदारो ने जैन एकता पर प्रहार करते हुए साधु भगवंतो से अपने आप को ऊपर मानते हुए , धर्म विशेष के गुरु के बारे में दुष्प्रचार कर रहे हैं जबकि उन्हीं के समाज के व्यक्ति ने एक ऑडियो वायरल कर , इस बहकावे में ना आने की अपील भी की है.। प्रश्न यह है कि इन तीन उद्देश्यों से होने वाले इस सम्मेलन को जैन एकता पर प्रहार कहना कहां तक उचित है?

हर बेटी ससुराल जाने के बाद भी अपने पीहर से भी जुड़ी रहती है। प्रति वर्ष सावन के महीने में बेटी का अपने पति के साथ पीहर जाना दोनों परिवारों के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाता है। और यह परम्परा सदियों से समाज में चली आ रही है। क्या पीहर जाने मात्र से उनका ससुराल छूट जाता है? या उनका गोत्र बदल जाता है? क्या उसका पति हमेशा के लिए वहीं रह जाता है? नहीं। इसी प्रकार यह सम्मेलन भी परस्पर के संबंधों और जैन एकता को मजबूत बनाने का प्रयास है। अब जिन्हें हर अच्छाई में भी बुराई खोजने की आदत हो, उन्हें तो कौन समझा सकता है।

तेरापंथ की हजारों बेटियां नॉन जैन परिवारों में दी हुई है और हजारों अन्य जैन सम्प्रदाय में। उन सबको इस स्नेह सम्मेलन में आमंत्रित करना क्या अपराध है? पिछले कुछ वर्षों से अनेक गांव वाले अपनी सभी बेटियों को बुलाकर स्नेह सम्मेलन का आयोजन कर चुके हैं। आपको जानकर यह प्रसन्नता होगी कि 650 से अधिक बेटियों ने उत्साह और आह्लाद के साथ इस सम्मेलन हेतु अपना रजिस्ट्रेशन किया है। क्या आत्मीयता के अहसास और असांप्रदायिक माहौल के बिना इस सम्मेलन के लिए 300 से अधिक दामाद भी अपना रजिस्ट्रेशन करते? इस सम्मेलन में जो भी बेटियां और दामाद आए हैं, वे अपने परिजनों की प्रसन्नतापूर्वक सहमति से ही आए हैं। इस आयाम को प्रारंभ हुए करीब 1 वर्ष संपन्न हो रहा है, क्या आपने अब तक इसके अंतर्गत संचालित गतिविधियों को जाना है? यदि नहीं तो परिवार, संस्कार, स्वस्थ जीवनशैली आदि के प्रशिक्षण के साथ-साथ सांस्कृतिक पर्वों पर हुए आयोजनों में आपको साम्प्रदायिकता कहां से नजर आई?.

संक्षेप में
बेटियों की प्रबल भावना पर प्रारम्भ किए गए “बेटी तेरापंथ की” आयाम का उद्देश्य किसी का धर्म परिवर्तन और किसी की उपासना पद्धति को बदलना कदापि नहीं है, अपितु हमारी बेटी आपके परिवार को और अधिक सुवासित कर सके, ऐसा प्रयास है। सांसारिक जीवन में यदि किसी परिवार का मुखिया अपने परिवार के लिए कुछ नियम और संस्कारों के तहत जीवन यापन की बात करता है तो वह गलत नहीं है इस प्रकार यदि किसी धर्म में यदि कोई गुरु अपने श्रावक श्राविकाओं को जैनत्व और संस्कार को लेकर उन पर तटस्थ रहने की बात कहता है तो वह भी गलत नहीं है । लेकिन धर्म के कुछ ठेकेदार जैन एकता व जैनत्व के विरोधी नजर आ रहे हैं । इसलिए आपसे हमारा नम्र निवेदन है कि मिथ्या और भ्रामक प्रचार को छोड़कर सामायिक, समता, मैत्री, सौहार्द के आदि के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करें।

विशेष निवेदन
19 व 20 अगस्त को होने वाले प्रथम सम्मेलन का अच्छी तरह आकलन करने के बाद ही आप अपना मंतव्य बनाएं, ताकि आपका सम्यक्त्व सुरक्षित रह सके। कुछ व्यक्ति जैन समाज के स्वयंभू नेता बनने के लिए दुष्प्रचार कर रहे हैं, उनके बहकावे में न आएं।

बेटी तेरापंथ की
स्नेह ● संस्कार ● समन्वय

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