झाबुआ

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में तेरापंथ समाज द्वारा विकलांग केंद्र पर बच्चों को सत संकल्प करवाएं……

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झाबुआ – तेरापंथ के दशमाधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म ,जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में पूरे विश्व में ज्ञान चेतना वर्ष के रूप में आचार्य श्री महाश्रमण जी के सानिध्य में मनाया जा रहा है इसी कड़ी में जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा रायपुरिया के अध्यक्ष द्वारा इस उपलक्ष्य में जिला विकलांग एवं पुनर्वास केंद्र के बच्चों को सत संकल्प करवाए गए व साथ ही भोजन भी कराया |

दोपहर करीब 1:00 बजे जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र पर नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर कार्यक्रम प्रारंभ किया गया | आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र झाबुआ पर तेरापंथ सभा अध्यक्ष झाबुआ एवं उपासक श्री पंकज कोठारी द्वारा सद्भावना ,नैतिकता व नशा मुक्ति का संकल्प सभी बच्चों को कराया गया|

तेरापंथ सभा अध्यक्ष पंकज कोठारी ने बच्चों को बताते हुए कहा कि अपनी प्रज्ञा से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करने वाले प्रज्ञा पुरुष का जन्म वि.सं.1977 आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी को राजस्थान के छोटे से गांव टमकोर के चोरडिया कुल में हुआ। पिता का नाम तोलारामजी व माता का नाम बालूजी था। बाल्यावस्था में ही पिता का साया उनके सिर से उठ गया था। माता बालूजी की धार्मिक प्रवृत्ति से बालक नथमल में धार्मिक चेतना के प्रवाह का संचार हुआ। पारिवारिक मोह व भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर वि.सं.1987 माघ शुक्ला दसमी को मात्र दस वर्ष की आयु में माता बालूजी के साथ आचार्य कालूगणी से मुनि जीवन के कठोर मार्ग को स्वीकार किया। जीवनभर यायावर राष्ट्रसंत युगप्रधान आचार्य महाप्रज्ञ का वि.सं. 2068 द्वितीय वैसाख कृष्णा एकादशी को सरदारशहर (राजस्थान) में महाप्रयाण हो गया। आपकी प्रज्ञा व गहन ज्ञान से प्रभावित होकर गंगाशहर (राजस्थान) में वि.सं. 2035 कार्तिक शुक्ला त्रियोदशी को ‘महाप्रज्ञ’ अलंकरण से उपकृत किया।

रायपुरिया तेरापंथ सभा अध्यक्ष रमणलाल कोटडिया ने बताया कि मानवता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं एवं योगदानों के लिए वर्ष 1995 में ‘युगप्रधान’ से अभिषिक्त आचार्य महाप्रज्ञ को कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा विभिन्न सम्मान, अलंकरणों व पदों से विभूषित किया। जिनमें प्रमुख हैं 23 अक्टूबर 1999 को नीदरलेंड इंटर कल्चरल ओपन यूनिवर्सिटी ने साहित्य के लिए *’डी. लिट उपाधि’* से उपकृत किया। अहिंसा का संदेश फैलाने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 2001 में *‘अहिंसा यात्रा’* प्रारंभ की। *सांप्रदायिक सौहार्द के लिए किए गए उनके विशिष्‍ट योगदान के लिए* अहिंसा-यात्रा के प्रवर्तक को वर्ष 2002 *’इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार’* व वर्ष 2004 में *‘कम्यूनल हार्मोनी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम के बाद तेरापंथ सभा अध्यक्ष रमण लाल कोटडिया परिवार की ओर से उपस्थित बच्चों को भोजन कराया गया | अंत मे तेरापंथ सभा सचिव पीयूष गादीया ने जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र प्रभारी शैलेंद्रसिंह जी राठौर व समस्त स्टाफ का आभार व्यक्त किया |

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