झाबुआ

जीव में ब्रह्म का आनंदांश आवृत्त रहता है, जबकि जड़ जगत में इसके आनन्दांश व चैतन्यांश दोनों ही आवृत्त रहते हैं- पूज्य दिव्येशकुमारजी महाराज

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पुष्टि भक्ति रसपासन महोत्सव का हुआ शुभारंभ
गौचारण मनोरथ के दर्शनों के लिये अथाह भीड ने अनुशासित होकर लिये दर्शनलाभ
झाबुआ । भगवान श्रीक्रष्ण के अनुग्रह को पुष्टि कहा गया है। भगवान के इस विशेष अनुग्रह से उत्पन्न होने वाली भक्ति को ’’पुष्टिभक्ति’’ कहा जाता है। जीवों के तीन प्रकार हैं- पुष्टि जीव जो भगवान के अनुग्रह पर निर्भर रहते हुए नित्यलीला में प्रवेश के अधिकारी बनते हैं, मर्यादा जीव जो वेदोक्त विधियों का अनुसरण करते हुए भिन्न-भिन्न लोक प्राप्त करते हैं, और प्रवाह जीव ख्जो जगत्प्रपंच में ही निमग्न रहते हुए सांसारिक सुखों की प्राप्ति हेतु सतत् चेष्टारत रहते हैं,। भगवान् श्रीष्ण भक्तों के निमित्त व्यापी वैकुण्ठ में जो विष्णु के वैकुण्ठ से ऊपर स्थित है, नित्य क्रीड़ाएं करते हैं। इसी व्यापी वैकुण्ठ का एक खण्ड है- गोलोक, जिसमें यमुना, वृन्दावन, निकुंज व गोपियां सभी नित्य विद्यमान हैं। भगवद्सेवा के माध्यम से वहां भगवान की नित्य लीला-सृष्टि में प्रवेश ही जीव की सर्वोत्तम गति है। उक्त उदगार पूज्य गोस्वामी दिव्येकुमार जी ने गुरूवार को पैलेस गार्डन में श्रद्धालुओं को सायंकाल 5 से 8 बजे तक श्री पुष्टि भक्ति रसपान महोत्सव में संबोधित करते हुए कहीं ।

प्रवचन देते हुए उन्होने आगे कहा कि वैष्णव साधारण मानीय नही होते है वे परम कृपालु वल्लभाचार्य के दास होते है। जो अवसर ऋिशिमुनियों को भी प्राप्त नही हुआ वह वैष्णवजन को प्राप्त हुआ है। ब्रज मंडल में 84 कोस की प्रदिक्षिणा की महिमा का जिक्र करते हुए कहा कि यह सब श्री वल्लभचार्य ने ही बताया थां , मां यमुना भक्ति दायिनपी मानी गई है। भगवान ठाकुर जी के नित्य मनोरथ भगवान की लीलाओं के दर्शन है । 56 भोग अर्पण का जिक्र करते हुए उन्होने बताया कि छप्पन भोग भगवान ठाकुर जी को वृषभान द्वारा विवाह भोज का स्वरूप् है कमल की छप्पन पंखुडियों पर प्रत्येक पर 56 गोपिया बिराजि रहती है और हर गोपी अलग अलग तरह के 56 पकवान अलग अलग सामग्रियों से अर्पित करती है। वैष्णव जनों को अलौकिक बताया गया है जिन्होने ठाकुर जी की शरण प्राप्त की है । इसका उद्देश्य ही जीव को मूल लोग मे ले जाना है।
पूज्य दिव्येशकुमारजी ने कहा कि प्रेमलक्षणा भक्ति उक्त मनोरथ की पूर्ति का मार्ग है, जिस ओर जीव की प्रवृत्ति मात्र भगवद्नुग्रह द्वारा ही संभव है। श्री मन्महाप्रभु वल्लभाचार्यजी के पुष्टिमार्ग ’अनुग्रह मार्ग, का यही आधारभूत सिद्धांत है। पुष्टि-भक्ति की तीन उत्तरोत्तर अवस्थाएं हैं-प्रेम, आसक्ति और व्यसन। मर्यादा-भक्ति में भगवद्प्राप्ति शमदमादि साधनों से होती है, किंतु पुष्टि-भक्ति में भक्त को किसी साधन की आवश्यकता न होकर मात्र भगवद्पा का आश्रय होता है। मर्यादा-भक्ति स्वीकार्य करते हुए भी पुष्टि-भक्ति ही श्रेष्ठ मानी गई है। यह भगवान में मन की निरंतर स्थिति है। पुष्टिभक्ति का लक्षण यह है कि भगवान के स्वरूप की प्राप्ति के अतिरिक्त भक्त अन्य किसी फल की आकांक्षा ही न रखे। पुष्टिमार्गीय जीव की सृष्टि भगवत्सेवार्थ ही है- भगवद्रूप सेवार्थ तत्सृष्टिर्नान्यथा भवेत्। प्रेमपूर्वक भगवत्सेवाभक्ति का यथार्थ स्वरूप है-भक्तिश्च प्रेमपूर्विकासेवा। भागवतीय आधार क्रष्णस्तु भगवान स्वयं पर भगवान क्रष्ण ही सदा सर्वदासेव्य, स्मरणीय तथा कीर्तनीय हैं-सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिपः। तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीक्रष्ण: शरणं मम। कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग से ही भगवद्भक्ति प्राप्त होती है। ब्रह्म के साथ जीव-जगत् का संबंध निरूपण करते हुए उनका मत था कि जीव ब्रह्म का सदेंश सद्अंश, है, जगत् भी ब्रह्म का सदेंश है। अंश एवं अंशी में भेद न होने के कारण जीव-जगत् और ब्रह्म में परस्पर अभेद है। अंतर मात्र इतना है कि जीव में ब्रह्म का आनंदांश आवृत्त रहता है, जबकि जड़ जगत में इसके आनन्दांश व चैतन्यांश दोनों ही आवृत्त रहते हैं। श्रीशंकराचार्य के अद्वैतवाद केवलाद्वैत के विपरीत श्रीवल्लभाचार्य के अद्वैतवाद में माया का संबंध अस्वीकार करते हुए ब्रह्म को कारण और जीव-जगत को उसके कार्य रूप में वर्णित कर तीनों शुद्ध तत्वों का ऐक्य प्रतिपादित किए जाने के कारण ही उक्त मत शुद्धाद्वैतवाद कहलाया जिसके मूल प्रवर्तक आचार्य श्री विष्णुस्वामीजी हैं।

इस अवसर पर प्रवचन के विराम के अवसर पर महा मंगल आरती की गई तथा प्रसादी का वितरण किया गया। पुष्टि भक्ति रसपान महोत्सव में 15 जून तक पूज्य श्री दिव्येशकुमारजी के सारगर्भित आार्वचन का लाभ सायंकाल 5 से 7 बजे तक प्राप्त होगा ।
गौचारण मनोरथ के दर्शनों के लिये श्रद्धालुओं का लगा तांता
प्रथम गौचारण चले कन्हाई भजन के साथ रात्री 8 बजे से श्री गोवर्ध्रननाथजी की हवेली में गौचारण मनोरथ का दुर्लभ आयोजन किया । भगवान गोवर्धननाथ, गोपाल जी एवं राधा रानी को सजाये गये सिहांसन पर में बिराजित किया गया तथा बृज मंडल की झांकी लगाई गई । स्वयं दिव्येशकुमारजी संगीत के साथ आध्यात्मिक पुष्टिमार्गीय भजनों की प्रस्तुति दे रहे थे। महिलायें एवं पुरूष दर्शनार्थी कतार बद्ध होकर भगवान के दर्शन का लाभ उठाते रहे ।

शयन आरती भी पूज्य दिव्येशकुमारजी द्वारा की गई । पूरा मंदिर खचाखच भरा हुआ था । मंदिर में इतनी भीड होने के बाद भी बाहर से आये उत्सव यादव ने वहां बुक स्टाल लगाया जिससे दर्शनार्थियों को दर्शन की कतार में थोडी बहुत परेशानी हुई । इस अवसर पर दर्शनार्थियों का सुझाव था कि मंदिर के बाहर यदि पुस्तकों को स्टाल लगाया जावे तो लोगों को दर्शन करने में ज्यादा सुविधा होगी । आज 14 जून को शयन समय पर बडी फुल मंडली मनोरथ के दीव्य दर्शन होगें ।

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