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मनुष्‍य को आहार संज्ञा पर विजय पाने का प्रयास सतत करना चाहिये – साध्वी निखिलशीलाजी

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मनुष्‍य को आहार संज्ञा पर विजय पाने का प्रयास सतत करना चाहिये – साध्वी निखिलशीलाजी

आराधको ने की सामूहिक उपवास, तेला तप सहित विविध आराधना

थान्दला – (वत्सल आचार्य)आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तिनी सुशिष्या साध्वी निखिलशीलाजी, दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तिजी ठाणा-4 स्थानीय पौषध भवन पर चातुर्मास हेतु विराजित हैं।
साध्वी मंडल के सानिध्य में प्रातः राई प्रतिक्रमण, प्रार्थना, व्याख्यान, दोपहर मे ज्ञान चर्चा, शाम को देवसी प्रतिक्रमण,कल्याण मंदिर,चोवीसी आदि विविध आराधनाएँ हो रही है। जिसमें श्रावक श्राविकाएँ उत्साहपूर्वक आराधना कर रहे हैं।
साध्वी निखिलशीलाजी एवं साध्वी मंडल के सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा मंगलवार से आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना जप-तप और विभिन्न आराधनाओं के साथ प्रारम्भ की गई। महापर्व पर्युषण के तीसरे दिन गुरुवार को पक्खी पर्व होने पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने एकासन,बियासन,उपवास,बेला, तेला, संवर, पौषध, सामयिक की आराधना की।
साध्वी निखिलशीलाजी ने गुरुवार को धर्मसभा में कहा कि मनुष्य को आहार संज्ञा पर विजय पाने का प्रयास सतत करना चाहिए। आहार करना और आहार संज्ञा दोनों अलग -अलग है। आहार अर्थात केवल पेट भरने के लिए किया जाने वाला भोजन, जिससे मनुष्य के जीवन का निर्वहन हो सके लेकिन आहार संज्ञा अर्थात भक्ष -अभक्ष किसी भी चीज का ध्यान न रखते हुए जब भी मन हुआ खाने का तब खा लिया। तीर्थंकर भगवन या क़ोई पुण्यशाली आत्मा जब माता के गर्भ में आती है तो माता को शुभ विचार -शुभ भाव आते है इसमे गर्भस्थ जीव का पूर्व का पुण्य और माता के विचारों का भी प्रभाव होता है।
ज्ञानी फरमाते है पुण्यवान जीव जब गर्भ में आवे तो माता ने लाडू -पेड़ा भावे, पापी जीव जब गर्भ में आवे तो माता कोयला -ठीकरा खावे।
पुण्यवान जीव के गर्भ में आने पर माता को धर्म ध्यान करने के, दान आदि करने के उत्तम भाव आते है। पापी जीव के गर्भ में आने पर जो नही करने योग्य कार्य हो वह भी करने का मन करता है, भक्ष्य -अभक्ष्य कुछ भी खाने पीने का मन करता है और यह सब होता है आहार संज्ञा के वशीभुत होकर। मनुष्य भव मिला है तो पेट भरना जरुरी है जिससे शरीर टिका रहता है लेकिन वह खाना पीना भी विवेकपूर्ण होना चाहिए। यह आहार संज्ञा बड़ी भयंकर है। ये एकेंद्रीय से लगाकर पंचेद्रीय तक सभी जीवों में होती है। एकेंद्रीय में आहार संज्ञा इतनी भयंकर होती है की कुछ पुष्प अपने अंदर किट -पतंगों को बंद कर उनका रस चूसकर बाकी कलेवर बाहर फेक देते है ऐसा ही कुछ पेड़ो के विषय में समझना चाहिए जिनके पास जाने पर वो इंसानों को भी पकड़कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर देते है। जीव जब अपना आयुष्य पूर्ण कर परभव में जाता है तो वहा भी सबसे पहले आहार पर्याप्ति ही प्राप्त करता है और उसके बाद बाकी की पांचो पर्याप्ति प्राप्त करता है ।आहार संज्ञा जीव के साथ अनादिकाल से लगी हुई है।आहार संज्ञा के अनेक भेद बताए है जिसमें से प्रमुख है पेट खाली होने से, क्षुधा वेदनीय का उदय होने से, बार -बार खाने की इच्छा करने से, बार -बार खाने की चीजों के नाम सुनने से या स्वास्थ्य के लिए अनुकूलता हो ऐसे आहार की इच्छा करने से भी बार -बार भूख लगती है। जीव को कब खाना, कितना खाना, कैसा खाना यह विचार करना चाहिए। अपनी रस इन्द्रिय को वश में करके उस पर विजय पाने का प्रयास करना चाहिए और उसके लिए ज्ञानी भगवंत ने सबसे अच्छा उपाय बताया है तप। अनादिकाल से अशुभ कर्म आत्मा के साथ चिपके हुए है उन्हें हटाने का उपाय है तप। पर्युषण महापर्व के इन आठ दिनों में जो आत्मा इन शुभ भावों को आत्मासात करके धर्म आराधना करता है वह शीघ्र ही मोक्ष के अनंत सुखो को प्राप्त करता है।

अंतगढ़दसा सूत्र का वांचन

साध्वी प्रियशीलाजी द्वारा अंतगढ़दसा सूत्र का वांचन किया गया।

धर्मसभा को साध्वी दीप्तीजी द्वारा भी सम्बोधित किया गया। आपने फ़रमाया की भगवान महावीर स्वामी जब माता के गर्भ में आए तो उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी की जब तक माता -पिता जीवित रहेंगे में संयम ग्रहण नही करूँगा। यह प्रतिज्ञा उनके माता -पिता के प्रति सम्मान भाव को दर्शाती है। लेकिन ऐसी प्रतिज्ञा सभी जीवों के लिए करना संभव नही होती क्योंकि तीर्थंकर तो जन्म से ही तीन ज्ञान के धारक होते है। तीर्थंकर भगवान की इस प्रतिज्ञा से सिख मिलती है की हमें बड़ो का आदर -सम्मान करना चाहिए क्योंकि जो बड़ो का आदर -सम्मान करता है वह सर्वत्र ही सम्मान का पात्र होता है।

श्री संघ में तपस्याओं का दौर भी जारी है। इसी क्रम में गुरुवार को धर्मसभा में साध्वी निखिलशीलाजी के मुखारविंद से प्रेरणा व्होरा ने 11 उपवास, मेघा बांठिया ने 06 उपवास व जिनल छाजेड ने 05 उपवास,नानालाल श्रीश्रीमाल,दीपक चौधरी, बाबूलाल श्रीमाल, धर्मेश मोदी, नमन डांगी,गुप्त श्रावक, ज्योत्सना छाजेड, भावना शाहजी, काजल चौरड़िया ने चार -चार उपवास व प्रवीण श्रीमार ने तीन उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
तेले की लड़ी में हनी गादिया ने आज तीन उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।तनीषा छाजेड की सिद्धि तप की तपस्या व विनोद श्रीश्रीमाल की धर्म चक्र की तपस्या गतिमान है।मंगलवार पर्युषण महापर्व के एक दिन पहले सोमवार से नवरंगी तप भी गतिमान है जिसमे 80 से अधिक श्रावक -श्राविकाए उत्साह पूर्वक भाग ले रहे है।

पक्खी पर्व पर हुआ प्रतिक्रमण

गुरुवार को पक्खी पर्व पर श्रावक -श्राविकाओं ने प्रतिक्रमण किया। श्रावक वर्ग का प्रतिक्रमण दौलत भवन व महावीर भवन पर हुआ एवं श्राविकाओं का प्रतिक्रमण स्थानीय पौषध भवन पर हुआ।

मंगलवार से सामूहिक तेले तप(तीन उपवास) की तपस्या भी प्रारम्भ हुई।15 सितंबर को समस्त तपस्वियों के पारणे सामूहिक रूप से होंगे जिसके लाभार्थी नेचरल गोल्ड परिवार है।बुधवार को प्रभावना का लाभ प्रकाशचंद्र घोड़ावत परिवार व गुरुवार को प्रभावना का लाभ उर्मिला पूनमचंद गादिया परिवार ने लिया। सभा का संचालन सचिव प्रदीप गादिया ने किया।

आराधको ने की सामूहिक उपवास, तेला तप सहित विविध आराधना

थान्दला – आचार्यश्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तिनी सुशिष्या साध्वी निखिलशीलाजी, दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तिजी ठाणा-4 स्थानीय पौषध भवन पर चातुर्मास हेतु विराजित हैं।
साध्वी मंडल के सानिध्य में प्रातः राई प्रतिक्रमण, प्रार्थना, व्याख्यान, दोपहर मे ज्ञान चर्चा, शाम को देवसी प्रतिक्रमण,कल्याण मंदिर,चोवीसी आदि विविध आराधनाएँ हो रही है। जिसमें श्रावक श्राविकाएँ उत्साहपूर्वक आराधना कर रहे हैं।
साध्वी निखिलशीलाजी एवं साध्वी मंडल के सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा मंगलवार से आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना जप-तप और विभिन्न आराधनाओं के साथ प्रारम्भ की गई। महापर्व पर्युषण के तीसरे दिन गुरुवार को पक्खी पर्व होने पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने एकासन,बियासन,उपवास,बेला, तेला, संवर, पौषध, सामयिक की आराधना की।
साध्वी निखिलशीलाजी ने गुरुवार को धर्मसभा में कहा कि मनुष्य को आहार संज्ञा पर विजय पाने का प्रयास सतत करना चाहिए। आहार करना और आहार संज्ञा दोनों अलग -अलग है। आहार अर्थात केवल पेट भरने के लिए किया जाने वाला भोजन, जिससे मनुष्य के जीवन का निर्वहन हो सके लेकिन आहार संज्ञा अर्थात भक्ष -अभक्ष किसी भी चीज का ध्यान न रखते हुए जब भी मन हुआ खाने का तब खा लिया। तीर्थंकर भगवन या क़ोई पुण्यशाली आत्मा जब माता के गर्भ में आती है तो माता को शुभ विचार -शुभ भाव आते है इसमे गर्भस्थ जीव का पूर्व का पुण्य और माता के विचारों का भी प्रभाव होता है।
ज्ञानी फरमाते है पुण्यवान जीव जब गर्भ में आवे तो माता ने लाडू -पेड़ा भावे, पापी जीव जब गर्भ में आवे तो माता कोयला -ठीकरा खावे।
पुण्यवान जीव के गर्भ में आने पर माता को धर्म ध्यान करने के, दान आदि करने के उत्तम भाव आते है। पापी जीव के गर्भ में आने पर जो नही करने योग्य कार्य हो वह भी करने का मन करता है, भक्ष्य -अभक्ष्य कुछ भी खाने पीने का मन करता है और यह सब होता है आहार संज्ञा के वशीभुत होकर। मनुष्य भव मिला है तो पेट भरना जरुरी है जिससे शरीर टिका रहता है लेकिन वह खाना पीना भी विवेकपूर्ण होना चाहिए। यह आहार संज्ञा बड़ी भयंकर है। ये एकेंद्रीय से लगाकर पंचेद्रीय तक सभी जीवों में होती है। एकेंद्रीय में आहार संज्ञा इतनी भयंकर होती है की कुछ पुष्प अपने अंदर किट -पतंगों को बंद कर उनका रस चूसकर बाकी कलेवर बाहर फेक देते है ऐसा ही कुछ पेड़ो के विषय में समझना चाहिए जिनके पास जाने पर वो इंसानों को भी पकड़कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर देते है। जीव जब अपना आयुष्य पूर्ण कर परभव में जाता है तो वहा भी सबसे पहले आहार पर्याप्ति ही प्राप्त करता है और उसके बाद बाकी की पांचो पर्याप्ति प्राप्त करता है ।आहार संज्ञा जीव के साथ अनादिकाल से लगी हुई है।आहार संज्ञा के अनेक भेद बताए है जिसमें से प्रमुख है पेट खाली होने से, क्षुधा वेदनीय का उदय होने से, बार -बार खाने की इच्छा करने से, बार -बार खाने की चीजों के नाम सुनने से या स्वास्थ्य के लिए अनुकूलता हो ऐसे आहार की इच्छा करने से भी बार -बार भूख लगती है। जीव को कब खाना, कितना खाना, कैसा खाना यह विचार करना चाहिए। अपनी रस इन्द्रिय को वश में करके उस पर विजय पाने का प्रयास करना चाहिए और उसके लिए ज्ञानी भगवंत ने सबसे अच्छा उपाय बताया है तप। अनादिकाल से अशुभ कर्म आत्मा के साथ चिपके हुए है उन्हें हटाने का उपाय है तप। पर्युषण महापर्व के इन आठ दिनों में जो आत्मा इन शुभ भावों को आत्मासात करके धर्म आराधना करता है वह शीघ्र ही मोक्ष के अनंत सुखो को प्राप्त करता है।

अंतगढ़दसा सूत्र का वांचन

साध्वी प्रियशीलाजी द्वारा अंतगढ़दसा सूत्र का वांचन किया गया।

धर्मसभा को साध्वी दीप्तीजी द्वारा भी सम्बोधित किया गया। आपने फ़रमाया की भगवान महावीर स्वामी जब माता के गर्भ में आए तो उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी की जब तक माता -पिता जीवित रहेंगे में संयम ग्रहण नही करूँगा। यह प्रतिज्ञा उनके माता -पिता के प्रति सम्मान भाव को दर्शाती है। लेकिन ऐसी प्रतिज्ञा सभी जीवों के लिए करना संभव नही होती क्योंकि तीर्थंकर तो जन्म से ही तीन ज्ञान के धारक होते है। तीर्थंकर भगवान की इस प्रतिज्ञा से सिख मिलती है की हमें बड़ो का आदर -सम्मान करना चाहिए क्योंकि जो बड़ो का आदर -सम्मान करता है वह सर्वत्र ही सम्मान का पात्र होता है।

श्री संघ में तपस्याओं का दौर भी जारी है। इसी क्रम में गुरुवार को धर्मसभा में साध्वी निखिलशीलाजी के मुखारविंद से प्रेरणा व्होरा ने 11 उपवास, मेघा बांठिया ने 06 उपवास व जिनल छाजेड ने 05 उपवास,नानालाल श्रीश्रीमाल,दीपक चौधरी, बाबूलाल श्रीमाल, धर्मेश मोदी, नमन डांगी,गुप्त श्रावक, ज्योत्सना छाजेड, भावना शाहजी, काजल चौरड़िया ने चार -चार उपवास व प्रवीण श्रीमार ने तीन उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
तेले की लड़ी में हनी गादिया ने आज तीन उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।तनीषा छाजेड की सिद्धि तप की तपस्या व विनोद श्रीश्रीमाल की धर्म चक्र की तपस्या गतिमान है।मंगलवार पर्युषण महापर्व के एक दिन पहले सोमवार से नवरंगी तप भी गतिमान है जिसमे 80 से अधिक श्रावक -श्राविकाए उत्साह पूर्वक भाग ले रहे है।

पक्खी पर्व पर हुआ प्रतिक्रमण

गुरुवार को पक्खी पर्व पर श्रावक -श्राविकाओं ने प्रतिक्रमण किया। श्रावक वर्ग का प्रतिक्रमण दौलत भवन व महावीर भवन पर हुआ एवं श्राविकाओं का प्रतिक्रमण स्थानीय पौषध भवन पर हुआ।

मंगलवार से सामूहिक तेले तप(तीन उपवास) की तपस्या भी प्रारम्भ हुई।15 सितंबर को समस्त तपस्वियों के पारणे सामूहिक रूप से होंगे जिसके लाभार्थी नेचरल गोल्ड परिवार है।बुधवार को प्रभावना का लाभ प्रकाशचंद्र घोड़ावत परिवार व गुरुवार को प्रभावना का लाभ उर्मिला पूनमचंद गादिया परिवार ने लिया। सभा का संचालन सचिव प्रदीप गादिया ने किया।

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