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झाबुआ

आओ पता लगाए:- आखिर क्यों वन विभाग में लकडियों के परिवहन पास/ ट्रांजिट पास (टी.पी )के लिए ऑनलाइन पद्धति को नहीं अपनाया जा रहा हैं…….?

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झाबुआ – वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी कार्यशैली और कार्यप्रणाली के चर्चे अब भोपाल तक पहुंच चुके हैं । जहां विभाग के कर्मचारियों द्वारा शासन द्वारा निर्देशित ऑनलाइन पद्धति को नकारते हुए ऑफलाइन पद्धति के माध्यम से कार्य कर रहे हैं जिससे शासन को राजस्व हानि भी हो रही है और माफियाओ को संरक्षण मिल रहा है ।

जानकारी अनुसार वन एवं पर्यावरण व्यवस्था अनुसार सरकार द्वारा पूर्व में कई प्रजातियों की लकडियों को परिवहन परमिट या ट्रांजिट परमिट व्यवस्था से मुक्त कर दिया गया था । पूर्व में बिना परमिट के कई प्रजातियों को लकड़ीयो को लोग राज्य में कहीं भी परिवहन कर सकते थे लेकिन पश्चात नियम में कुछ बदलाव हुए । निजी लगाए गए वृक्षों के लकडियों के परिवहन के लिए भी लोगों को वन विभाग से परिवहन परमिट लेना पड़ता है । बिना परमिट परिवहन कानून अपराध की श्रेणी में आता है । संभवत: जानकारी अनुसार किसी भी वनोपज का मध्य प्रदेश राज्य में या राज्य के बाहर से या राज्य में पश्चात उपबंधित नीति के सिवाय , नियमों के साथ संलग्न प्रारूप में जारी ऑनलाइन अभिवहन प्रमाण पत्र या प्रारूप में जारी ऑनलाइन अनापत्ति प्रमाण पत्र अथवा ऑनलाइन नेशनल ट्रांजिट पास (टी.पी) सिस्टम द्वारा ऑनलाइन अभिवहन अनुज्ञा पत्र या ऑनलाइन अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना परिवहन या गमनागमन नहीं किया जा सकता । यह अनुज्ञा पत्र किसी वन अधिकारी या ग्राम पंचायत या नियमों के अधीन प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा नेशनल ट्रांजिट पास सिस्टम द्वारा ऑनलाइन जारी किया जाता है। इसमें ऐसे वनउपज पर , जिसमें राज्य सरकार द्वारा कुछ प्रजाति की लकडियों को छूट दी गई है पर नियम लागू नहीं होता है । लेकिन वर्तमान में झाबुआ जिले में भी गुजरात, राजस्थान ,महाराष्ट्र से भी सागौन, साल तथा अन्य प्रजाति की लकडियों का परिवहन हो रहा है । साथ ही अन्य जिलों से भी इस जिले में लकडियों का परिवहन, बिना परमिट के लगातार हो रहा है तथा मध्य प्रदेश के लगभग सभी जिलों में लकडियों के परिवहन पास के लिए ऑनलाइन पद्धति को अपना लिया गया है लेकिन संभवत: मध्यप्रदेश का झाबुआ जिला ही एक ऐसा जिला है जहां इस ऑनलाइन पद्धति को नकारते हुए ऑफलाइन पद्धति के माध्यम से ही टी.पी जारी की जा रही है । प्रश्न यह है कि जब संपूर्ण प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई है तो वन विभाग झाबुआ इस आनलाईन प्रक्रिया को क्यों नहीं अपना रहा है । वही इस ऑफलाइन पद्धति के कारण कई लकड़ी माफिया एक जिले से दूसरे जिले तथा एक राज्य से दूसरे राज्य आसानी से अवैध रूप से परिवहन कर शासन को राजस्व हानि पहुंचा रहे हैं । जबकि नियम अनुसार इन्हें ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से ट्रांजिट परमिट लेना आवश्यक है । लेकिन विभाग के आला अधिकारी इन नियमों के विपरीत अपनी मनमानी कार्यशैली से शासन को राजस्व हानी पहुंच रहे हैं । जबकि वन विभाग के आला अधिकारियों ने पिछले वर्ष ऑफलाइन टेंडर पद्धति में फर्म विशेष की निविदा स्वीकृत नहीं होने पर, संभवतः कर्मचारी को ऑनलाइन ट्रेनिंग के लिए भेज गया तथा इस इस निविदा को पुन: ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से आंमत्रित की गई । प्रश्न यह है कि आखिर क्यों वन विभाग द्वारा ट्रांजिट परमिट या परिवहन पास के लिए ऑनलाइन पद्धति को नहीं अपनाया जा रहा है और शासन को राजस्व हानि पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है ।

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