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झाबुआ

शैक्षणिक सत्र के डेढ माह बीत जाने के बाद भी नोनिहाल बच्चों को स्कूल ड्रेस नसीब नहीं हो पाई..

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खवासा का दलाल भी जुगाड़ जमाने की फ़िराक में ..

झाबुआ। प्रदेश के मामा शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश में अपने भांजे भांजियो को बेहतर शिक्षा देने की बात कर रहे हैं और शिक्षा के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए हर वर्ष खर्च भी किए जा रहे हैं परंतु झाबुआ जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में शिक्षा जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण दम तोडती हुई नजर आ रही हैं । ऐसे स्कूल भवन संचालित हो रहे हैं ।जो की पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं। नोनीहाल बच्चे जर्जर भवनों में बैठने को आज भी मजबूर है। जो कि हादसों का कारण बन सकते हैं परंतु शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन बैठे हैं। आखिर क्यों, कब तक नोनिहाल बच्चे जर्जर भवनों में बैठने को मजबूर होंगे यहां एक बड़ा सवाल है। शिक्षा विभाग की व्यवस्थाएं दलालों के चलते पूरी तरह से चौपट हो गई बच्चों को हर वर्ष सरकार की ओर से स्कूल ड्रेस के रूप में राशि सरकार की ओर से आती है। परंतु धीरे-धीरे पूरी व्यवस्था ही परिवर्तन कर दी कुछ दलालों ने स्कूलो में साठगाँठ कर नोनिहाल बच्चों की स्कूल ड्रेस पर डाका डाल रहे हैं। सत्र शुरू होने के डेढ़ माह बाद यानी 15 अगस्त भी बीत गया उसके बावजूद स्कूलों स्कूल ड्रेस नहीं पहुंची और जहां पहुंची है वहां पर कॉफी घटिया और गुणवत्ताहीन निम्न क्वालिटी की स्कूल ड्रेस पहुंचाई गई है। आखिर कब तक जिले का शिक्षा विभाग दलालों के हाथों में बच्चों का भविष्य सोपता रहेगा… जिले में हालत यह है कि आज भी छोटे-छोटे मासूम बच्चे फटे पुराने कपड़ों में स्कूल पहुंच रहे हैं, किंतु उन्हें मिलने वाली गणवेश अब तक नहीं मिल पाई है। कई स्कूलों में गणवेश पहुंच चुकी है, लेकिन वहां के शिक्षकों के द्वारा गणेश बच्चों को वितरित नहीं की गई है। ऐसे में बच्चे आज भी फटे पुराने कपड़ों में स्कूल आ रहे हैं। शासन द्वारा भले ही लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं किंतु जब बात जमीन स्तर की आती है तो स्थिति बेहद दयनीय होकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का काम किया जा रहा है, आज भी पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में हालात नहीं सुधरे हैं। क्योंकि जिले में बैठे जिम्मेदार भी अपनी जिम्मेदारी को सही ढंग से नही निभा पा रहे हैं, और स्थिति दिनों दिन और बिगड़ते जा रही है। स्कूलों के हालात बहुत खराब हो चुके हैं बच्चों को ना तो समय पर गणवेश मिल पाती है और ना ही स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए भवन नसीब हो पा रहे है। छोटे-छोटे कमरों में बच्चों को ठूस दिया जाता है। जैसे तैसे बच्चे अपनी पढ़ाई को पूरा कर रहे हैं। कुछ दलालों की सक्रियता ने बच्चों को मिलने वाले सरकारी सुख सुविधाओं पर डाका डाल रखा है हम बात करें स्कूल ड्रेस की तो कई ऐसे धन्नासेठ मासूमों के हक अधिकार पर डाका डाल रहे हैं। जिले का शिक्षा विभाग आज भी कुंभकरण की नींद सोया हुआ है आखिरकार शासन की ओर से बच्चों के लिए राशि आवंटित होती है तो फिर समूह संगठन दलाल के हाथों में स्कूल ड्रेस देने का काम क्यों क्या सीधे तौर पर शिक्षा विभाग नोनिहाल बच्चों के लिए ड्रेस उपलब्ध नहीं करवा सकता क्या..? जब से आजीविका मिशन के हाथों में स्कूल ड्रेस सहित अन्य काम सोफा है तब से मिशन सिर्फ अपना मिशन ही फतेह करने में व्यस्त हैं आजीविका मिशन चलाने वाले सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में लगे है और शासन की राशि का भरपूर फायदा उठाकर इस जिले को खोखला करने में लगे हैं । यदि दीमकरूपी संस्था की जांच की जाना चाहिए हाल ही में 15 अगस्त पर झंडा वितरित करने का काम भी आजीविका मिशन के हाथों में था परंतु आनंन फानन और अपना टारगेट पूरा करने के चक्कर में जो पंचायतो में तिरंगा झंडा वितरित किए हैं वह भी गुणवत्ताहीन और माप दण्ड से परे हैं।

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