यूपी की तरह झाबुआ में भी बदले जा रहे नाम ‘क्रिसमस के मेले’ का नाम बदलकर’आदिवासी महाराज’ के नाम पर रखा गया-3 जनवरी 2022 से झाबुआ में लगेगा ‘महाराज का उत्सव मेला’;
आयोजकों ने मेले के पोस्टर में आदिवासी संतो और शहीद चंद्रशेखर आजाद का चित्र लगाकर समरसता का दिया संदेश।
झाबुआ जिले में दशकों से 25 दिसंबर क्रिसमस पर्व के दौरान क्रिसमस का मेला आयोजित किया जाता रहा है, परंतु इस वर्ष आदिवासी संगठनों के उग्र विरोध के चलते न सिर्फ इस वर्ष बल्कि आगामी वर्षों में भी क्रिसमस मेले का आयोजन झाबुआ जिले में नहीं किए जाने की बात आदिवासी संगठनों द्वारा कही गई।
क्रिसमस मेले का बहिष्कार क्यों?
जिले के आदिवासी संगठन ‘आस'(आदिवासी समाज सुधारक) द्वारा क्रिसमस मेले का बहिष्कार करने का कारण झाबुआ जिले में विधि विरुद्ध,बिना प्रशासनिक अनुमति के ईसाई मिशनरियों द्वारा करवाए जा रहे आदिवासियों के अवैध ईसाई धर्मांतरण का होना बताया। पत्रकारों को उपलब्ध करवाई गई आरटीआई की प्रति के माध्यम से प्रेम सिंह डामोर द्वारा स्पष्ट किया गया कि जिला कलेक्ट्रेट से प्राप्त अधिकृत जानकारी के अनुसार, झाबुआ में एक भी आदिवासी से परिवर्तित ईसाई नहीं है, तो जब ईसाई है ही नहीं तो किस बात का क्रिसमस मेला? इस मेले की अनुमति अनुसूचित क्षेत्र झाबुआ में कौन मांगता है और कौन देता है?
डामोर द्वारा बताया गया कि वास्तविकता में झाबुआ जिले के प्रत्येक गांव फलिए में आदिवासी की ज़मीन पर अवैध चर्च बने हुए हैं, एवं 40,000 से अधिक आदिवासियों का गैरकानूनी तरीके से एवं षडयंत्र पूर्वक बिना रिकॉर्ड में लाए ईसाई धर्मांतरण करवाया जा चुका है। डामोर के अनुसार योजनाबद्ध तरीके से आदिवासी बाहुल्य अनुसूचित क्षेत्र झाबुआ में ईसाई मिशनरी कई दशकों से भोले भाले अशिक्षित आदिवासियों की शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का फायदा उठाकर,मुफ्त शिक्षा,मुफ्त इलाज,मोटरसाइकिल एवं नगद रुपए देकर,प्रलोभन के माध्यम से असंवैधानिक धर्मांतरण कर रही है।
क्या कहता है भारतीय संविधान?
आदिवासी समाज के युवाओं के नेतृत्व करता एवं बजरंग दल जिला संयोजक राहुल डामोर द्वारा बताया गया कि अनुसूचित क्षेत्र होने के चलते पांचवी अनुसूची,आदिवासियों की संस्कृति एवं सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई है। केवल इसाई मिशनरियों के अतिरिक्त कोई अन्य धर्म को मानने वाले सेवा के नाम पर आदिवासियों का धर्म नहीं बदलवा रहे। ईसाई बन चुके आदिवासी हमारे समाज की रूढ़िगत परंपराओं और रिवाजों को त्याग देते हैं, एवं जन्म से लेकर मृत्यु तक ईसाई रिवाज अपना लेते हैं।इस आधार पर इनके आदिवासी जाति प्रमाण पत्र तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाने चाहिए,जिससे कि आदिवासी समाज को मिले आरक्षण का लाभ केवल असली आदिवासियों को मिले। ईसाई मिशनरी इस बात को भलीभांति समझती है, एवं ईसाई धर्म अपना चुके इन आदिवासियों को जानबूझकर प्रशासनिक रिकॉर्ड में नहीं लाया जाता,जिससे कि इनकी गिनती ईसाइयों में ना होकर आदिवासियों में होती रहे,और आरक्षण का लाभ मिलता रहे।
3 जनवरी से लगेगा महाराज का उत्सव मेला
आदिवासी समाज सुधारक संघ प्रमुख महाराज कमल डामोर द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी भगत समाज के संत शिरोमणि स्वर्गीय संत खूम सिंह महाराज क्षेत्र के एक महान आदिवासी समाज सुधारक थे,जिन्होंने भगवान बिरसा मुंडा की ही तरह अपने क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति का विध्वंस कर रहे ईसाई मिशनरियों से लड़ाई लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। अब से यह मेला ‘क्रिसमस का मेला’ अथवा ‘पादरी का मेला’ के नाम से नहीं जाना जाएगा, न ही इस मेले का आयोजन दिसंबर महीने में होगा। प्रतिवर्ष 3 जनवरी से आदिवासी समाज के गौरव स्वर्गीय खूम सिंह महाराज की स्मृति में ‘महाराज का उत्सव मेला’ नाम से इस मेले का आयोजन किया जाएगा।
मेले की अनुमति एवं अवधि
जानकारी देते हुए दिलीप भाबोर एवं आशीष द्वारा बताया गया कि 3 जनवरी से प्रारंभ होकर उत्सव मेला 13 जनवरी तक संचालित किया जाएगा,मेले का समय सुबह 7:00 बजे से प्रारंभ होकर रात्रि 10:30 तक रखा जाएगा। मेले की औपचारिक अनुमति समस्त प्रशासनिक विभागों से एवं मेला स्थल उपलब्ध करवाने वाली संस्थाओं से विधिवत प्राप्त हो चुकी है।विहिप के जोगा सिंगाड़ एवं राजू निनामा द्वारा कहा गया कि मेले में शांति व सुरक्षा की जिम्मेदारी जिला प्रशासन के साथ साथ आदिवासी समाज के कार्यकर्ता भी सुनिश्चित करेंगे।