झाबुआ

आईपीएस स्कूल का मामला… वेंडर गांधी बुक स्टोर संचालक , पालक गण को रेफरेंस बुक लेने के लिए कर रहा मजबूर…….

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झाबुआ शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होते हैं कॉपी किताबें ड्रेस आदि की आवश्यकता होती है कुछ निजी संस्थाओं की कॉपी किताबें निर्धारित दुकानों पर ही उपलब्ध होती है जिसका फायदा उठाकर बुक स्टोर संचालक द्वारा मनमाने पैसे वसूले जाते हैं और इसी की आड़ में अन्य किताबों को लेने के लिए पालक गण को मजबूर किया जाता है और अन्य किताबें नहीं लेने की दशा में उन्हें आवश्यकतानुसार किताबें बुक्स द्वारा नहीं दी जाती है जिसके कारण पालक अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं जिसकी शिकायत पालक गण ने निजी स्कूल संस्था के प्राचार्य को भी की |

निर्धारित स्थान पर मिलती है …… किताबें

शहर की आय.पी.एस स्कूल में पढने वाले बच्चों की काॅपी किताबें निर्धारित स्थान पर ही मिलती है। जिसका बाजार मुल्य तो बहुत कम होता है. लेकिन इस निर्धारित स्थान पर ये मंहगे दामों पर मिल रही हैं… सुत्रों की माने तो आय. पी. एस. स्कूल की किताबें गांधी बुक स्टोर के यहां ही मिलती है। जो रजिस्टर बाजार में 30 रूपए में मिलता है वो वहा पर यहां 45 रूपए में मिल रहा है। किताबों काॅपियों का सेट यहीं पर उपलब्ध होता है। जिसके चलते इतने मंहगे दामों पर किताबें मिल रही है। इसके अलावा बुक्स के ऊपर जो कवर चढ़ाने के लिए पेपर आता है वह यहां पर ₹55 में मिल रहा है वहीं दूसरी दुकानों पर यह मात्र ₹30 में उपलब्ध है |
पालकों का कहना है
जब इस संबंध में पालकों से चर्चा की तो उन्होने नाम न बताने की तर्ज पर बताया कि आय. पी. एस स्कूल की सारी बुक्स या किताबें गांधी बुक स्टोर पर ही उपलब्ध है जिससे मोनोपोली होने के कारण स्टोर संचालक मनमाने दामों पर किताबे बेच रहा है। इसके साथ ही रेफरेंसेस बुक के लिए पालकगण को आवश्यक रूप से लेने के लिए मजबूर कर रहा है रेफरेंसेस नहीं लेने पर अन्य बुक्स नहीं दी जा रही है और पालकों से अभद्र व्यवहार किया जा रहा है अगर इन्ही किताबों रेफरेंसेस को छोड़कर अन्य किताबें तो आधे से भी कम दाम में उपलब्ध हो जायेगी। कहीं ना कहीं मोनोपोली होने का फायदा उठाने का प्रयास गांधी बुक सेंटर द्वारा किया जा रहा है तभी तो इतने मंहगे दामों मे काॅपी किताबें मिलती है ….
नियमों का पालन होता है

स्कूल प्राचार्य दीप्ति सरन का कहना है कि सत्र प्रारंभ होने से पहले ही काॅपी किताबों की लिस्ट और ड्रेस की जानकारी हम शासन के नियमानुसार तीन से चार दुकानदारों को देते है… ताकि शासन का नियम पालन कर सके। अब दुसरें दुकानदार क्यों स्कूल की सामग्री व ड्रेस नही बेच रहे है इस बारे में हम कुछ कह नही सकते।

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