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झाबुआ

अखंड भूमंडलीय आचार्य जगतगुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी का 547 व प्राकट्य महोत्सव धूमधाम से मनाया गया । नगर मे निकाला गया भव्य चल समारोह, नगर हुआ गोवर्धननाथ मय ।

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अखंड भूमंडलीय आचार्य जगतगुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी का 547 व प्राकट्य महोत्सव धूमधाम से मनाया गया ।
नगर मे निकाला गया भव्य चल समारोह, नगर हुआ गोवर्धननाथ मय ।

झाबुआ । शहर के मध्य स्थित श्री गोवर्धननाथजी की हवेली झाबुआ पर वैष्णवजनों के आराध्य एवं पुष्टि मार्ग के प्रवर्तक एवं संस्थापक जगतगुरु श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी का 547 वां प्राकट्य महोत्सव वैष्णवजनों द्वारा धूमधाम से मनाया गया । त्रिदिवसीय आयोजन में  2 मई गुरुवार को सायंकाल मूल पुरुष वल्लभ साखी एवं सत्संग यमुना मंडल की महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया गया । 3 मई शुक्रवार को सायंकाल 5.00 बजे सर्वोत्तम स्रोत एवं श्री वल्लभ आख्यान का सामूहिक पठन किया गया । तत्पश्चात श्रीजी के स्वयं दर्शन में प्रभु श्री गोवर्धननाथजी को विविध पुष्पों से सुसज्जित फुल बंगलो में विराजित किया गया।  जिसका दर्शन लाभ सभी वैष्णव जनों ने आनंद के साथ लिया । 4 मई शनिवार बरुथनी  एकादशी को महाप्रभुजी के प्राकट्य उत्सव के उपलक्ष में मंदिर के सभी द्वारों पर फूलों एवं आम के पत्तों से आकर्षक सजावट की गई । प्रातः प्रभुजी को पालना में झूलाया गया, उसके पश्चात राजभोग दर्शन में प्रभु के महामंगल तिलक की आरती हुई । सायंकाल 5.30 बजे मंदिर परिसर से बैंड बाजों की मधुर स्वर लहरियों एवं जय घोष के साथ शोभा यात्रा प्रारंभ हुई, जिसमें पुरुष वर्ग सफेद वस्त्र एवं केसरिया पट्टा एवं महिलाएं पारंपरिक परिधान में सम्मिलित हुई । संपूर्ण मार्ग में वैष्णव परिजनों द्वारा शोभा यात्रा का भव्य स्वागत स्थान स्थान पर किया गया । युवावर्ग में भी इस शोभा यात्रा को लेकर काफी उत्साह था तथा उन्होंने जमकर नृत्य किया । तथा महाप्रभु जी के चित्र को शाही रथ में विराजित कर शहर के प्रमुख मार्गो से शोभायात्रा पुनः मंदिर जी को पहुंची, जहां पर श्री गोवर्धननाथजी के केसरी बंगले के मनोरथ के दर्शन हुए। उसके पश्चात मुखियाजी द्वारा महाप्रभुजी को तिलक लगाकर आरती उतारी गई । पश्चात सभी वैष्णव जनों में महाप्रसादजी का वितरण किया गया। महाप्रसाद जी के लाभार्थी परिवार शाह एवं महाजन परिवार रहे ।

श्री गोवर्धन नाथ जी मंदिर ट्रस्ट द्वारा इस सफल आयोजन में सम्मिलित सभी वैष्णव जनों का आभार व्यक्त किया गया । इस प्रकार त्रिदिवसीय इस आयोजन का समापन हुआ।  श्री वल्लभाचार्यजी की जयंती उनके अनुयायी भक्तगण द्वारा वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी को धूमधाम से झाबुआ स्थित गोवर्धन नाथ मंदिर में मनाई जाती है। वैष्णव जन श्री वल्लभाचार्य जी को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार भी मानते हैं। पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के संस्थापक सदस्य होने से उन्हें भक्तगण कई नाम से भी जानते हैं। वैष्णव वल्लभाचार्यजी को कृष्ण के अवतार के साथ अपना आराध्य भी मानते हैं। श्री वल्लभाचार्यजी का जन्म आज से 547 वर्ष पूर्व एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आपने बहुत ही अल्प समय में वेद अध्ययन कर अपने ज्ञान की वर्षा करने के लिए निरंतर 20 वर्षों तक भारत के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण पर निकले और कृष्णभक्ति का अलख जगाया ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत पर एक गाय प्रतिदिन जाकर अपने आंचल से एक निश्चित स्थान पर दूध विसर्जित करती थी इस आश्चर्य को महाप्रभु ने देखा और उसे स्थान पर खुदाई की तब श्री गोवर्धननाथजी की बालप्रतिमा उन्हे पर्वत से प्रकट हुई जिसे ऐसा माना जाता है कि उसे नाथद्वारा में प्रतिस्थापित किया गया । इस प्रकार से यह वल्लभ संप्रदाय का आरंभ हुआ और स्थान स्थान पर श्रीजी की स्थापना कर नाथद्वारा मंदिर के अनुरूप यहां पर पूजा की व्यवस्था की जाती रही है। श्री वल्लभाचार्य जी का जन्म एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो वाराणसी के पास के रहने वाले थे । इनके पिताजी और माताजी बचपन से ही धार्मिक पार्वती के थे । वैष्णव संप्रदाय के कई सदस्यगण यह मानते हैं कि महाप्रभु को भगवान कृष्ण का साक्षात्कार भी हुआ है। इस प्रकार से महाप्रभु का यह उत्सव उन्हीं के अनुयायीगण प्रतिवर्ष मनाते आए हैं। श्री गोवर्धननाथ मंदिर ट्रस्ट ने सभी वैष्णव अनुयायियों को इस उत्सव की बधाई देते हुए इसमे सहभागी समस्त भक्तों का आभार व्यक्त किया है ।

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