पोल्ट्री फार्म संचालित करने वाली आदिवासी महिला ललिताबाई ने
रतलाम जिले में 102 आदिवासी महिलाएं मुर्गीपालन करके आर्थिक समृद्धि हासिल कर रही है
रतलाम 10 नवंबर 2021/ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर हो रहा है आदिवासी महिलाओं का आर्थिक उत्थान। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर रतलाम जिले में आदिवासी महिलाओं का वृहद स्तर पर आर्थिक उत्थान हो रहा है। समूहों में महिलाएं अपनी आर्थिक गतिविधियां संचालित कर रही हैं। वह न केवल स्वयं सशक्त हो रही हैं बल्कि अपने परिवार का आर्थिक स्तर भी ऊंचा उठा रही है। महिलाओं द्वारा विभिन्न आर्थिक गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। मुर्गीपालन भी एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की प्रेरणा से रतलाम जिले में 102 आदिवासी महिलाओं ने मुर्गीपालन शुरु किया है। समूह से जुडकर उक्त महिलाएं आर्थिक समृद्धि हासिल कर रही है।
रतलाम जिले के बाजना विकासखंड के आदिवासी बाहुल्य ग्राम हेवड़ा दामाखुर्द की रहने वाली आदिवासी महिला ललिताबाई दामा आदिवासी महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण है। जो राज्य शासन की महिला सशक्तिकरण नीतियों के परिणाम स्वरूप आर्थिक रूप से तरक्की की मिसाल बनी है। अपने घर में पोल्ट्री फॉर्म संचालित करने वाली ललिताबाई ने विगत दिनों 5 लाख रूपए की मुर्गियां बेची और 1 लाख रूपए शुद्ध मुनाफा कमाया।
ललिताबाई 2 वर्ष पूर्व राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गांव में गठित किए जा रहे अंबे माता आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। समूह से जुड़ने के पूर्व उनकी आर्थिक स्थिति खराब थी, रोजगार का कोई विशेष साधन था नहीं, खेती सिंचित नहीं होने के कारण फायदा नहीं हो रहा था। लेकिन जब समूह से जुड़ी तो अधिकारियों, कर्मचारियों की समझाईश पर कुछ अच्छा करने की ठान ली। समूह को व्यवस्थित रूप से चलाया। 3 महीने के बाद उन्हें रिवाल्विंग फंड की राशि मिली। छोटी-छोटी बचत भी करने लगे एक समूह की महिलाओं को एक्स्पोज़र भ्रमण के लिए सैलाना विकासखंड ले जाया गया तो वहां मुर्गीपालन देखकर ललिताबाई ने भी मुर्गीपालन व्यवसाय अपनाने का सोचा और कार्य शुरू कर दिया। उनको मनरेगा योजना से मुर्गी शेड बनाने के लिए 51 हजार रुपए की राशि प्रदान की गई। बडे स्तर पर व्यावसायिक रुप से कार्य करने के लिए पूंजी की आवश्यकता थी, इसके लिए समूह एवं बचत राशि से 54 हजार रुपए ऋण लेकर मुर्गीपालन का कार्य शुरु किया। शुरुआत में अपने परिवारिक परिचित के माध्यम से हरियाणा से 3000 मुर्गी चूज़े मंगवाए, उनके वजन में वृद्धि हुई तो बेचना शुरू कर दिया। मुर्गीपालन का कार्य उन्होंने विगत जुलाई माह में आरंभ किया था अभी चालू माह तक उन्होंने लगभग 5 लाख रूपए की मुर्गियां विक्रय कर दी है इससे उन्हें 1 लाख रूपए का लाभ मिला।
ललिता ने बताया कि अभी शुरुआत है, इधर-उधर आने-जाने में काफी खर्च हुआ। मुर्गियों का आहार बाहर दुकानों से खरीदा गया, उस पर भी ज्यादा खर्चा आया। अब उनके द्वारा पीसाई चक्की खरीद ली गई है जिससे घर पर ही मुर्गियों के लिए आहार तैयार किया जा रहा है। इससे उन्हें बाजार की तुलना में बड़ी बचत होगी और आगामी दिनों में उनका मुर्गी विक्रय से मुनाफा और बढ़ जाएगा। अभी भी उनके पोल्ट्री फार्म पर 3200 मुर्गियां विक्रय के लिए तैयार हैं। गांव में बाजना, बांसवाड़ा, कुशलगढ़ आदि स्थानों से व्यापारी उनके घर आकर मुर्गियां खरीदकर ले जाते हैं। ललिता का कहना है कि राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर गांव की आदिवासी महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं और उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि हो रही है। अपनी तरक्की के लिए ललिताबाई मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान के द्वारा लागू की गई महिला सशक्तिकरण योजनाओं और नीतियों के प्रति आभार व्यक्त करती है। उन्होंने बताया कि उनके समूह में शामिल महिलाएं विभिन्न आर्थिक गतिविधियां संचालित कर रही हैं। इनमें चंपाबाई बकरी पालन कर रही है, हीराबाई सिलाई तो शारदा किराना दुकान संचालित कर रही है। ये सभी महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही है अपने परिवार का जीवन स्तर ऊंचा उठा रही हैं।