तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अहिंसा यात्रा के दौरान 3 देश व 23 राज्यों में 18000 कि.मी से अधिक पदयात्रा कर , एक करोड़ से अधिक लोगों को नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया……
आचार्य महाश्रमण ने 8 साल में अब तक 3 देश व 23 राज्यों में 18000 किलोमीटर पद यात्राएं की … आचार्य श्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा का संदेश देते हुए , इतिहास रचते हुए महारिकॉर्ड बनाया… हथियारों से लैस नक्सलियों ने भी स्वागत किया….
झाबुआ – तेरापंथ धर्मसंघ के 11 व अधिशास्ता , शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने पदयात्रा 50000 किलोमीटर के आंकड़े को पार कर नैतिकता ,सद्भावना व नशा मुक्ति का संदेश देते हुए नए इतिहास का सज्जन किया । भारत के 23 राज्यों सहित नेपाल, भूटान में भी सद्भावना नैतिकता व नशा मुक्ति की अलख जगाने वाले आचार्य श्री महाश्रमण जी की प्रेरणा से प्रभावित होकर लाखों-करोड़ों लोग नशा मुक्ति की प्रतिज्ञा कर चुके हैं
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा झाबुआ के पूर्व अध्यक्ष व संरक्षक ताराचंद गादीया ने बताया कि दिल्ली के लाल किले से 2014 में अहिंसा यात्रा का प्रारंभ करने वाले आचार्य श्री ने न केवल भारत नेपाल भूटान जैसे देशों में भी मानवता के उत्थान का महत्वपूर्ण कार्य कर , देश के राष्ट्रपति भवन से लेकर गांव फलियों की झोपड़ी तक शांति का संदेश देने का कार्य कर रहे हैं आचार्य श्री की पदयात्रा एं और सांप्रदायिक संदेश के साथ होती है यही कारण है कि हर जाति वर्ग भेद संप्रदाय की जनता की ओर से आचार्य श्री के मानवता को समर्पित अभियान को व्यापक समर्थन प्राप्त होता है आचार्य श्री ने पदयात्रा ओं के दौरान प्रतिदिन 15 से 20 किलोमीटर का सफर तय कर लेते हैं जैन साधु की कठोर दिनचर्या का पालन और प्रार्थना बजे उठकर घंटों तक जब ध्यान की साधना में लीन रहने वाले आचार्य श्री प्रतिदिन प्रवचन के माध्यम से जनता को संबोधित करते हैं आचार्य श्री के सानिध्य में प्रतिदिन सर्वधर्म सम्मेलन ओं प्रबुद्ध वर्ग सहित विभिन्न वर्गों का संगोष्ठी ओं का आयोजन होता है प्रारंभ पदयात्रा में आचार्य श्री के साहित्य सर्जन का क्रम निरंतर चलता रहता है आचार्य श्री के नेतृत्व में 7:30 सौ से अधिक साधु साधु और हजारों कार्यकर्ता देश-विदेश में समाज उत्थान के महत्वपूर्ण कार्य में संलग्न है आचार्य श्री की यह पदयात्रा अपने आप में विलक्षण है यह पदयात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से 125 गुना ज्यादा बड़ी और पृथ्वी की परिधि से सवा 100 गुना अधिक है यदि कोई व्यक्ति इतनी पदयात्रा करें तो वह भारत के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर अथवा पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक 15 बार से ज्यादा यात्रा कर सकता है आचार्य श्री महाश्रमण पिछले 8 साल से अहिंसा यात्रा को लेकर पैदल यात्रा पर निकले हैं अब तक आचार्य श्री ने 18000 किलोमीटर यात्रा हो चुकी है सफर 18000 किलोमीटर का है हालांकि अहिंसा यात्रा से पहले आचार्य श्री महाश्रमण ने जनकल्याण नशा मुक्ति के उद्देश्य से 34000 किलोमीटर पद यात्रा की थी ऐसे में अब तक 52000 किलोमीटर पदयात्रा से अधिक पद यात्रा कर चुके हैं आचार्य श्री महाश्रमण जी उम्र 60 साल है देश के कई राज्यों वह नेपाल भूटान तक पैदल यात्रा का महा रिकॉर्ड बना चुके हैं यात्रा में कई जगह बेहद कठिन सफर के बीच नक्सली तक मिले 2015 में सुकमा दंतेवाड़ा में यात्रा के दौरान हथियारों से लैस करीब 5000 नक्सली मिलने के बाद भी यात्रा बेखौफ आगे बढ़ती गई नक्सलियों ने भी यात्रा का स्वागत किया 2014 में दिल्ली के लाल किले से अहिंसा यात्रा की शुरुआत हुई थी जो अगले महीने दिल्ली में ही पूरी होगी
नेपाल ने आचार्य श्री के सम्मान में जारी किया डाक टिकट नैतिकता सद्भावना व नशा मुक्ति के प्रचार-प्रसार की महाश्रमण की अहिंसा यात्रा से अभिभूत होकर नेपाल सरकार ने अहिंसा यात्रा पर डाक टिकट तक जारी किया इसके अलावा राजस्थान हरियाणा पंजाब मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल नागालैंड असम मेघालय झारखंड आंध्र प्रदेश तमिल नाडु पांडुचेरी केरल तेलंगाना छत्तीसगढ़ की सरकार ने भी राजकीय अतिथि भी घोषित किया बापू की 381 किलोमीटर की दांडी यात्रा का रिकॉर्ड टूटा महात्मा गांधी बापू की दांडी मार्च यात्रा से महाश्रमण की अहिंसा यात्रा करीब सवा सौ गुणा व पृथ्वी की परिधि से सवा गुना ज्यादा पैदल यात्रा हो चुकी है बापू ने तत्कालीन समय में साबरमती से दांडी तक 381 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया था वही 8 साल में 18000 किलोमीटर और इससे जन कल्याण के लिए 34000 किलोमीटर की यात्रा आचार्य श्री कर चुके हैं आचार्य श्री महाश्रमण ने अब तक 50000 किलोमीटर पदयात्रा कर ली है
लोकसभा में भी अहिंसा यात्रा की गूंज….
सासंद अस.अस.आलूवालिया जी ने गुरदेव की अहिंसा यात्रा की जानकारी संसद मे तथा निवेदन किया …जिस रास्ते से गुरूदेव चलकर तालकटोर पहुचेगे । किसी एक मार्ग का नाम अहिंसा यात्रा पर रखा जाये.. अहिंसायात्रा जिससे हज़ारों लोगों ने नशामुक्ति की शपथ ली है .. इस महान जैन आचार्य महाश्रमण जिन्होंने १८००० किलोमीटर की यात्रा देश विदेश में आयें है दिल्ली से शुरू करके इसका समापन भी दिल्ली मे ही कर रहे है.. मेरी इस प्रार्थना पर सरकार निश्चित विचार में लायेंगी ऐसा मेरा विश्वास है । माननीय प्रधानमंत्री की उपस्थिति में यें अनुरोध सासंद आलूवालिया जी ने किया । रतलाम झाबुआ क्षेत्र के सांसद गुमान सिंह डामोर ने भी संसद सत्र के दौरान निवेदन किया कि आचार्य श्री महाश्रमण जिस मार्ग से यात्रा लेकर गुजरे उनमें से किसी एक का मार्ग का नाम अहिंसा मार्ग रखा जाए । दूसरा अहिंसा यात्रा का उद्देश्य नैतिकता ,सद्भावना व नशा मुक्ति । याने सद्भावपूर्ण व्यवहार करने का प्रयत्न करेंगे , हम सदभावना पूर्वक व ईमानदारी का पालन करेंगे व नशा मुक्त जीवन जिएंगे । इन उद्देश्यों को स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों में इन संकल्पों को पढ़ाया जाए , तो बच्चे देश के एक अच्छे नागरिक बनेंगे ।
यह तेरापंथ, मेरा पंथ है: – प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
-सप्त वर्षीय अहिंसा यात्रा का ऐतिहासिक समापन
-हर नीति के भीतर प्राणतत्त्व के रूप में विद्यमान हो अहिंसा: आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री महाश्रमण की प्रेरणा विश्व को दे रही है नई चेतना: रक्षामंत्री राजनाथ सिंह
-रक्षामंत्री, लोसअध्यक्ष, भाजपा प्रवक्ता सहित हजारों जनमेदिनी ने स्वीकारी संकल्पत्रयी
-शांतिदूत की महायात्रा के प्रति प्रणत हुए राजनीति के दिग्गज
–जैन शासन के गौरवपूर्ण क्षणों के साक्षी बनें लाखों नयन
27.03.2022, तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली: यह भारत देश हजारों वर्षों से संतों, ऋषियों, मुनियों व आचार्यों की एक महान परंपरा की धरती रही है। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सात वर्षों में 18000 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की है। यह पदयात्रा दुनिया के तीन देशों की थी। इसके जरिए आचार्यश्री ने वसुधैव कुटुम्बकम् के भारतीय विचार को विस्तार दिया है। इस पदयात्रा ने देश के बीस राज्यों को एक विचार से, एक प्रेरणा से जोड़ा है। जहां अहिंसा है, वहीं एकता है, जहां एकता है, वहीं अखण्डता है, जहां अखण्डता है, वहीं श्रेष्ठता है। मैं मानता हूं, आपने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के मंत्र को आध्यात्मिक संकल्प के रूप में प्रसारित करने का काम किया है। उपरोक्त उदगार देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने व्यक्त किए। मौका था शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा सप्तवर्षीय अहिंसा यात्रा संपन्नता समारोह का। 9 नवंबर 2014 को लालकिला से प्रारम्भ हुई इस अहिंसा यात्रा का आज 27 मार्च को तालकटोरा स्टेडियम में भव्य समापन हुआ । जिसमें वर्चुअल रूप से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आगे कहा कि श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्यों का मुझे हमेशा से ही विशेष स्नेह मिलता रहा है। आचार्य तुलसीजी, उनके पट्टधर आचार्य महाप्रज्ञजी और अब आचार्यश्री महाश्रमणजी का मैं विशेष कृपा पात्र रहा हूं। इसी प्रेम के कारण मुझे तेरापंथ के आयोजनों से जुड़ने का सौभाग्य भी मिलता रहा है। इसी प्रेम के कारण मैंने आप आचार्यों के बीच कहा था- ‘यह तेरापंथ है, यह मेरा पंथ है।’ मैं जब आचार्यश्री महाश्रमणजी की इस पदयात्रा से जुड़ी जानकारी देख रहा था तो मुझे उसमें भी एक सुखद संयोग दिखा। आपने यह यात्रा 2014 में दिल्ली के लालकिले से शुरू की थी। उस वर्ष देश ने भी एक नई यात्रा शुरू की और मैंने लालकिले से कहा था-यह नए भारत की नई यात्रा है। अपनी इस यात्रा में देश के भी वही संकल्प रहे-जनसेवा, जनकल्याण। आज आप करोड़ों देशवासियों से मिलकर परिवर्तन के इस महायज्ञ में उनकी उनकी भागीदारी का शपथ दिलाकर दिल्ली आए हैं।आज आजादी के अमृतमहोत्सव काल में देश जिन संकल्पों पर आगे बढ़ रहा है, चाहे वह पर्यावरण का विषय हो, पोषण का प्रश्न हो, या फिर गरीबों के कल्याण के लिए प्रयास। इन सभी संकल्पों में आपकी बड़ी भूमिका है। मुझे पूरा भरोसा है आप संतों का आशीर्वाद देश के इन प्रयासों को और अधिक प्रभावी और सफल बनाएंगे। मैं इस यात्रा के पूर्ण होने पर आचार्यश्री महाश्रमणजी को और सभी अनुयायियों को श्रद्धापूर्वक अनेक-अनेक बधाई देता हूं।
आठ वर्षीय अहिंसा यात्रा के दौरान हुई 18 हजार कि मी विशाल पदयात्रा सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के उद्देश्य के साथ जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्यश्री महाश्रमण ने अहिंसा यात्रा द्वारा भारत के 20 राज्यों में अपने उपदेशों, प्रवचनों आदि द्वारा अहिंसा की अलख जगाई। यात्रा में 18,000 किलोमीटर पैदल चलकर आचार्यजी ने नेपाल एवं भूटान की विदेश धरा को भी अपने मंगल संदेशों से जन-जन को सन्मार्ग दिखाया। यह यात्रा औपचारिक रूप में भले आज संपन्न हो रही थी किंतु शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन चरण मानव जाति के उत्थान हेतु अनवरत गतिमान रहेंगे। रविवार को प्रातः लगभग 8.50 बजे अहिंसा यात्रा के भव्य समापन समारोह के लिए आचार्यश्री ने मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान से मंगल प्रस्थान किया। नई दिल्ली के सड़कों पर मानों आस्था का सैलाब लहरा उठा। आचार्यश्री जैसे-जैसे तालकटोरा स्टेडियम की ओर बढ़ते जा रहे थे, जन प्रवाह बढ़ता जा रहा था। मार्ग में भारत के जलशक्ति मंत्री श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत व केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल भी इस पदयात्रा में सम्मिलित हुए। आचार्यश्री के साथ पंक्तिबद्ध साधु, साध्वियों व समणियों के समूह तथा उससे आगे और पीछे तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के सदस्य अपने-अपने गणवेश में इसकी भव्यता को और अधिक बढ़ा रहे थे। निर्धारित समय पर आचार्यश्री तालकटोरा स्टेडियम में पधारे तो पूरा स्टेडियम ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण के जयघोष से गुंजायमान हो उठा। लाखों नयन विश्वकल्याणकारी अहिंसा यात्रा के भव्य समापन समारोह की प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए लालायित नजर आ रही थीं। निर्धारित समय पर आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से अहिंसा यात्रा सम्पन्नता समारोह के भव्य कार्यक्रम का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। समारोह में मुख्य मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि कोई भी प्राणी हंतव्य नहीं है। अहिंसा ऐसा धर्म है जो आदमी की चेतना को विशुद्ध और उसे शांति से जीने में सघन सहायक सिद्ध होता है। आदमी के जीवन के क्षण-क्षण में अहिंसा की चेतना का संरक्षण होता रहे। अहिंसा एक ऐसी सर्वोत्तम नीति है, जो हर नीति के भीतर प्राणतत्त्व के रूप में विराजमान हो जाए तो सभी नीतियां उत्कृष्ट बन सकती हैं। भारत लोकतांत्रिक प्रणाली का देश है। यहां भौतिक विकास और आर्थिक विकास के साथ-साथ देशवासियों में नैतिकता की चेतना का विकास और आध्यात्मिक चेतना का विकास हो जाए तो सम्पूर्ण विकास संभव हो सकता है। संतों से सन्मति, ग्रंथों से ज्ञान और पंथों से पथदर्शन मिलता रहे तो जन-जन का जीवन मंगलकारी बन सकता है। आचार्यश्री ने अहिंसा की सम्पन्नता के अवसर पर अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो मंच पर उपस्थित भारत के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह, लोकसभा के अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला, केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल, नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री परमानंद झा, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी सहित स्टेडियम में व उसके बाहर भी उपस्थित विराट जनमेदिनी ने अपने स्थान पर खड़े होकर अहिंसा यात्रा के प्रणेता के मुख से अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की। विश्वकल्याणकारी अहिंसा यात्रा के भव्य सम्पन्नता का समारोह का मानों यह अद्वितीय क्षण उपस्थित हो गया, जब देश-विदेश के दिग्गज महानुभावों के साथ-साथ देश-विदेश का जन-जन एक साथ इन संकल्पों को अपने जीवन में अंगीकार कर रहा था। विशिष्ट रूप से उपस्थित लोकसभा के अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला ने अहिंसा यात्रा के संदर्भ में कहा कि परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी की विराट अहिंसा यात्रा का समापन हो रहा है। अपनी पदयात्रा के दौरान आचार्यश्री ने देश के गांव-गांव ही नहीं, विदेशी धरती नेपाल और भूटान के भी अनेक गांवों, नगरों में जाकर अहिंसा के संदेशों को प्रदान कर भारतीय परंपरा को झंकृत किया। आचार्यश्री की महायात्रा के बारे में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा-मेरा यह परम परम सौभाग्य है कि मुझे अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी के दूसरी बार दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसका पथ और पाथेय ही अहिंसा है। जहां विश्व में एक-दूसरे का समूल विनाश करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वैसे में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अहिंसा के संदेशों से जन-जन के जीवन में नया परिवर्तन ला दिया है। मैं ऐसे महात्मा के चरणों में प्रणत होता हूं। कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से जुड़े दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी की ऐतिहासिक अहिंसा यात्रा का शुभारम्भ दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले से हुआ था। आज अपनी सम्पन्नता के लिए पुनः देश की राजधानी में पहुंची है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसी देशहित के अनिवार्य मुद्दों को लेकर एक धर्माचार्य द्वारा हजारों किलोमीटर की पदयात्रा का मेरी नजर में पहला और अकेला उदाहरण है। समारोह में नेपाल के पूर्व उपराष्ट्रपति श्री परमानंद झा, भारत के केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल, लोकसभा सांसद एस. एस. अहलूवालिया, राज्यसभा सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सत्यनारायण जटिया व भारत में नेपाल के राजदूत श्री रामप्रसाद सुबेदी आदि ने भावाभिव्यक्ति की।
वर्चुअल रूप से जुड़े देश के दिग्गज इस दौरान देश-विदेश के विभिन्न राजनीतिक दिग्गजों ने भी वर्चुअल रूप से समारोह में उपस्थित होकर अहिंसा यात्रा के प्रति अपनी भावांजलि व्यक्त की जिनमें मुख्य रुप से नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति नेपाल श्री रामबरण यादव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, असम व नागालैंड के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी, झारखंड राज्यपाल श्री रमेश बैस, ओडिशा राज्यपाल प्रो. गणेशीलाल, तेलंगाना व पद्दुचेरी राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सौंदरराजन, केरल राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान, भारत सरकार शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ, बिहार मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार, राजस्थान मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत, हरियाणा मुख्यमंत्रीश्री मनोहरलाल खट्टर, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल, दिल्ली मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री श्री चंद्रबाबू नायडू, तमिलनाडु पूर्व मुख्यमंत्री, श्री एडप्पाडी के. पलनीस्वामी आदि ने विचार रखे।
चतुर्विध धर्मसंघ द्वारा महान परिव्राजक का अभिनंदन कार्यक्रम में उस समय मोड़ आ गया जब मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने समस्त भारत की परिक्रमा करने वाले अपने गुरु के पावन चरणों का स्वयं प्रक्षालन कर संपूर्ण मानवता को अमृत पान का एहसास करवाया। इस दृश्य को देखकर वहां उपस्थित प्रत्येक श्रद्धालु धन्यता का अनुभव कर रहा था। तत्पश्चात मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार, मुख्यनियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने विचारों की प्रस्तुति दी।अभिनंदन के क्रम में साधु साध्वी समुदाय, समणी वृंद एवं दिल्ली तेरापंथ समाज ने गीत द्वारा आस्थाभिव्यक्ति दी । अहिंसा यात्रा समारोह समिति अध्यक्ष श्री महेंद्र नाहटा, अहिंसा यात्रा प्रबन्धन समिति के संयोजक श्री मनसुख सेठिया ने वक्तव्य दिया।
ऐतिहासिक यात्रा का ऐतिहासिक संपन्नता समारोह अहिंसा यात्रा एक ओर जहां अपनी उपलब्धियों से अद्वितीय बनी वहीं यात्रा का समापन भी विविध दृष्टियों से ऐतिहासिक बन गया। श्रद्धालुओं से खचाखच भरे तालकटोरा स्टेडियम के बाहर भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। देश के कोने-कोने से हजारों भक्तों की विशाल जनमेदिनी अपने महान गुरु के प्रति श्रद्धानत थी। प्रत्यक्ष एवं वर्चुअल रूप में इस हाईब्रिड समारोह को देख असंख्य लोग सुखद आनंद की अनुभूति कर रहे थे। यह एक सुखद संयोग ही है कि इस महान उद्देश्यीय यात्रा के प्रारंभ एवं समापन अवसर का राजधानी दिल्ली को गौरव प्राप्त हुआ। समारोह का कुशल संचालन मुनिश्री कुमारश्रमणजी ने किया।