झाबुआ

संत रविदास समाज में व्याप्त छुआछूत, भेदभाव और जातिवाद के कट्टर विरोधी थे : – जिला संयोजक मनोज अरोरा

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झाबुआ -रविदास जयंती संत रविदास जी की जयंती के रूप में मनाई जाती है। संत रविदास 15वीं-16वीं शताब्दी के एक महान भक्त, समाज सुधारक और कवि थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी जयंती माघ पूर्णिमा के दिन (फरवरी महीने में) मनाई जाती है। संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन वाराणसी में हुआ था । उन्होंने प्रेम, समानता और मानवता का संदेश दिया। संत रविदास के दोहे और भजन आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। इस दिन संत रविदास के अनुयायी भजन-कीर्तन, नगर कीर्तन और धार्मिक सभाएँ आयोजित करते हैं। वाराणसी स्थित उनके जन्मस्थान पर विशेष कार्यक्रम होते हैं।

इसी कड़ी में संत रविदास की जयंती के अवसर पर विभिन्न समाज के लोग आज  गोपाल कॉलोनी स्थित मंगल भवन पर  एकत्रित हुए और संत रविदास के चित्र पर पुष्पमाला और पुष्प अर्पित कर उनको याद किया । एनजीओ प्रकोष्ठ के जिला संयोजक मनोज अरोरा ने संत रविदास का प्रसिद्ध दोहा दोहराया…..”मन चंगा तो कठौती में गंगा” –  याने यदि मन शुद्ध है, तो परमात्मा की प्राप्ति कहीं भी संभव है। अरोरा ने यह भी बताया कि संत रविदास समाज में व्याप्त छुआछूत, भेदभाव और जातिवाद के कट्टर विरोधी थे सामाजिक महासंघ के अध्यक्ष नीरज राठौर ने बताया कि संत रविदास का जीवन और विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी जयंती न केवल उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का दिन है, बल्कि उनके विचारों को अपनाने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने का भी अवसर है । पद्मा श्री रमेश परमार ने बताया कि संत रविदास सभी को समान मानते थे और किसी भी जाति धर्म में भेदभाव नहीं करते थे । वे मानते थे कि व्यक्ति का जन्म नहीं, बल्कि उसके कर्म ही उसे महान बनाते हैं ।  इस अवसर पर सामाजिक महासंघ अध्यक्ष नीरज राठौर, एनजीओ प्रकोष्ठ जिला संयोजक मनोज अरोरा, पद्मश्री रमेश परमार व शांति परमार , भैरोसिंह चौहान, हरीश शाह, पीड़ी रायपुरिया, श्री शास्त्री आदि अनेक समाज के लोग उपस्थित थे ।

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