झाबुआ

भागवत कथा के पांचवे दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रसंग सुनाया=============== भागवत कथा को सुनना कठिन काम है वही श्रोता श्रेष्ठ होता है जो भागवतामृत को अपने जीवन मे अंगीकार कर ले- पण्डित लोकेशानंद जी

Published

on

झाबुआ से राजेंद्र सोनी की रिपोर्ट

भागवत कथा के पांचवे दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रसंग सुनाया
छप्पन भोग का नैवेद्य किया अर्पण

झाबुआ । बिना भाव के भगवान कीमती चीजों को भी ग्रहण नहीं करते। यदि भाव से एक फूल ही चढ़ा दें तो प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। जिस व्यक्ति में ईश्वर प्रेम का भाव पैदा हो जाए तो उसे ईश्वर की लगन लगी रहती है। यह बात रविवार को भागवत कथा के दौरान पण्डित लोकेशानन्द जी व्यास पीठ से कहीं ।
भगवान श्रीकृण की बाल लीलाओं का जिक्र करते हुए उनके नामाकरण, माखन चोरी, मटकी फोडने तथा गोवर्धन पूजा का जिक्र करते हुए पण्डित लोकेशानंद ने कहा कि भागवत कथा को सुनना कठिन काम है वही श्रोता श्रेष्ठ होता है जो भागवतामृत को अपने जीवन मे अंगीकार कर ले । श्रोता की चार अवस्था हाेती है एक श्रोता सोता रहता है, एक होता है जो बीच बीच मे बात करता रहता है और एक श्रोता सर्वदा होता है उसका मन कही और भटकता है और एक सच्चा श्रोता होता है जो मनन करता है । कंस का अर्थ अहंकार होता है इसलिये भगवान श्रीकृष्ण ने अहंकार रूपी मथुरा को त्याग कर गाकूल याने जहां गायो का समुह है वह स्थान चुना था । गाकूल वह समुह है जहां इन्द्रिया शुद्ध होती है नंद का अर्थ जो सभी आनन्द प्रदान करें वही नंद होता है इसी तरह जो दूसरों को या प्रदान करती है वही यादा कहलाती है। भगवान श्रीकृण ने इसीलिये नन्द यादा का चुना था । पण्डित जी ने आगे कहा कि भगवान श्री राम 9 वी तिथि को जन्मे थे और कृष्ण का जन्म चाहे 8 वी तिथि को हुआ हो किन्तु उनके जन्म की खबर 9 वी तिथि को मिली थी इसलिय राम और कृषण जिन्हे पूर्णावतार कहा जाता है दोनों के प्राकट्य की तिथि का अंक 9 ही है। पण्डित जी आगे कहा कि जिस भक्त की भक्ति की परम पराकाठा हो जाती है वहां स्वय परमात्मा आजाते है ।और हमारी भक्ति फलिभूत हो जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की पहली खबर ननद सुनंदा को मिली थी ।जिन्होने कृष्ण को यशाेदा के पास सोया देखा था । आम तौर पर जन्माषटमी और कथा प्रसंग मे कृषण जन्मोत्सव पर हम इतना अधिक आनन्दित हो जाते है तो जब स्वयं भगवान जहां जन्मे होगें तब कितना आनंद रहा होगा यह अवर्णनीय है ।उन्होने कहा कि आम तौर पर पाचात्य संस्कृति के अनुसार केक काट कर जन्म दिन मनाते है, वास्तव में जन्म दिन मनाना हो तो गरीबो के बीच जाये जितना आनन्द ह मे इनके बीच जन्म दिन मनाने में मिलता है वह पांच सितारा होटलों में भी नही मिल सकता है।कथा के उत्सव को लाभ तभी होगा जब कथा सुनते सुनते हमारे हृदय में भगवान बिराजित हो जायें । तथी ठाकुरजी का प्रादूर्भाव होगा ।
श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन श्रीकष्ण जन्म लीला, गोवर्धन पूजा व माखन चोरी लीला की कथा और लीला दिखाई गई। लोकेशानंदजी ने श्रीकष्ण जन्म की कथा विस्तार से सुनाते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण के पैदा होने की खबर राजा कंस को मिली तो वह कारागार में पहुंचा। वहां कन्या को देखकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा तो कन्या हाथ से छूट कर यह कहते हुए आकाश में चली गई कि तेरा मारने वाला ब्रज में पैदा हो चुका है। इसके बाद वह राक्षसों को ब्रज भेजता है, किंतु वे कष्ण का कुछ नहीं कर पाते हैं। इसके बाद कंस पूतना को भेजते हैं। इसके बाद श्रीकष्ण की माखन लीला, गोवर्धन लीला, बाल लीलाओं के श्यों का संजीव चित्रण किया गया। इस अवसर पर भागवत जी को छप्पन भोग लगाया गया।
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में पण्डित जी व्यास पीठ से बताया कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं । कष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री ष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं ? मैया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री ष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस ष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अतः ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र ष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलतः वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अतरू वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस ष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री ष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और पालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
कथा के दोरान भागवत जी को छप्पन भोग की प्रसादी अर्पित की । आरती के बाद छप्पनभोग की प्रसादी का वितरण श्रद्धालुओं में किया गया ।
————————————————–

Click to comment

Trending