झाबुआ

जहां विज्ञान की सीमायें समाप्त होती है वही से आध्यात्म का प्रारंभ होता है- ज्योति दीदी

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महिला योग समिति द्वारा आयोजित राजयोग शिविर का लिया जा रहा लाभ
झाबुआ । पंतजलि महिला योग समिति झाबुआ द्वारा स्थानीय नसीयाजी में आयोजित पांच दिवसीय राजयोग शिविर के तीसरे दिन सोमवार को उपस्थित महिलाओं को संबोधित करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी की ज्योति दीदी ने राजयोग के बारे में बाते हुए कहा कि शरीर को चलाने वाली चैतन्याक्ति का नाम ही परमधाम है । जहां विज्ञान की सीमायें समाप्त होती है वही से आध्यात्म का प्रारंभ होता है । उन्होने कहा कि आत्मा अति सुक्ष्म ज्योति बिन्दू होता है । आत्मा जन्म लेने के बाद कर्म शुरू करती है । संसार मे हजारों लोग प्रति दिन मरते है परन्तु जनसंख्या विस्फोट की समस्या खत्म नही हो रही है ।यही आत्माये जन्म मरण के चक्कर में फस जाती है । आत्मा जन्म लेते ही भुल जाती है कि किस प्रयोजन से उसका यहां आना हुआ है ।आत्मा जन्म लेने के बाद अपने आप को काया मान लेती है ।आज ावत सत्य से परे हा चुका है । मैं ान्त स्वरूप् आत्मा हूं यह बोध सकारात्म विचारों से ही आती है ।आम तौर पर सकारात्मकता की बजाया नकारात्मक को अधिक ग्रहण किया जाता हे ।हमारे मन में नकारात्मक का भरपुर स्टाक हो जाता है ।क्या हमने विलेण किया है कि जबान वा में है क्या ? हमारे कान क्या सकारात्मक ही सुनते है । व्यर्थ की बाते दिमाग मे क्यो आती है ? इस संसार मे गंदगी का कारण दृटि ही होती हे । हमे दैहिक दृटि बदल कर आत्मीक दृटि बनाना होगी । आत्मा एक राजा होती है जो मस्तिक के सिंहासन पर बैठती है । और कर्मेन्द्रियों से काम करवाती है । आज राजा गुलाम बन गया है वह सोया है और म नही राजा बन गया है जो आत्मा को जागने नही देता है । शांति ही आत्मा का प्रथम गुण होता है शांति के लिये जीवन मे ज्ञान की आवयकता होती है । शुद्ध विचारों से शांति को जीवन में लाना है । परमात्मा से ही ज्ञान व शांति की रोनी मिलती है । राजयोग करने वाली आत्मा ही होती है । परमात्मा से जोडने के लिये परिचय, संबंध स्नेह और प्राप्ति ही मुख्य है । जिस प्रकार भगवान एक हे उसी तरह सत्य भी एक ही जिसे सर्वधर्म ने मान्य किया है ।धर्म की रीढ ही परमपिता परमात्मा शिव है वही निराकार एवं साकार ब्रह्म होता है ।आत्मा पिता पिता अति सुक्ष्म ज्योति बिन्दु जो सर्वोपरी होकर परमधाम में रहने वाला है जीवन मे यदि सुख चाहिये तो मेडिटेशन जरूरी है । शस्त्रों में लिखा सत्य होता है किन्तु उसके बाद भी हम प्रतिदिन अनैतिक काम कर रहे है । आज का मानव दानव बन चुका है । राजयोग अन्तर जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या यूँ कहें कि पुनः पहचानने की यात्रा है। राजयोग अर्थात् अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ा समय निकालकर शान्ति से बैठकर आत्म निरीक्षण करना। इस तरह के समय निकालने से हम अपने चेतना के मर्म की ओर लौट आते हैं। इस आधुनिक दुनिया में, हम अपनी जिन्दगी से इतने दूर निकल आये हैं कि हम अपनी सच्ची मन की शान्ति और शक्ति को भूल गये हैं। फिर जब हमारी जड़े कमजोर होने लगती हैं तो हम इधर-उधर के आकर्षणों में फँसने लग जाते हैं और यही से हम तनाव महसूस करने लग जाते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते ये तनाव हमारी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य को असन्तुलित कर हमें बीमारियों में भी जकड़ सकता है।राजयोग एक ऐसा योग है जिसे हर कोई कर सकता हैं। ये एक ऐसा योग है जिसमें कोई धार्मिक प्रक्रिया या मंत्र आदि नहीं है । इसे कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है। राज योग को आँखे खोलकर किया जाता है इसलिए ये अभ्यास सरल और आसान है। ज्योति दीदी ने कहा कि राजयोग के नियमित अभ्यास में जीवन में आमुलचुल बदलाव लाया जासकता है और हमे पूर्ण मानव बन सकते है ।
पंतजलि महिला योग समिति की रूकमणी वर्मा एवं मधु जोशी ने बताया कि प्रतिदिन प्रातः 5-30 बजे से 7-30 बजे तक जेन नसीया में राजयोग का शिविर आयोजित हो रहा है । तीसरे दिन के शिविर में ललीत शाह, हीना जोशी, भावना जेन, निता शाह, साधना चौहान, विनिता टेलर, भावना टेलर, ममता जेन, उर्वा मालवीय, निलम जैन, साधना वास्कले, सोनल कटकानी, ज्योति जोशी पुषपा भंडारी, चंदा भंडारी आदि ने राजयोग के बारे में जानकारी ली तथा ज्योति दीदी के सानिध्य में राजयोग का अभ्यास किया । सुश्री वर्मा ने नगरवासियों से इस राजयोग शिविर का लाभ उठाने की अपील की है ।

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