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झाबुआ

विश्व मांगल्य सभा के 14 वें स्थापना दिवस पर दी गई मातृशक्ति को बधाई । जब माता सक्षम और संस्कारवान होगी तो उससे उत्पन्न संतान निश्चित रूप से सशक्त राष्ट्र के निर्माण में सहभागी बनेगी- श्रीमती सूरज डामोर ।

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विश्व मांगल्य सभा के 14 वें स्थापना दिवस पर दी गई मातृशक्ति को बधाई ।
जब माता सक्षम और संस्कारवान होगी तो उससे उत्पन्न संतान निश्चित रूप से सशक्त राष्ट्र के निर्माण में सहभागी बनेगी- श्रीमती सूरज डामोर ।
झाबुआ । विश्व मांगल्य सभा के 14 वें स्थापना दिवस के अवसर पर विश्व मांगल्य सभा मध्यप्रदेश की अध्यक्षा श्रीमती सुरज डामोर ने सभी कार्यकर्ता बहिनों एवं देश भर की मातृशक्ति का अभिनंनदन करते हुए कहा कि विश्व मांगल्य सभा की स्थापना 19 जनवरी को 2010 को महाराष्ट्र में हुई थी । श्रीमती डामोर ने नाथ सम्प्रदाय के 18 वें गुरू परमंपूज्य आचार्य स्वामी जितेन्द्रनाथ जी महाराज, अंजनीगांव सूरजी महाराष्ट्र जो विश्व मांगल्य सभा के आधारस्तंभ होकर इसके प्रमुख है, के सन्देश का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके अनुसार देश भर की 65 करोड नारी शक्ति याने मातृशक्ति निरपेक्ष भाव से कार्य करते हुए सभी स्थान से सभी स्तर की कार्यकर्ता बहिने उंच-नीच का भेदभाव परे रख कर भारत, भारत की संस्कृति तथा भारत की हर मां का पुरूषार्थ, उनका तेज ऐसे बढायें कि भारत माता विश्व की तारणहार तारणशक्ति बन जाये । ज्ञातव्य ही इन्ही परम पूज्य के संदेश से प्रभावित होकर प्रमुखरूप से डा.वैशाली जोशी सहित 14 बहिनो ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म, संस्कृति के लिये पूर्णकालीक रूप से समर्पित किया है। उसी तरह हम सभी विश्वमांगल्य सभा से जुडी बहिनों को भी थोडा ही सही,समय निकाल कर इस पूण्य कार्य में सहभागी होना चाहिये ।
श्रीमती डामोर  ने कहा कि विश्व मांगल्य सभा के स्थापना दिवस पर मातृशक्ति के लिये सन्देश है कि संस्कार हमारे जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इसके बिना जीवन अधूरा है। साहित्य व संस्कृति के बारे में बच्चों को समय-समय पर बताया जाना हमारा दायित्व है। इससे उन्हें कुछ अच्छे गुण सीखने का अवसर मिलेगा। संस्कार ही समाज में सम्मान से जीने का हक दिलाते हैं। व्यक्ति जैसा व्यवहार करता है, वैसा ही उसके संस्कारों का प्रदर्शन होता है। मां की तुलना कभी नहीं किसी से नहीं की जा सकती है, वह तो अपने आप नें नारी शक्ति है। विश्व मांगल्य सभा का उद्देश्य संस्कारों में ईमानदारी, त्याग, अनुशासन, साहस, परिश्रम के साथ समाज का नव निर्माण करने में मातृशक्ति की सार्थक भूमिका है।
उन्होने आगे कहा कि सशक्त राष्ट्र के लिए सक्षम मातृत्व का होना बहुत आवश्यक है। जब माता सक्षम और संस्कारवान होगी तो उससे उत्पन्न संतान निश्चित रूप से सशक्त राष्ट्र के निर्माण में सहभागी बनेगी। एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में माता की भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि भारतीय संस्कृति में मां का बड़ा महत्व है। जितने भी वीर महापुरुषों के उदाहरण हम सबके सामने प्रस्तुत किए जाते हैं, उनके मूल में एक मां के त्याग तपस्या व संस्कार सहित लालन-पालन छिपा होता है। हमारी संताने राष्ट्रवादी-राष्ट्रीय समाज के विचार वाली हों, इसके लिए एक मां का दायित्व अहम हो जाता है। विश्वमांगल्य सभा मातृ निर्माण के देव-देश कार्य में लगा हुआ है। एक संस्कारित राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत माता निश्चित ही महापुरुष की जन्मदात्री होती है। राष्ट्र की मूल संस्था परिवार होती है, परिवार माता पर निर्भर करता है अर्थात इस राष्ट्र के निर्माण या उत्थान के लिए एक मां की भूमिका अहम होती है। इसलिये मातृशक्ति को निर्लिप्त भाव से बगैर भेदभाव के समाजोत्थान के साथ ही सशक्त भारत राष्ट्र बनाने की दिशा में अपनी भूमिका का निर्वाह करना होगा ।
श्रीमती डामोर ने विश्व मांगल्य सभा के 14 वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदेश की मातृशक्ति से आव्हान किया कि हमारा भारत देश विश्व गुरू के रूप में  अपने आपको प्रतिस्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ रहा है। हमारी सनातन संस्कृति भी ’’मातृ देवो भव’’ के साथ ही यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमंते तत्र देवता’’पर आधारित है। माता ही  प्रथम गुरू के रूप  में मानी जाती है। बगैर जाति-पाति के भेदभाव के हम सभी को  कार्य करने का यह सुनहरा अवसर मिला है इसलिये प्रदेश की मातृशक्ति को संकल्पबद्ध होकर संस्कारों के प्रस्फुटनदात्री के रूप  में अपनी भूमिका निभाना होगी ।

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