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झाबुआ

वनवासी कल्याण आश्रम का 72वां स्थापना दिवस बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ मनाया गया।

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झाबुआ । वनवासी कल्याण आश्रम के 72 वें स्थापना दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन वनवासी कल्याण आश्रम पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में जिला प्रचारक श्री रजत चौहान, संघ चालक श्री मानसिंह भूरिया, जिलाध्यक्ष श्री मुन्नाभाई निनामा, जिला संगठन मंत्री गणपत रमेश परमार, मुनिया वनवासी आदि मंचासीन रहे ।


वनवासी कल्याण आश्रम के नगराध्यक्ष मनोज अरोरा ने जानकारी देते हुए बताया कि वनवासी कल्याण आश्रम परिषद स्थापना दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में बच्चो की रंगारंग कार्यक्रम का प्रस्तुतीकरण किया गया । जिला संघ चालक प्रचारक श्री रजत चौहान ने वनवासी आश्रम कल्याण परिषद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आश्रम की स्थापना 1952 में उड़ीसा राज्य जनजातीय कल्याण विभाग के एक अधिकारी रमाकांत केशव देशपांडे ,जिन्हें बालासाहेब देशपांडे के नाम से भी जाना जाता है, उन्होने इसकी स्थापना राज्य सरकार और आरएसएस के सहयोग से की थी । आजादी के बाद बाला साहब को तत्कालीन रविशंकर शुक्ल सरकार ने आदिवासी बहुल जशपुर क्षेत्र में आदिवासी विकास योजना के क्षेत्रीय अधिकारी के पद पर काम करने के लिए नियुक्त किया था। इसका उद्देश्य आदिवासियों के प्रति ईसाई मिशनरी स्कूलों की अपील का प्रतिकार करना था। जशपुर के अलावा रायगढ़ और सरगुजा जिलों में स्कूलों की स्थापना की तथा बड़ी आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में आश्रम तेजी से विकसित हुआ और 1963 में एक स्थायी कार्यालय स्थापित किया गया, जिसका उद्घाटन आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर ने किया था। उन्होने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना के बारे में बताया कि 1977 में, जनता पार्टी सरकार के दौरान , इसे राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ इसके नए नाम, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के रूपन मे पहिचान मिली । उन्होने कहा कि वनवासी और आदिवासी के बीच का अंतर समझाते हुए कहा कि, ये दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं है। बल्कि इतिहास में ब्रिटिश शासन के दौरान इतिहास लेखन में हुई त्रुटियों के परिणामस्वरूप इन शब्दों को एक दूसरे का पर्याय माना गया। जबकि ऐसा नहीं है। आदिवासी भारत का मूल निवासी है। इस दौरान उन्होंने प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल में जनजातीय लोगों के गौरवपूर्ण इतिहास पर भी प्रकाश डाला। प्रत्येक व्यक्ति को समाज के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। अपने गांव समाज से जुड़ा रहना चाहिए।
वनवासी कल्याण आश्रम के जिलाध्यक्ष श्री मानसिंह भूरिया ने इस अवसर पर जानकारी दी कि 1978 से 1983 तक, इसके पूर्णकालिक स्वयंसेवकों की संख्या 44 से बढ़कर 264 हो गई जिनमें से 56 आदिवासी थे। वर्तमान में पूरे देश के 312 जिलों में बनवासी कल्याण आश्रम संचालित हैैं और एक हजार से अधिक पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं द्वारा इसकी देखरेख की जाती है। जबकि अधिकांश जिलों में प्राथमिक विद्यालय हैं, कई स्थानों में आवासीय विद्यालय, छात्रावास, पुस्तकालय और स्वास्थ्य केंद्र हैं। महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजनों में चिकित्सा शिविर स्थापित करना, पारंपरिक खेल खेलना और आदिवासी त्योहार मनाना शामिल हैं।,
इस अवसर पर श्री गणपत, श्री रमेश परमार, श्री मुनिया ने भी अपने विचार साझा किये । जिला प्रचारक द्वारा मुख्य अतिथि का सम्मान किया गया और बताया कि जिले की औषधी के बारे मै यहां के वनवासी उत्कृष्ठ जानकारी रखते है । श्रीरमेश परमार भी अपने उदबोधन में बताया कि जनजातीय समाज को सरकार की योजनाओ की जानकारी का अभाव है जिस से फायदा नही उठा पाते । इसलिये हमारा नैतिक दायित्व है कि हम इस बारे मे जनजागृति के माध्यम से वनवासी समाज के लिये कार्य करें ।
कार्यक्रम का सफल संचालन नगर अध्यक्ष मनोज अरोरा ने किया । इस अवसर पर जिला सचिव कानजी भूरिया, विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री राकेश सहरिया, जिला युवा संयोजक अलकेश मेडा, रजनीश गामड, अजय भूरिया, भाजपा मण्डल अध्यक्ष अंकुर पाठक, स्वीट गोस्वामी, किशोर भाबोर ,प्रणव भट्ट, आदि उपस्थित रहे ।

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