धार 8 जून 2025। प्रदेश के लिए एक उत्तम उदाहरण है धार जिले के जिले के ग्राम लबरावदा के कृषक नरेंद्रसिंह राठौर जिन्होंने अपनी खुद की स्वेच्छा से जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया है जो उनके लिए एक सफल प्रयास रहा। वे पिछले एक दशक से विषम परिस्थितियों में भी जैविक खेती करते आ रहे हैं। जैविक खेती के लिए उन्हें उत्तम कृषक का अवार्ड में मिल चुका है। इनके सामने उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियां आने के बाद भी हार नहीं मानी। उसका नतीजा यह कि आज गुजरात से लेकर दक्षिण भारत के कुछ शहरों में फार्मर फ्रेंड यानी किसान मित्र माने जाने लगा है।
जब बड़े-बड़े शहरों में किसान को जैविक सब्जी और जैविक मसाला आदि विक्रय में संदेह किया जाता है, तब धार जिले के नरेंद्र ने अपनी मेहनत से एक नई पहचान बनाई । इस प्रकार सफलता प्राप्त करने वाले नरेंद्र अब मध्यम वर्ग के लोगों को भी संहतमंद सब्जिया और फसले उपलब्ध कराने वाले कृषक बने।
कृषक नरेंद्रसिंह राठौर के बताया कि उनके भाई कल्याणसिंह के साथ 60 बीघा जमीन पर पिछले एक दशक से जैविक खेती करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले जैविक खेती के कारण नुकसान भी हुआ। ऐसे में कई लोगों ने सलाह दी कि खेत में वे रासायनिक खाद का उपयोग कर लें। लेकिन उनके मजबूत इरादे और पर्यावरण की रक्षा के लिए दोनों भाइयों ने कभी भी अपनी पहल से समझौता नहीं किया। नरेंद्रसिंह एक उन्नत कृषक है, जिन्होंने एक दशक पहले राजीव दीक्षित जैसे प्रकृतिविद से प्रेरणा लेकर यह खेती शुरू की थी।
आज वे विविधता भरी खेती कर रहे हैं। जिसमें गेहूं, चने से लेकर वे करीब 14 तरह की अलग अलग उद्यानिकी और अन्य फसलों की बोवनी करते हैं। इसके पीछे उनका मकसद यह है कि एक फसल की हालात खराब होती है तो अगली फसल में अधिक फायदा मिले।
नरेंद्र बताते है कि लोग यहां उनकी पहल के बाद अन्य लोगों ने भी सीखने के साथ जैविक खेती को अपनाने लगे है। आसपास के क्षेत्र के करीब 100 किसान इस तरह से छोटे छोटे स्तर पर उनका अनुसरण भी करने लगे हैं। जिससे अब उन्हें भी जैविक खेती का महत्व पता चला और वह भी दूसरे को इसे अपनाने के लिए प्रेरणा देते हैं। नरेंद्र ने बताया कि उनका सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य की खेती को बहुत ही प्राकृतिक तरीके से किया जाए।
*कीटनाशक की जगह इस्तेमाल की प्राकृतिक चीजें*
उन्होंने खेती में नींबू, गुड़ व छाछ को अपना हथियार बना रखा है। इस तरह से वे जैविक घोल तैयार करके कीटनाशकों के आक्रमणों का मुकाबला करते हैं। साथ ही ऐसे प्रयोग करते हैं, जिससे कि अब सभी हैरत में आ गए हैं। इस तरह से विविधता भरी खेती और अन्य कई प्रयोगों के चलते उन्होंने एक अच्छा उदाहरण सामने प्रस्तुत कर रखा है। उन्होंने बताया कि वे 10 साल से लगातार अपने खेत में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करने से उन्हें जैविक खेती के संबंध में बकायदा रजिस्ट्रेशन भी प्राप्त हो चुका है। ऐसा करने वाले वे प्रदेश के चुनिंदा किसानों में से एक है।
*जल संग्रहण के साथ दे रहे हैं वे पौधारोपण व केंचुआ खाद को बढ़ावा*
नरेंद्रसिंह ने बताया कि उनके द्वारा खेत तालाब में एक विशेष प्रयोग किया गया है। इसके तहत उन्होंने खेत तालाब तो बनाया जिससे कि पानी संग्रहीत किया जा सके। उन्होंने पर्यावरण का सहारा लेकर तालाब के आसपास करीब 35 नीम के पेड़ भी लगा दिए। इस पेड़ के कारण तालाब में वाष्पीकरण नहीं हो, इससे एक पंथ दो काज करके उन्होंने तालाब से भी कई महत्वपूर्ण चीजें लेना काम का प्रयास किया है। ड्रिप सिंचाई के माध्यम से तालाब का पानी खेतो में पहुँचाते है, जिससे कि कही न कही वह अपने खेत कम पानी की खपत में बहुत ही बेहतर बनाकर रखते हैं। यहां तक कि उन्होंने लगातार 10 वर्ष में अपने खेत की मिट्टी की ऐसी स्थिति कर ली है कि महज दो खुदाई करने पर केंचुए बहुत आसानी से आ जाते हैं। जबकि देखने में आया है कि अब खेतों में केंचुए समाप्त हो गए हैं।
*लोगों की बात नहीं सुनकर अपनी समझ को अपनाया*
नरेंद्र सिंह और उनके भाई कल्याण ने जैविक खेती में कई बार लोगों ने गलत बात सुनी। उनको कई बार लोगों ने कहा कि आपकी कोशिश सफल नहीं हो पाएगी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी मेहनत से जैविक खेती को जीरो बजट वाली खेती बनाने में वक्त लगा। आज वे शून्य बजट से काम कर रहे हैं क्योंकि रासायनिक खाद और अन्य चीजों की उन्हें आवश्यकता नहीं होती है। जो भी खाद व अन्य सामग्री की जरूरत होती है, वह आसपास के पर्यावरण से ही उपलब्ध हो जाती। इस तरह से प्राकृतिक खेती के माध्यम से लगातार भरोसा प्राप्त करा। आज स्थिति यह है कि गुजरात और दक्षिण भारत के कई शहरों में जो चलन चल पड़ा है। इसके तहत ऐसे विश्वसनीय किसानों को फार्मर फ्रेंड कहा जाने लगा है। मध्यम वर्ग से लेकर उच्च वर्ग के लोग अब रासायनिक खाद वाली सब्जी खाने से बचते है। जिसने नरेन्द्र को आमदनी के साथ एक प्रेरणा देने वाला कृषक बनाया।