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झाबुआ

ज्योतिर्मय जीवन जीने के लिए अग्रसर बने और अपने भीतर त्याग की चेतना को जगाए :- साध्वी श्री उर्मिला कुमारी जी

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झाबुआ – .पुज्य गच्छाधिपति आचार्य भगवन्त श्रीमद्विजय जयानन्द सुरीश्वर जी म.सा.के शिष्य, मेहता कुल गौरव, झाबुआ के नन्दन परम पुज्य मुनिराज श्री विधान विजय जी म.सा. अपने संयम जीवन के तीन वर्ष पूर्ण कर चतुर्थ वर्ष में प्रवेश करने के उपलक्ष्य मे व मुनि श्री के दीक्षा दिवस के निमित्त, परम श्रद्धेय आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री उर्मीला कुमारी जी म. सा. आदि ठाणा 4 के पावन सानिध्य मे बुधवार को सामूहिक सामायिक व प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन ऋषभदेव बावन जिनालय मंदिर में रखा गया ।

बुधवार को प्रातः 9.15 बजे साध्वी श्री उर्मिला कुमारी जी, साध्वी श्री ज्ञानयशा जी व साध्वी श्री ऋतुयशा जी के पावन सानिध्य में सामूहिक रूप से सामायिक पचखांड लिए गए । तत्पश्चात साध्वी वृंद द्वारा नमस्कार महामंत्र के जाप के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । साध्वी ज्ञानयश जी ने सर्वप्रथम उपस्थित जनों को ध्यान करवाया । साध्वी श्री उर्मिला कुमारी जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस दुनिया में ताकतवर कौन है जिसके पास धन संपत्ति है वह अमीर है या धनवान है वह ताकतवर है या जिसके पास सत्ता है वह व्यक्ति ताकतवर है या जिसके पास तत्वों का अंबार है वह व्यक्ति शक्तिशाली है । यदि धन संपत्ति ताकतवर होती ,तो एक धनवान व्यक्ति 8 कर्म रूपी कर्म-चारियों के पीछे क्यों घूमते हैं और यदि सत्ता पर बैठा हुआ व्यक्ति , यदि शक्तिशाली होता, तो वह धन के पीछे क्यों घूमता । और यदि जिसके पास शस्त्र है और वह व्यक्ति शक्तिशाली होता, तो शस्त्रों को समुद्र में डूबाने की नौबत क्यों आती । प्रश्न यह है कि ताकतवर कौन है इस दुनिया में जिनमें त्याग की चेतना जागृत होती है वह व्यक्ति दुनिया का समर्थ व्यक्ति है वह व्यक्ति शक्तिशाली व्यक्ति है । जिसके भीतर त्याग की चेतना जागृत हो रही है। जिसने त्याग कर लिया, सब कुछ छोड़ दिया ,उसके चरणों में दुनिया अनायास ही झुक जाती है । त्याग की चेतना, छोड़ने की चेतना, हर किसी में पैदा नहीं होती और यदि पैदा होती है तो अंतराय कर्म टूटता है और वह व्यक्ति किसी भी क्षण या समय साधुत्व को प्राप्त कर लेता है । साध्वी श्री ने यह भी बताया कि जीवन में त्याग और समर्पण का बहुत महत्व है अमीर के सामने दुनिया झुकती है लेकिन अमीर भी साधु संतों के आगे झुकते हैं । घटना के माध्यम से आपने बताया गुरु रामदेव भिक्षा के लिए जा रहे थे उनके शिष्य छत्रपति शिवाजी ने गुरु को भिक्षा के लिए जाते हुए देखा, तो शिष्य ने गुरु से राजमहल पधारे का आग्रह किया । शिष्य की बात मानकर गुरु रामदेव , छत्रपति शिवाजी के राजमहल पधारे और गुरु ने जैसे ही भिक्षा के लिए झोली आगे की । छत्रपति शिवाजी ने उनकी झोली में ताम्र पत्र डाला । तब गुरु ने कहा कि भिक्षा में रोटी , दाल, आटा देते , यह क्या दिया । तब शिवाजी ने कहा उसे पढ़ कर देखो । गुरु ने पढा उसमे लिखा था मे अपना सारा राज्य गुरु को समर्पित करता हूं । लेकिन गुरु ने इनकार कर दिया तो शिवाजी नहीं माने । और गुरु ने कहा शिवाजी तुम मेरे उत्तराधिकारी के रूप में शासन करो । घटना से यह शिक्षा मिली है कि शिष्य का गुरु के प्रति समर्पण और त्याग भावना । दुनिया में इच्छाओं का कभी अंत नहीं होता है धनवान व्यक्ति मे, धन की लालसा ओर बढ़ती है और त्यागी व्यक्ति धन छोड़ता जाता है । लोभी व्यक्ति धन इकट्ठा करता है और त्यागी व्यक्ति छोड़ता चला जाता है । दुनिया में भ्रष्टाचारी , धोखाधड़ी होती है उससे पता चलता है कि त्याग की चेतना जागृत नहीं हुई हैं । यदि त्याग की चेतना जग जाए , तो व्यक्ति अन्याय नहीं कर सकता । किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं कर सकता । आपने बताया कि दुनिया में दो प्रकार की ताकत होती है तलवार की ताकत और आत्मा की ताकत । तलवार की ताकत जब प्रबल होती है तो राज्य मिल जाता है धन वैभव भी मिल जाता है । लेकिन उस ताकत का अंत कैसा होता है या दशा कैसी होती है यह समय बताता है । दूसरी आत्मा की ताकत तलवार की ताकत को भी परास्त कर सकती है । तलवार की ताकत को कोई भी परास्त कर सकता है लेकिन आत्मा की ताकत को कोई भी नहीं । भगवान महावीर की वाणी जो हजारों हजारों योद्धाओं को भी जीत लेती है यदि अपनी आत्मा को नहीं जीता ,तो उसकी विजय विजय नहीं है । जिसे आत्मा ने जीत लिया है वह किसी को भी परास्त कर सकता है । त्याग की चेतना , सब कुछ छोड़ने की चेतना को जागृत करती है.। आपने अपने उदबोधन यह भी बताया कि व्यक्ति को आलस्य को त्याग देना चाहिए, यदि यदि व्यक्ति आलस्य को नहीं त्यागता है तो वह विकास के पद पर आगे नहीं बढ़ सकता है । अंत में अपने आचार्य महाप्रज्ञ की कविता के माध्यम से अपनी बात समाप्त की …..जीना हो तो ज्योतिर्मय जीना, जीना हो तो मोतीमय जीना…. बहुत बड़ा अभिशाप जगत में ,अंधकारमय जीवन जीना……जीना हो तो पूरा जीना ,मरना हो तो पूरा मरना ……बहुत बड़ा अभिशाप जगत में , आधा जीना आधा मरना

दीक्षा दिवस निमित्त इस सामूहिक सामायिक आयोजन में जैन श्वेतांबर सिंह अध्यक्ष मनोहर लाल भंडारी ,वर्धमान स्थानक श्री संघ अध्यक्ष प्रवीण रूनवाल ,तेरापंथ सभा से पंकज कोठारी ने भी अपनी बात कही । साध्वी श्री ने उपस्थित धर्म सभा को मांगलिक सुनाई । कार्यक्रम का सफल संचालन प्रोफेसर डॉ प्रदीप संघवी ने किया व आभार श्वेतांबर संघ से संजय मेहता ने माना ।

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