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झाबुआ

तेरापंथ धर्मसंघ की शासनमाता, साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का महाप्रयाण……

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झाबुआ- जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ की शासनमाता व साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी का गुरुवार प्रात करीब 8:45 नई दिल्ली में देवलोकगमन हो गया । वर्तमान में आप अध्यात्म साधना केंद्र नई दिल्ली में प्रवासित थे । श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के 11वें अनुशासन व अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक आचार्य श्री महाश्रमण जी ने उनकी भावना अनुसार गुरुवार प्रात 7:27 बजे तिविहार संथारा (अन्न का आजीवन त्याग) व करीब 8:30 चोविहार संथारे का प्रत्यया खान कराया । साध्वी श्री ने करीब 1 घंटे 18 मिनीट तिविहार संथारा व करीब 15 मीनीट चोविहार सनथारे सहित सामाधिकरण को प्राप्त किया । संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ सहित सहित पूरे जैन समाज ने साध्वी प्रमुखा के महाप्रयाण पर श्रद्धांजलि दी गई । तेरापंथ समाज झाबुआ ने भी साध्वीश्री के महाप्रयाण पर जप तप के माध्यम से श्रद्धांजलि दी ।

जानकारी देते हुए तेरापंथ समाज झाबुआ के संरक्षक ताराचंद गादीया ने बताया कि साध्वी श्री की अस्वस्थता को देखते हुए स्वयं आचार्य श्री महाश्रमण जी , राजस्थान से उग्र विहार करते हुए 6 मार्च को दिल्ली पधारे और तब से उनकी चित समाधि हेतु जागरूक रहें । गादीया जी ने यह भी बताया कि कुछ वर्षों पूर्व आपके जीवन के विशिष्ट गुणों व धर्म संघ को दी जा रही अभूतपूर्व सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए आचार्य श्री ने 1 अगस्त 2016 को असाधारण साध्वी प्रमुखा का संबोधन प्रदान करवाया । साध्वी श्री ने साध्वी प्रमुखा पद मनोयन के 50 वर्ष स्वर्ण जयंती पूर्ण होने पर आचार्य श्री ने शासन माता अलंकरण से अलंकृत किया । तेरापंथ समाज ने साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी के महापरायण को अनुकरणीय क्षति बताया है समाज जन उन्हें असाधारण साध्वी करार देते हुए एक युग का अवसान बताया है ।

साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का जीवन परिचय।

बीसवीं सदी के प्रख्यात धर्मनायक, लाखों लोगों की आस्था के केंद्र, गति, प्रकाश और ऊर्जा के पर्याय महामानव आचार्य श्री तुलसी की एक विलक्षण कृति है- संघमहानिदेशिका, महाश्रमणी असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा । जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यों के निर्देशन में साध्वी समाज का पाच दशकों तक कुशल नेतृत्व कर इन्होंने एक गौरवपूर्ण कीर्तिमान बनाया है। शुभ्रवसना, ज्योति शक्तिस्वरूपा ये एक अप्रमात साधिका है जिनमें अध्यात्मनिष्ठा, गुरुनिष्ठा और संगनिष्ठा की त्रिवेणी प्रवाहित है।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी का जन्म 22 जुलाई सन् 1941 को कोलकाता महानगर में हुआ। इनके पिता का नाम सूरजमल जी बैद एवं माता का नाम छोटी बाई था। बालिका कला बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि विवेकशील एवं संकोची स्वभाव की थी। 15 वर्ष की आयु (सन् 1956) में उन्होंने पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश किया। लगभग 4 वर्षों की प्रशिक्षण अवधि के दौरान कला ने विनम्र एवं मेधावी मुमुक्षु के रूप में अपना स्थान बनाया। गुरु पूर्णिमा का पवित्र दिन (8 जुलाई, सनृ 1960) उम्र के 19वें पायदान पर, तेरापंथ की उद्गगम स्थली केलवा में नवमाधिशास्ता था आचार्य श्री तुलसी से चारित्र ग्रहण किया। गुरु की पवित्र सन्निधि में व्याकरण, कोश, तर्कशास्त्र, आगम, दर्शन आदि अनेक विद्या-शासकों का तलस्पर्शी अनुशीलन कर सकता वर्षीय संज्ञा पाठ्यक्रम में विशेष योग्यता प्राप्त की ।अध्ययन-अध्यापन और लेखन के साथ हजारों पद्य परिमाण कण्ठस्थ कर साध्वियो की अग्रिम पंक्ति में स्थान बना लिया।। 12 जनवरी सन् 1972 , गंगाशहर की गौरव धरा पर आचार्य श्री तुलसी ने इन्हें साध्वीप्रमुखा पद पर नियुक्त किया । उस समय इनकी अवस्था मात्र 30 वर्ष थी । तब से लेकर अनवरत तेरापंथ की अष्टम साध्वीप्रमुखा के रूप में गुरुत्रयी (श्री तुलसी-महाप्रज्ञ -महाश्रमण) के पावन निर्देशन में ये विशाल साध्वी समुदाय का गरिमापूर्ण नेतृत्व कर रही है ।
इनके बहुआयामी व्यक्तित्व,नेतृत्व और कर्तृत्व को विविध रूपों में अभिव्यक्त किया जा सकता है –
प्रभावी प्रवक्ता…………।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी एक प्रभावशाली वक्ता है । इनका वक्तव्य एक-एक वाक्य को प्रेरणा-दीप बनाने वाला प्रतीत होता है । शब्दों का सहज प्रवाह,रोचक उदाहरण, संक्षिप्तता और नवीनता इनके वक्तृत्व की विरल विशेषताएं है । अनेकशः अनुभव होता है कि एक बार साध्वीप्रमुखाश्री का प्रवचन सुनने वाले व्यक्ति सदा के लिए इनके प्रभाव-क्षेत्र में आ जाता है । विशेष संघीय उपक्रम हो या सार्वजनिक कार्यक्रम, सभा-संस्था के अधिवेशन हो या दैनिक प्रवचन , गंभीर वक्तृत्व-शैली श्रोताओं के अंतः करण को परिवर्तन की दिशा में प्रस्तुत कर देती है
प्रबुद्ध साहित्यकार……………।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी साहित्य-क्षितिज पर एक प्रौढ़ लेखिका के रूप में प्रतिष्ठित है । प्रांजल भाषा, प्रभावी लेखन शैली, कसे हुए वाक्य तथा तथ्य-कथ्य की पूर्ण अभिव्यक्ति देने वाले शब्द-शिल्पन इसकी सृजन चेतना के अपूर्व वैशिष्ट्य है । भाव, भाषा और शैली का यह अद्भुत सौष्ठव पाठक को अर्थ से इति तक बांधे रखता है । गद्य, पद्य, इतिहास, उपन्यास, यात्रावृत, जीवनवृत्त आदि विविध विधाओं में इनकी लेखनी निर्बाध रूप से प्रवाहित हुई है ।
इस साहित्यिक प्रतिभा ने न केवल सामान्य पाठकों को बल्कि देश के प्रसिद्ध साहित्यकारों, मुर्धन्य लेखकों और विचारों को भी प्रभावित किया है ।।

नैसर्गिक कवयित्री………
साध्वी प्रमुखाश्री जी को निसर्गतः काव्य प्रतिभा प्राप्त है । कविताओं में संवेदनशीलता, सौंदर्य बोध, क्रांति की गूंज और भक्ति का प्रवाह स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है । ‘सांसों का इकतारा’ तथा ‘धूप-छांव’ दो प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं, जिनमें विविध विषयस्पर्शी 200 से अधिक कविताओं का समाहार है । इनके द्वारा रचित शताधिक गीतों में भक्तिसमर्पण के साथ-साथ युगीन समस्याओं का समाधान भी समाहित है । संस्कार-निर्माण एवं नारी सशक्तीकरण के संदर्भ में भी इन्होंने अंतः स्पर्शी गीत रचे हैं। तुलसी-प्रबोध’ एवं ‘विकास की वर्णमाला’ इनकी गागर में सागर तुल्य सरस गेय कृतियां है।
कुशल संपादिका…………।
लेखिका और कवयित्री होने के साथ-साथ साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ख्यातिप्राप्त संपादिका भी हैं। आचार्यश्री तुलसी ने हिंदी, संस्कृत और राजस्थानी भाषा में तत्वविद्या, दर्शन, योग, काव्य-साहित्य, जीवन-चरित्र, आध्यात्मिक-औपदेशिक गीतों से संबद्ध शताधिक ग्रंथों की सर्जना की। उनमें अधिकांश ग्रंथों का संपादन साध्वीप्रमुखाजी ने किया। तुलसी जन्म शताब्दी (सन्2014) क्या हो सर पर तुलसी वाड्॰मय को नए परिवेश में प्रस्तुत कर एक ऐतिहासिक कार्य किया।वाड्॰मय में समाहित आचार्यश्री तुलसी का आत्मकथा ‘मेरा जीवन:मेरा दर्शन’ (25 खण्ड) को कालजयी ग्रंथ माना जा सकता है। आगम संपादन कार्य में भी संपृक्त रहीं। विशालकाय भगवती सूत्र की जोड़ (7 खण्ड) का श्रमसाध्य संपादन इनकी स्थितप्रज्ञता का प्रतीक है।
व्यक्तित्व निर्मात्री…………….।
साध्वी प्रमुखाश्रीजी का आध्यात्मिक व्यक्तित्व चतुर्विध धर्मसंघ के अनेक व्यक्तियों को नई दृष्टि और नई दिशा देने वाला है। शादियों की प्रतिभा को निखारकर, युगानुरूप उन्हें आगे बढ़ाकर, संस्कारों की सुरक्षा संवर्धन कर ये अपना दायित्व निर्वहन कर रही है। संघीय धरातल पर साध्वी-समाज और महिला-समाज के अनेक सक्षम व्यक्तित्व इनके कर्तव्य की फलश्रुति है। साध्वीप्रमुखाजी ने नारी की नैसर्गिक विशेषताओं, क्षमताओं और सेवाओं को उभारकर उसके व्यक्तित्व को अपरिमेय ऊंचाई प्रदान की है। अस्तित्व-बोध से लेकर दायित्व-बोध तक उसके प्रशिक्षित किया है क्रांत विचारों और सशक्त लेखनी द्वारा ये महिला समाज का अध्यात्मिक पथर्शन कर रही है।

प्रशासन एवं प्रबंधन-वेत्ता………।
साध्वी प्रमुखा जी का प्रशासन एवं प्रबंधन कौशल बेजोड़ है इनकी मृदु अनुशासना साध्वियों के विकास का पथ प्रशस्त करती है। अयाचित कृपा, वत्सलता और आत्मीयतापूर्ण प्रेरणा इनकी शैली प्रशासन शैली के आधारभूत अंग है। इसी प्रशासन-कौशल की बदौलत ये चतुर्विद धर्मसंघ की आस्था धाम बनी हुई है।
प्रशासनिक दक्षता के साथ-साथ इनकी प्रबंधन पटुता भी विलक्षण है। समय-प्रबंधन, कार्य-प्रबंधन एवं व्यक्ति-प्रबंधन मे इनका वैशिष्ट्य विख्यात है। सद्यः स्फुरित मनीषा स्फूर्ति और सुनियोजित कार्यशैली ने इनके जीवन में कामयाबीयों के कीर्तिमान स्थापित किए हैं

संघीय सम्मान…….
तेरापंथ के महान तेजस्वी गुरुत्रयी युग में अपनी विनम्र सेवाएं समर्पित कर साध्वीप्रमुखाजी कृतार्थता का अनुभव कर रही है। समय-समय पर योगदृष्टा आचार्यो के मुख कमल से नी सृत उद्गार इनके वजनदार व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रतीक हैं
आचार्य श्री तुलसी ने अपनी इस अद्वितीय कृति को महाश्रमणी (9 सितंबर सन 1989) और संगम हानि देशिका (8 नवंबर सन 1991) जैसे महानीय पदों से तथा वर्तमान अनुशास्त ने असाधारण साध्वीप्रमुखा
(1 अगस्त 2016) एवं अहिंसा यात्रा को विभूषित करने वाली विभूति
(6 दिसंबर 2020) के रूप में प्रतिष्ठित किया।

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