अजब एमपी की गजब शिक्षा व्यवस्था है, जहां के स्कूलों में देश का भविष्य नहीं बल्कि भविष्य के लिए मजदूर तैयार किया जा रहा है. आदिवासी बाहुल्य जिले के झाबुआ व मेघनगर विकास खंड में स्थित स्कूलों के हालात तो यही बयां कर रहे हैं. जहां स्कूल में बच्चों को झाड़ू लगाने और फावड़ा चलाने से लेकर सामान ढुलाई तक में पारंगत किया जा रहा है. भले ही सियासी पार्टियां और सरकारें मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य से इतर आंकती रही हैं, पर स्कूलों की बीमारी जस की तस बनी हुई है. स्कूलों में जा बच्चों से पढ़ाई करने की जगह काम कराया जा रहा है बाल मजदूरी कराई जा रही है यह गहन चिंता का विषय है
स्कूल में बाल मजदूरी
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ‘स्कूल चले हम’ अभियान की शुरूआत इसी जिले से की थी, बावजूद इसके यहां के स्कूल बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं और बची-खुची कसर स्टाफ पूरा कर देते हैं. जिससे सरकार की साख पर भी बट्टा लग रहा है. शिक्षा विभाग की स्कूलों की मॉनिटरिंग व्यवस्था भी फेल साबित हो रही है. जिसके चलते स्टाफ की मनमानी मासूमों के भविष्य पर भारी पड़ रही है. प्राथमिक स्कूलों में चपरासी नहीं होने की वजह से झाड़ू लगाना तो आम बात है, लेकिन लड़कियों से फावड़ा चलवाने और लड़कों से माल ढुलाई करवाने की ये तस्वीरें इस बात की तस्दीक करती हैं कि यहां मासूमों का भविष्य मुकम्मल नहीं किया जा रहा, बल्कि भविष्य के लिए मजदूर तैयार किये जा रहे हैं.
झाबुआ विकासखंड के कालापीपल संकुल के अंतर्गत आने वाली प्राथमिक शाला महुडी डूंगरी में बच्चों से झाड़ू लगवाया जा रहा है तो कुछ बच्चों से स्कूल में सामान की ढुलाई कराई जा रही थी, इसी तरह का नजारा कालापीपल और पीपलीपाड़ा स्थित स्कूलों में भी दिखाई दिया, जहां गुरूजी तो गायब रहे, पर स्कूली बच्चे झाड़ू-पोछा करते दिखाई दिए, जबकि मेघनगर विकास खंड के नौगांवा माध्यमिक शाला में पढ़ने वाली छात्राओं को गैंती और फावड़ा चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही थी.
कलम चलाने वाले इन नन्हें हाथों में फावड़ा देकर शिक्षक देश का कैसा भविष्य तैयार करना चाह रहे हैं. जबकि अच्छी तालीम के लिये ये बच्चे स्कूल जाते हैं, पर वहां उन्हें तालीम के बदले कुछ और ही सिखाया जा रहा है. गुरूजी गायब रहते हैं, कोई बच्चों को बताने-समझाने वाला नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं. ऊपर से स्कूलों की मॉनिटरिंग टीम भी कान में तेल डालकर बैठी है और कलेक्टर से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक बाल मजदूरी के सवाल पर खामोश हैं. पर इस चुप्पी को तोड़नी पड़ेगी कलेक्टर साहब, नहीं तो उज्जवल भविष्य का सपना चूर-चूर हो जाएगा.