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झाबुआ

शासकीय आयुर्वेद औषधालय बगई बड़ी में आठवां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया गया । भगवान धनवंतरी के पृथ्वी पर अवतरण से पहले आयुर्वेद गुप्त अवस्था में था-श्रीमती प्रफुल्ल शर्मा । आज संसार में शल्य तन्त्र (सर्जरी) आयुर्वेद की देन है- महेन्द्र शर्मा

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शासकीय आयुर्वेद औषधालय बगई बड़ी में आठवां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया गया ।
भगवान धनवंतरी के पृथ्वी पर अवतरण से पहले आयुर्वेद गुप्त अवस्था में था-श्रीमती प्रफुल्ल शर्मा ।
आज संसार में शल्य तन्त्र (सर्जरी) आयुर्वेद की देन है- महेन्द्र शर्मा

झाबुआ । राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस धनतेरस 10 नवम्बर कोे शासकीय आयुर्वेद औषधालय बगई बड़ी में आठवें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस को धन्वंतरी दिवस के दिन समाज सेवी एवं जिला योग समिति की सदस्या श्रीमती प्रफुल्ल शर्मा एवं समाजसेवी एवं गडमार्निंग क्लब के अध्यक्ष महेन्द्र शर्मा की उपस्थिति में भगवान धन्वंतरी की पूजन अर्चना कर मनाया  गया । साथ ही औषधि पौधों की प्रदर्शनी लगाई गई एवं ग्रामीण जनों को आयुर्वेदिक काढे का वितरण किया गया ।

श्रीमती प्रफुल्ल शर्मा ने इस अवसर पर बताया कि राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत साल 2016 में हुई थी। पहला आयुर्वेद दिवस 28 अक्टूबर 2018 को धनतेरस के दिन मनाया गया था। आयुर्वेद कई सालों से हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपनी अच्छी भूमिका निभाता आ रहा है। आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है। उन्होने कहा कि भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और आरोग्य का देवता माना जाता है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धनतेरस के दिन मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान धन्वंतरी  की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन से निकले भगवान  धन्वंतरी के हाथों में अमृत का कलश था। इसी वजह से दिवाली के दो दिन पहले भगवान  धन्वंतरी के जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है और आयुर्वेद के देवता कहे जाने वाले भगवान धन्वंतरी के जन्मदिन यानी धनतेरस के दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है। आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की जयंती को धनतेरस के रूप मे मनाते है । हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनवंतरी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान धनवंतरी के पृथ्वी पर अवतरण से पहले आयुर्वेद गुप्त अवस्था में था। उन्होंने आयुर्वेद को आठ अंगों में बांट कर समस्त रोगों की चिकित्सा पद्धति विकसित की।

श्रीमती शर्मा के अनुसार भगवान धनवंतरी के पृथ्वी पर अवतरण से पहले आयुर्वेद गुप्त अवस्था में था। उन्होंने आयुर्वेद को आठ अंगों में बांट कर समस्त रोगों की चिकित्सा पद्धति विकसित की। धनतेरस अर्थात भगवान ‘धनवन्तरी जयन्ती’ का अर्थ आयुर्वेद ‘विद्या का पूजन’ और विद्या पूजन का अर्थ-प्रकृति, औषधि वनस्पति और इन सबसे बढ़कर प्रकृति को गोद में उपजे प्राकृतिक निधियों का पूजन। प्रकृति की असीम अनुकम्पा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन। प्रकृर्ति के साथ सहचर्या विष्णु का है और लक्ष्मी के पति विष्णु हैं। महाकाली का वत्सल रूप विष्णु के साथ रचता है और श्री के साथ विष्णु स्वरूप विराजमान रहते हैं। धन्वन्तरी स्वयं विष्णु के अवतार माने गये हैं। यही विष्णु जो सृष्टि के पालक और रक्षक हैं। यही विष्णु जो लक्ष्मीपति हैं। श्री के साथ स्वास्थ्य और स्वस्थ होने के लिए औषधि चाहिए। स्वस्थ का अर्थ है-’दीघार्यु’ और श्री का अर्थ ‘पुरुषार्थ’ का तेज। धन्वन्तरी जिस अमृत कलश के साथ समुद्र मन्थन से अवतरित हुए थे उनमें इन तीनों का समन्वय था।

श्री महेन्द्र शर्मा ने अपने संक्षिप्त सारगर्भित उदबोधन के कहा कि आज की पीढ़ी में आयर्वेद के प्रति जागरूकता की भावना पैदा करना और समाज में चिकित्सा के आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना आज जरूरी हो गया है । उन्होने बताया कि धन्वन्तरी को भगवान विष्णु का 12 वां अवतार कहा जाता है जिनकी चार भुजायें हैं। धन्वन्तरी के ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य या आरोग्य का देवता कहा जाता है। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। आयुर्वेद चिकित्सा का भी जन्म धन्वन्तरि के समुद्र मंथन से निकलने के साथ ही हुआ, इसी वजह से धन्वन्तरि के जन्म या अवतरण दिवस वाले दिन ही राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है । श्री शर्मा ने कहा कि भगवान धनवंतरी के पृथ्वी पर अवतरण से पहले आयुर्वेद गुप्त अवस्था में था। उन्होंने आयुर्वेद को आठ अंगों में बांट कर समस्त रोगों की चिकित्सा पद्धति विकसित की। समस्त प्राणियों का कष्ट दूर करने, रोग पीड़ा से ग्रसित मानव समुदाय की जीवन रक्षा के लिए परमात्मा ने स्वयं धन्वन्तरी के रूप में अवतरित होकर जनकल्याण के लिए समुद्र मन्थन से अमृत कलश लिए प्रादुर्भाव हुए और संसार में शल्य तंत्र को पूर्णतः विकसित किया। आज संसार में शल्य तन्त्र (सर्जरी) आयुर्वेद की देन है।

इस अवसर पर आयुर्वेद चिकित्सक नीलिमा चौहान ने कहा कि आज पूरा विश्व समाज एण्टीबायटिक के प्रतिकूल प्रभाव से जूझ रहा है । इसका ऐक मात्र बेहतर उपाय है कि हम आयुर्वेद के तरफ लौटे लेकिन इसमे अभी बहुत सारे प्रामाणिकता का वैज्ञानिक कसौटी पर उतारने के लिए अनुसंधान तथा डॉक्युमेंटेशन की जरूरत है,सरकार भी इस दिशा मे प्राथमिकता से काम कर रही है ।
इस अवसर पर आयुर्वेदिक चिकित्सालय पर औषधिय पौधों की प्रदर्शनी लगाई गई एवं ग्रामीण जनों को आयुर्वेदिक काढे का वितरण किया गया । इस अवसर पर बडी संख्या में गा्रमीणों के साथ ही चकित्सालयीन परिवार के गुरुप्रसाद श्रीवास्तव और लीला चौहान आदि उपस्थित रहें । भगवान धनवंतरी की आरती के बाद प्रसादी वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।

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