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मंदबुद्धि,मुकबधिर बालिका से दुष्कर्म करने वाले आरोपी को आजीवन कारावास

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रतलाम से आर. सोनी की रिपोर्ट
रतलाम । न्यायालय (श्रीमती उषा तिवारी) विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट जावरा ने फैसला सुनाते हुए अभियुक्त थावर पिता परथा बागरी उम्र 26 साल निवासी आलमपुर ठिकरिया जिला रतलाम को धारा 376 एबी भादवि में आजीवन कारावास जो शेष प्राकृत जीवन के लिए होगा व 5 हजार रुपए अर्थदण्ड से एवं धारा 366 भादवि में 07 वर्ष सश्रम कारावास व 1 हजार रूपए अर्थदण्ड़ की सजा सुनाई।
मामले में अतिरिक्त जिला लोक अभियोजन अधिकारी/विशेष लोक अभियोजक पॉक्सो एक्ट जावरा विजय पारस ने बताया कि पीड़िता की माता ने 31.मई.18 को थाना रिंगनोद पर पंहुच कर बताया कि वह अपने भाई के घर पर ही रहती है, उसके साथ उसकी लड़की जिसकी उम्र 07 साल की है,जो शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर (विक्षिप्त) होकर बोल नहीं पाती है,वह भी रहती है।
सायं करीब 7 बजें वह और उसकी लडकी घर के बाहर बैठे थे कि थोडी देर बाद वह घर के अंदर खाना बनाने चली गई, उसके कुछ देर बाद बाहर आकर देखा तो लडकी नहीं दिखी,इतने में मेरा भाई आया मैंने उससे भी पूछा तो उसने भी मना कर दिया फिर गांव के लोगों से लडकी के बारे में पुछताछ की तो उन्होंने बताया कि थावर दादा लडकी को उठाकर खेत तरफ ले गया।
फिर हम सभी लडकी को ढूंढते हुए खेत पर गए जहां हमने देखा कि थावर लडकी के साथ दुष्कर्म कर रहा था।हमें देखकर आरोपी मौके से भाग निकला।
सहा.अभियोजन मीडिया सेल प्रभारी भूपेंद्र कुमार सांगते ने बताया कि फरियादिया द्वारा बताई गई घटना पर थाना रिंगनोद पर आरोपी थावर के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।विवेचना उपरांत अभियोग पत्र आरोपी के विरुद्ध विशेष न्यायालय पॉक्सो में प्रस्तुत किया गया।जहां विशेष न्यायालय में अभियोजन की ओर से घटना को प्रमाणित करने हेतु कुल 23 साक्षियों में से 12 साक्षियों को अपने समर्थन में परीक्षित कराया गया एवं मौखिक,दस्तावेजी एवं वैज्ञानिक साक्ष्य डी.एन.ए. रिपोर्ट तथा लिखित बहस प्रस्तुत कर आरोपी को आरोपित धाराओं में उल्लेखित अधिकतम दंड से दंडित किए जाने के तर्क प्रस्तुत किए गए।
मामले में न्यायालय द्वारा अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य एवं तर्काे से अपराध प्रमाणित मानते हुए फैसला सुनाते हुए 02/जून/2022 को अभियुक्त को दोषसिद्ध किया।
’आरोपी द्वारा उठाए गए तर्क’
आरोपी द्वारा अपने बचाव में उठाये गए मुख्य आधार यह थे कि पीडिता के न्याायालय में कथन नही कराएं गए हैं। ऐसे में अपराध प्रमाणित नही होता है। इस संबंध मे अभियोजन द्वारा बालिका के मेडिकल परीक्षण करने वाले दो चिकित्सकों की रिपोर्ट का हवाला दिया गया जिसमें डॉक्टरों ने यह तथ्य भली भांति प्रमा‍णित किया हैं पीड़िता जन्म से मंदबुद्धि थी एवं बोल नही सकती है। इस संबंध में अभियोजन द्वारा माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांतो के माध्यम से न्यायालय के समक्ष यह पक्ष रखा गया कि दुष्कर्म के मामलों में पीड़िता के कथनों के अभाव में भी अन्य‍ साक्ष्य के माध्यम से आरोपी को दोषसिद्ध किया जा सकता है।
अभियुक्त् द्वारा यह भी बचाव लेने का प्रयास लिया गया कि बालिका की माता के अतिरिक्त किसी भी साक्षी द्वारा घटना का समर्थन नही किया गया है।इस बचाव का अभियोजन द्वारा मेडिकल एवं डीएनए रिपोर्ट के माध्यम से माननीय न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा गया कि दुष्कर्म के मामलो में पीड़िता अथवा उसके परिजन अपनी लाज एवं सम्मान को दाव पर लगाकर न्यायालय के समक्ष जो कथन करते है उन पर विश्वास किया जाना आवश्यक है। इसके लिए किसी अन्य साक्षी के समर्थन की आवश्यक्ता नहीं है।
उक्त साक्ष्य एवं तर्कों से सहमत होते हुए न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि निर्णय दिया गया।

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