मां के दरबार में विगत 20 वर्ष से अधिक अवधि से काकड़ा आरती का हो रहा आयोजन ।
शारदेय नवरात्री में प्रतिदिन अलसुबह 5 बजे से 9 दिनों तक होगी कांकडा आरती ।
समिति ने नगरवासियों से आरती मे शामील होकर धर्मलाभ लेने की अपील की ।
झाबुआ । प्राचीन दक्षिणी मां कालिका माता मंदिर झाबुआ पर प्रतिवर्ष काकड़ा आरती का आयोजन चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में किया जाता है । काकड़ा आरती प्रातः काल 5.00 बजे आरंभ की जाती है ,जिसमें 1500 से 2000 भक्तों की उपस्थिति प्रतिदिन बनी रहती है। तथा इसमें मंदिर समिति द्वारा निर्मित शुद्ध घी के राजगिरा का हलवा माताजी को नैवेद्य के रूप में अर्पण कर सभी भक्तों को वितरित कर दिया जाता है। प्रतिदिन दो से तीन क्विंटल के मध्य उक्त प्रसादी का वितरण मंदिर समिति द्वारा किया जाता है । आम श्रद्धालुओं के मध्य काकड़ा आरती क्या है ? इसको जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। काकड़ा शब्द कब से बना है. वास्तव में काकड़ा शब्द का अर्थ होता है ग्राम एवं नगर की सीमा जहां समाप्त होती है,.उसे कंाकड़ कहते हैं कांकड शब्द से ही कांकडा बना है।
कालिका माता के दक्षिणमुखी मंदिर के बारे में नगर के इतिहासवेत्ता प्रो. के के त्रिवेदी का कहना है कि झाबुआ के महाराजा श्री गोपालसिंह जी का जन्म 1840 में हुआ था और वे 1858 में झाबुआ स्टेट की गद्दी पर बैठे, उनका देहान्त 1895 में हुआ । उनके द्वारा झाबुआ में जितने भी मंदिर है, जिसमें श्री गोवर्धननाथजी की हवेली भी शामील है के सहित कालिका माता का मंदिर भी उनके ही शासनकाल में हुआ था । महाराजा गोपालसिंह धर्मनिष्ठ,पूरी तरह सात्विक जीवन बितानेवाले तथा प्रतिदिन मंदिरों में दर्शन के लिये जाते थे तथा गोवर्धननाथ मंदिर में वे भजन मे भी महारानियों सहित शामील भी होते थे, उनके ही द्वारा 1958 से 1895 के बीच मां कालिका का दक्षिणमुखी मंदिर की स्थापना किये जाने का इतिहास मे उल्लेख है । और तत्समय भी माताजी की कांकडा आरती होती रही है ।
काकडा आरती के बारे में उल्लेखित है कि कार्तिक मास में आमतौर पर भक्तगण ऋतु परिवर्तन होने पर प्राचीन समय में उस स्थान में स्थित सरोवर तालाब कुआं आदि जो भी जलाशय उनके ग्राम में उपलब्ध होते थे, उसमें जाकर स्नान करते थे तथा समूह में एकत्रित होकर अपने-अपने घर से लाई हुई बाती से आरती करते थे। आज भी हमारे देश के कई प्रदेशों के ग्रामीण अंचल में इस आरती को किया जाता है। जन श्रुति के अनुसार इस आरती का आरंभ महाराष्ट्र राज्य से होना माना जाता है। झाबुआ शहर में विगत 20 वर्ष से अधिक अवधि से काकड़ा आरती का आरंभ महाकालीका माता मंदिर पर स्वर्गीय गोवर्धनलाल जी मिस्त्री जो कालिका माता के परम भक्त रहे हैं, के द्वारा किया गया था। उस समय 100 से 200 भक्तों की उपस्थिति रहती थी। किंतु वर्तमान समय में प्रतिदिन 1500 से 2000 भक्तों की उपस्थिति बनी रहती है । वैसे तो आरती के प्रति आमजन का जोश एवम उमंग इतना है कि आरती तो 5.00 बजे होती है.लेकिन भक्तगण रात्रि 3.00 बजे से ही मंदिर में आकर लाईन में लग जाते हैं,.ताकि वह मंदिर में अपनी आराध्या मां के दर्शन करीब से कर सके । मंदिर समिति के कार्यकर्ता इस आरती की तैयारी रात्रि 1.00 बजे से ही आरंभ कर देते हैं । मां की आरती को प्रतिदिन नगर का कोई एक भक्त परिवार अपने स्वजनों सहित करता है। कई भक्तगण अपनी मन्नत पूरी होने पर भी इस आरती को पहले से ही आरक्षित करवा लेते हैं । मां की इस आरती के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा है कि आगामी चैत्र नवरात्रि में होने वाली काकड़ा आरती भी अभी से आरक्षित हो चुकी है । जबकि चैत्र नवरात्रि 6 माह पश्चात आऐगी ।
मंदिर समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राजेंद्र प्रसाद अग्निहोत्री ने नगर के सभी भक्तों से प्रतिदिन होने वाली इस आरती में सम्मिलित होने की अपील की है । इस आरती में समिति के सदस्य कांतिलाल नानावती अतिश शर्मा दयानंद पाटीदार.राजेश डामोर,विनोद पांचाल.पिंटू शर्मा .लोचन नीमा,.लोकेश नीमा.दिनेश अरोड़ा.लोमेश नीमा.निमेष जैन.जिनेंद्र जैन (बुई सेठ).गौरव दुबे.अभिषेक चतुर्वेदी .अभिषेक बारिया सहित समिति के सदस्यों एवं श्रद्धालुओं का विशेष सहयोग प्रतिवर्ष बना रहता है। नगर के समस्त भक्तों से अपील की गई है कि इस आरती में सपरिवार सम्मिलित होकर इसका धर्म लाभ लेवे।
ज्ञातव्य है कि देशभर में दक्षिणमुखी कालिका माता मंदिर के गिने चुने मंदिर हैं। इनमें से एक झाबुआ में हैं। मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आम दिनों में भी दर्शनार्थियों की कतार लगती है। शारदेय नवरात्रि के पहले दिन सुबह घटस्थापना की जाएगी । रोजाना सुबह पांच बजे कांकड़ आरती होगी। इसके अलावा रोज सुबह सवा आठ व शाम साढ़े सात बजे आरती की जाएगी। 108 अखंड ज्योत जलाई जाएगी।