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श्री वल्लभाचार्यजी की जयंती भारत में किसी लोकप्रिय त्योहार से कम नहीं है, अपने सन्देश में पूज्य दिव्येशकुमार जी ने कहा । श्रद्धा एवं भक्ति के साथ नगर में श्रीमद वल्लभाचार्य का 545 वा प्राकटयोत्सव मनाया

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नगर में निकली भव्य शोभायात्रा में सैकडो की संख्या में वैेष्णवजनो ने लिया भाग

झाबुआ । वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को वरूथिनी एकादशी के साथ ही श्री वल्लभ आचार्य जयंती भी मनाई जाती है। आचार्य वल्लभ एक दार्शनिक थे। इन्हें पुष्य संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। लोकप्रचलित मान्यातओं के अनुसार वल्लभाचार्य ही वे व्यक्ति थे जिन्हें श्रीनाथ जी के रूप में भगवान श्री कृष्ण से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। इन्हें अग्नि देवता का पुर्नजन्म माना जाता है। श्री वल्लभ सम्प्रदाय के तहत झाबुआ नगर के हृदय स्थल पर भगवान श्री गोवर्धन नाथ जी की हवेली में भी अखण्ड भूमंडलाचार्य जगद्गुरू महाप्रभू श्रीमद वल्लभाचार्य जी का 545 वां प्राकट्य महोत्सव पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ दो दिवसीय आयोजन के साथ मनाया गया । श्री गोवर्धननाथजी मंदिर ट्रस्ट एवं श्री यमुना मंडल के साथ ही समस्त वेैष्णवजनों द्वारा पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ भगवान श्री वल्लभाचार्य जी के प्रकाटोत्सव के उपलक्ष्य में सोमवार 25 अप्रेल को श्री सर्वोत्तम रूत्रोत पाठ के साथ सायंकाल 5-30 बजे से मोती बंगला शयन दर्शन के आयोजन मे बडी संख्या में वेष्णव भक्तों ने सहभागीता कर धर्म लाभ लिया । इस अवसर पर पण्डित रमेश त्रिवेदी, के नेतृत्व में नाम संर्कीतन के माध्यम से धम्र की बयार बहने लगी। वही मंगलवार 26 अप्रेल वैशाख एकादशी के पावन अवसर पर प्रातः 9-30 बजे भगवान गोवर्धननाथ मंदिर में आकर्षक नयनाभिराम झांकी के साथ पलना दर्शन में श्रद्धालुजनों ने भगवान गोवध्रननाथजी के दर्शनलाभ प्राप्त किये।

भगवान श्री वल्लभाचार्य की 545 वे प्राकटोत्सव के अवसर पर श्री हवेली जी से नगर में सायंकाल 6 बजे शोभा यात्रा निकली । भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया गया । भगवान श्री वल्लभाचार्य को सुसज्जित रथ में बिराजित किया गया । गोवर्ध्रननाथजी की हवेली से बेण्डबाजों के साथ बेंड बाजों पर भजनों एवं धार्मिक गीतों ने जहां नगर में धर्ममय वातावरण पैदा कर दिया वही नगर के मुख्य चौराहों पर महिलाओं ने नृत्य करके अपनी भक्ति भावना की प्रस्तुति दी । नगर मे ंजगह जगह पुष्पवर्षा कर शोभायात्रा का स्वागत किया गया । शोभायात्रा में सैकडो की संख्या में वैष्णवजनो एवं यमुनामंडल की महिलाओं ने भागीदारी की । शोभायात्रा नगर भ्रमण के बाद श्री गोवध्रननाथजी की हवेली पर पहूंची । जहां पावन मनोरथ के तहत केसरी बंगला शयन दर्शन का लाभ श्रद्धालुओं द्वारा संगीत मय कीर्तन के साथ किया गया । तत्पश्चात तिलक आरती एवं बधाई कीर्तन का लाभ भी उपस्थित श्रद्धालुओं द्वारा लिया गया ।
पूज्य श्री दिव्येशकुमार जी के मार्गदर्शन में श्री गोवर्ध्रननाथ जी की हवेली में श्रीमद वल्लभाचार्य जी का प्राकटोत्सव धुमधाम से मनाया गया । पूज्य दिव्येशकुमार जी ने अपने सन्देश में कहा कि श्री कृष्ण भक्ति के भक्तिकालीन प्रणेता श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती भारत में किसी लोकप्रिय त्योहार से कम नहीं है। श्री वल्लभाचार्य की जंयती पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। लोकप्रिय पौराणिक धारणा है कि इस दिन भगवान कृष्ण को श्रीनाथजी के रूप में वल्लभाचार्य ने देखा था, जिन्हें पुष्टि संप्रदाय के संस्थापक कहा जाता है। इसलिए, श्रीनाथजी के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा की गई और जिसे वल्लभाचार्य ने उचित ठहराया, जो वैष्णव संप्रदाय के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थे। इस तथ्य के कारण, वल्लभाचार्य जयंती हर साल श्री वल्लभाचार्य और भगवान कृष्ण के भक्तों द्वारा बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। इसी कडी में झाबुआ नगर में भी श्रीमद वल्लभाचार्य जी का प्राकटोत्सव परम्परागत रूप से मनाया गया । श्री दिव्येश कुमार जी के अनुसार वल्लभाचार्य का चिंतन आदि शंकराचार्य के सिद्धांत से पृथक है। शंकाराचार्य के अनुसार ब्रह्म सत्य एवं जगत मिथ्या है। जगत केवल प्रतीती मात्र है। वल्लभाचार्य का दर्शन इससे भिन्न है यहां अस्तित्व और अस्तित्वहीन की लड़ाई में न पड़कर संसार को खेल है। अपने इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए वल्लभाचार्य ने तीन बार भारत का भ्रमण किया। यह यात्राएं सिद्धांतों के प्रचार के लिए थीं जो करीब 19 सालों में पूरी हुईं। हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को पूजने वाले और वल्लभाचार्य जयंती को मनाने वाले बहुत ही हर्षाेल्लाल के साथ वल्लभाचार्य जंयती मनाते हैं। भक्त लोग इस दिन श्री नाथ जी के मंदिर में जाकर विशेषतौर पर पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही श्री नाथ जी के मंदिर में इस दिन को बहुत ही उत्साहपूर्वक पर्व की भांति मनाया जाता है।

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