दक्षिणमुखी कालिका माता मंदिर पर महाष्टमी एवं महानवी पर पर अपार जन समुह ने माता रानी के दर्शन वंदन का लाभर उठाया ।
नवरात्रि पर्व पर ज्वारा दर्शन का बड़ा महत्व माना जाता है- राजेन्द्र अग्निहौत्री
झाबुआ । आस्था का जन सैलाब एवं ज्वारा दर्शन प्राचीन दक्षिणी मां कालिका माता मंदिर पर महाष्टमी का पर्व जो महागौरी के नाम रहता है। शारदीय नवरात्रि में अपार जनसमूह जन सैलाब का केंद्र रहा है । महाअष्टमी के दिन सायंकाल 5.00 बजे से हवन आरंभ किया जाता है जो रात्रि 8.00 बजे तक चलता है । तत्पश्चात महा आरती अखंड ज्योति एवं ज्वारा दर्शन होता है पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी द्वारा ब्रह्मांड का निर्माण किया गया था तो वनस्पतियों के बीच उगने वाली पहली फसल जो थी, यही कारण है कि नवरात्रि के प्रथम दिवस कलश स्थापना के साथ जवारे बोए जाते हैं । पुरातन मान्यता के अनुसार जवारे को ब्रह्मा जी का प्रतीक माना जाता है, इसलिए हवन में भी जौे को सम्मिलित किया जाता हैै।
समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र अग्निहौत्री के अनुसार झाबुआ नगर में नवरात्रि पर्व पर ज्वारा दर्शन का बड़ा महत्व माना जाता है। आदिवासी समाज भी नवरात्रि पर्व पर अपने घरों में ज्वारा बोते हैं । जन श्रुति के अनुसार यदि ज्वारे तीन दिन मे हरे दिखाई देते हैं तो आने वाली फसल अच्छी होगी, यह मान्यता है । किंतु यदि तीसरे दिन पीले दिखाई देते हैं तो यह माना जाता है कि इस वर्ष की फसल अच्छी नहीं होगी इसलिए इस जिले में ज्वारादर्शन का बड़ा महत्व है, और सारे भक्त अष्टमी को ज्वारा दर्शन करते हैं । तथा दशहरे के दिन इसका विसर्जन विधि विधान के साथ करते हैं । महा अष्टमी के इस पर्व पर जन सैलाब 4.00 बजे से ही मंदिर की औेर आना आरंभ हो गया था जो देर रात्रि 12-00 बजे तक चलता रहा लगभग 15 से 20000 भक्तों ने दूर-दूर से आकर माता के दर्शन लाभ प्राप्त किया । मां अष्टमी के हवन के लाभार्थी पुष्पेंद्र मुकेश नीमा एवं उनके स्वजन थे ।मंदिर समिति द्वारा दर्शनार्थियों के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी जिसमें पार्किंग, प्रसादी वितरण इत्यादि सम्मिलित है। प्रसादी वितरण में भक्तों को कठिनाई न हो इसके लिए चार स्टॉल पृथक पृथक लगाए गए थे । प्रसादी का आकर्षण केंद्र रहा साबूदाना खिचड़ी तथा राजगीर हलवे का वितरण , जिसमें भक्तों ने देर रात तक सम्मिलित होकर उसका लाभ लिया । यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात महाआरती के समय अपार जन समुह से मंदिर परिसर भर गया । अष्टमी हवन के दौरान प्रमुख आकर्षण रहता है, मंदिर जी के पुजारी राजेशपुरी द्वारा किए जाने वाला बलिदान, जिसमें वैदिक मंत्र से भूरे कद्दू को तलवार से काटा जाता है तथा उसकी धार्मिक मान्यता एवं परंपरा अनुसार बली के उन हिस्सों का विसर्जन किया जाता है ।
मंदिर की इस मान्यता के दर्शन के हजारों भक्त साक्षी बनते हैं तथा तत्पश्चात पूर्णाहुति की जाती है । यज्ञाचार्य के रूप में पंडित हिमांशु शुक्ला रहे । तथा यज्ञ विधि के व्यवस्था कर्ता कांतिलाल नानावटी रहे । यज्ञ पूर्णाहुति के पश्चात गरबा रास का आयोजन रात्रि 9.30 बजे आरंभ हुआ जिसमें सभी भक्तगण पारंपरिक वेशभूषा में सनातनी परंपरा का पालन करते हुए गरबा कर रहे थे । गरबा रास का आकर्षण रहे नन्हे मुन्ने बच्चे एवं मां स्वरूपा बालिकायें जो विभिन्न पारंपरिक परिधानों में सज धज कर नन्हे नन्हे हाथों से गरबा रास कर रहे थे। गरबा समाप्ति पर मंदिर समिति द्वारा सभी बच्चों को पुरस्कृत किया गया। मंदिर समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राजेंद्र अग्निहोत्री ने बताया कि उक्त परंपरा मंदिर स्थापना से ही इस मंदिर में अनवरत जारी है। गरबा रास अखंड ज्योति ज्वारा दर्शन तथा हवन मंदिर की परंपरा रही है। जिसके प्रति सभी भक्तों की आस्था एवं समर्पण रहता है।
माता के नौ दिनों के पर्व में नवरात्रि का नौवां दिवस मां सिद्धिदात्री का माना जाता है मां कालिका माता मंदिर में नव दिवस तक नियमित रूप से काकड़ आरती की जाती है । मां का अनूठा श्रृंगार किया जाता है, तत्पश्चात प्रातः काल 5.00 बजे आरती की जाती है । महानवमी की काकड़ आरती के लाभार्थी रहे हैं, गजेश जी पोरवाल एवं उनके परिवार । मां के इस अनूठे पर्व के नवम दिवस की आरती में लगभग 3000 दर्शनार्थ प्रातःकाल सम्मिलित हुए तथा उन्होंने आरती एवं राजगीर हलवे की प्रसादी का लाभ लिया । महानवमी की प्रसादी लगभग तीन क्विंटल वितरित की गई ,जिसे जिसमें शुद्ध घी से निर्मित राजगिरा आटा का हलवा प्रमुख हैै। काकड़ आरती की तैयारी रात्रि 1.00 बजे से आरंभ कर दी जाती हैं, आरती की इस व्यवस्था में अतिश शर्मा दयानंद पाटीदार,राजेश डामोर, राधेश्याम परमार दादू, विनोद पांचाल, लोकेश नानावटी, निमेष जैन, जिनेंद्र जैन ( बुई) सेठ, संजय डाबी, सुजल डाबी, प्रदीप अरोड़ा, पिंटू शर्मा ,मयूर शर्मा ,लोमेश गुप्ता ,लोचन गुप्त,ा तथा शिवनारायण , मिस्त्री का अभूतपूर्व सहयोग रहा ।