नगर के हृदय स्थल पर स्थित श्री गोवर्धननाथजी की हवेली के 151 र्वष पूर्ण होने पर श्री दिव्य अलौकिक पाटोत्सव के आयोजन को लेकर गोस्वामी श्री दिव्येशकुमारजी महाराज श्री ने शुक्रवार को स्थानीय पैलेस गार्डन में मीडिया से मुखातिब होकर पुष्टिमार्गीय मत एवं पाटोत्सव के आयोजन को लेकर विस्तार से जानकारी दी । उन्होने बताया कि विक्रम संवत 1925 में झाबुआ के तत्कालीन महाराजा गोपालसिंहजी द्वारा नाथद्वारा में इस आदिवासी अंचल में धर्मस्थापना को लेकर काका गिरधरजी महाराज श्री से भेंट करके उनसे झाबुआ में भगवान गोवर्धननाथजी की हवेली स्थापना कर भगवान की प्रतिमा की स्थापना का अनुरोध किया था । स्वयं महाराजा गोपालसिंहजी पुष्टिमार्गीय मत को मानने वाले थे अतः काकाजी गिरधरजी महाराजश्री ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया तथा लावलश्कर के साथ झाबुआ में श्री गोवर्धननाथजी की हवेली का विशाल भवन बना कर संवत 1925 में यहां भगवान गोवर्धननाथजी को बिराजित किया गया । काकाश्री के आशीर्वाद से झाबुआ नगर में प्रथम बार गोवर्धननाथजी की हवेली का निर्माण हुआ था जहां काकाजी की दिव्य उपस्थिति में भगवान गोवर्धननाथजी बिराजित हुए । पूज्य दिव्येशकुमारजी ने बतायाकि इस हवेली के बाहरी हिस्सा महाराजा दिलीपसिंह के द्वारा राजस्थानी शेली में निर्मित किया गया । और हवेली में भगवान के बिराजित होने के 150 र्वष पूरे होने पर 6 जून से 16 जून तक 151 वां पाटोत्सव का आयोजन आस्था एवं श्रद्धा के साथ सम्पन्न हो रहा है । उन्होने बताया कि पाटोत्सव के दौरान जहा्11 दिनों तक विभिन्न मनोरथो चन्दन मोली मनोरथ, मोती बंगला मनोरथ, नौका विहार मनोरथ, पनघट मनोरथ, नन्द महोत्सव, कमल तलाई मनोरथ अटखंभ मनोरथ, आम्रकुंज मनोरथ, ब्रजकमल मनोरथ, कुण्डवारा मनोरथ गौचारण मनोरथ, बडी फुल मंडली मनोरथ के दर्शन बडी संख्या में वैष्णवजनो ने करके अपने आपको कृतार्थ किया है वही ब्यावला-विवाह खेल मनोरथ एवं अन्तिम दिन 16 जून चतुर्दशी को पाटोत्सव दर्शन एवं छप्पन भोग मनारेथ का आयोजन गिरधर विलास बाडी में होगा । जिसके दिव्य दर्शन का लाभ सभी धर्मप्राण लोगों को प्राप्त होगा । पूज्य दिव्येशकुमारजी ने बताया कि 6 जून से 12 जून तक पुष्टिमार्गीय सिद्धांत पर आधारित भागवत कथा का आयोजन भी हुआ वही विभिन्न सेवा कार्यो में श्री सदगुरू गौशाला में गौ-सेवा, जिला चिकित्सालय में मरीजों के बीच जाकर फल बिस्कीट एवं दुध थेलियों का वितरण किया गया वही तुलसी पौधों का वितरण, जीवन सेवा जीव सेवा के तहत हाथीपांवा की पहाडी पर पक्षियों की सेवा के साथ ही उनको दाना खिलाने जेसा कार्य, पर्यावरण के तहत पौधारोपण जेसा कार्य, अन्तरवेलिया आश्रम में अनाथ बच्चों की सेवा, वनवासी बधुओं को भोजन पैकेट के वितरण के अलावा 13 जून को विशाल स्वास्थ्य शिविर आयोजित करके 300 मरीजों की विभिन्न रोग विशेषज्ञों ने बाहर से आकर अपनी सेवा देकर उनका परीक्षण किया एवं निुल्क दवाइ्या वितरित की गई । तथा वल्लभ विद्या निकेतन के बच्चों के बीच जाकर उपहार का वितरण जैसे काम किये गये । वही धार्मिक सांस्कृतिक गतिविधियों के तहत बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतिया भी दी गई ।मीडिया को पुष्टिमार्ग के सिद्धान्तों आदि के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान श्रीष्ण के अनुग्रह को पुष्टि कहा गया है। भगवान के इस विशेष अनुग्रह से उत्पन्न होने वाली भक्ति को ’’पुष्टिभक्ति’’ कहा जाता है। जीवों के तीन प्रकार हैं- पुष्टि जीव जो भगवान के अनुग्रह पर निर्भर रहते हुए नित्यलीला में प्रवेश के अधिकारी बनते हैं, मर्यादा जीव जो वेदोक्त विधियों का अनुसरण करते हुए भिन्न-भिन्न लोक प्राप्त करते हैं, और प्रवाह जीव जो जगत्प्रपंच में ही निमग्न रहते हुए सांसारिक सुखों की प्राप्ति हेतु सतत् चेष्टारत रहते हैं,।उन्होने कहा कि भक्तिमार्ग ही पुष्टिमार्ग होता है । तीन मार्ग कर्ममार्ग, ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग परमात्मा से साक्षात्कार के मार्ग है । ये आयोजन सभी के कल्याण के लिये है अतः इसमें सभी लोग शामील होसकते है। उन्होने बताया कि इन्दौर में भी उनकी संस्था कई रचनात्मक कार्य कर रही है ।संस्कृत भाषा सिखाना, पिछडे हुए लोगों को आगे बढाना, सेवा के माध्यम से हर किसी की मदद करना, मानव सेवा माधव सेवा के महामंत्र को साकार करना आदि जनकल्याण के काम किये जारहे है । पुष्टिमार्ग सहज एवं सरल मार्ग है, दीक्षित होकर गुरू आचार्य के निर्देशानुसार सेवा कार्य कराना ही हमारा मुख्य ध्येय है । धर्मान्तरण के मुद्इे पर उन्होने बताया कि हमारे वैष्णवजन ऐसे भटके हुए लोगों से चर्चा कर सही मार्ग बताते है, अगर कोई अंध विस्वास में भटक जाता है तो उसे सही मार्ग दिखाने का प्रयास करते है । उन्होने जानकारी दी कि गोवर्धन परिक्रमा में वर्ल्ड बुक आफ रेकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ है । सुख दुख को मिटाना है तो कर्मकरते रहना चाहिये । हमारा प्रत्येक क्षण कर्म में निहीत है और कर्म के माध्यम से भगवान से जुडाना ही ब्रह्म संबध होता है । प्रभू तो एक निमित्त मात्र होते है, भगवान से हमे सेवा का अधिकार प्रदान किया है इसलिये भगवतसेवा करने से ब्रह्म संबध स्थापित होकर जीव के दो समाप्त हो जाते है ।धर्म की परिभाशा केवलधुप,दीप,करके माला जपना नही है धर्मको अर्थ ही सेवा करना है। पशु पक्षी, मा-बाप की सेवा, किसी असहायक की मदद करना आदि ये सभी सहज धर्म माने गये है । श्री दिव्येशकुमार जी ने 16 जून को पाटोत्सव के मुख्य आयोजन में मीडिया के सभी साथियों को आमंत्रित करते हुए जानकारी दी कि श्री गोवर्धन नाथ प्रभु की भव्य शोभायात्रा हवेली से वाडी तक निकाली जायेगी जहां भगवान को छप्पनभोग याने बडा मनोरथ का आयोजन होगा इस अलौकिक मनोरथ में सभी से सपरिवार पधारने का आग्रह भी किया ।इस अवसर पर पूज्य श्री ने प्रत्यक मीडिया के साथियों को पेन, डायरी अपने आार्वाद के साथ उपहार स्वरूप प्रदान की । कार्यक्रम का संचालन इतिहासवेत्ता डा.केके त्रिवेदी ने किया तथा अन्त मे आभार प्रर्दान गोपाल हरसौला ने व्यक्त किया ।