झाबुआ से दौलत गोलानी की रिपोर्ट…… नौ उपवास करने वाली कु. आंचल कटकानी का चातुर्मास समिति ने किया बहुमान
झाबुआ। स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय में श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास के तहत अष्ट प्रभावक आचार्य देवे परम् पूज्य श्रीमद् विजय नरेन्द्र सूरीवरजी मसा एवं प्रन्यास प्रवर श्री जिनेन्द्र विजयजी मसा द्वारा अपने समुधर कंठ से प्रवचनों के माध्यम से समाजजनों में धर्म की गंगा प्रवाहित की जा रहीं है। श्रावक-श्राविकाएं उसमें गोते लगा रहे है।
29 जुलाई, सोमवार को सुबह 9 बजे से आयोजित प्रवचन में भक्तामर स्त्रोत की चौथी गाथा पर विवचेन करते हुए आचार्य नरेन्द्र सूरीवरजी मसा ने कहा कि जगत में देव बहुत होते है, परन्तु देवाधिदेव तारक होते है। देव संसार से अधिवृति करवाते है। तारक तासन प्राप्त करने के बाद मन में समाधि, आत्मा की बौद्धि भक्तामर से प्राप्त होती है। भक्तामर स्त्रोत की विस्तृत विवेचन करते हुए आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि अपनी सारी क्रियाएं आगम एवं शास्त्र के आधार पर होगी तो भक्त का ह्रदय द्रवित होकर भक्ति में लगेगा।
नियमित की गई साधना से मन पवित्र होता है
सूत्रों की जानकारी देते हुए आचार्य श्रीजी ने कहा कि प्रतिक्रमण का सूत्र जीवन को बदल देता है। जिस प्रकार लोगस्य में 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। उसी प्रकार मानतुंगाचार्यजी ने भक्तामर के अंदर आदिनाथ भगवान की स्तुति करते हुए कहा कि आप गुण समुद्र है। आपके गुणों से पार कोई पा नहीं सकता है। शांक अर्थात चंद्रमा का उदाहरण देते हुए कहा कि चंद्रमा में सोम्यता, शीतलता एवं सहजता होती है। पूर्णिमा का चंद्रमा समुद्र में ज्वार लाता है। उसी प्रकार जीवन में भक्ति का ज्वार परमात्मा भक्तिरूपी पूर्णिमा लाती है। सूत्रों के अंदर दीर्घ मात्राओं का ज्ञान भक्ति में भक्त को जोड़ता है। भक्तामर भक्त को अमर करता है। नियमित की गई साधना से मन पवित्र होता है।
कु. आंचल कटकानी का किया गया बहुमान
आचार्य श्रीजी के प्रवचन के बाद कु. आंचल अनिल कटकानी के नौ उपवास के उपलक्ष में उनका बहुमान श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति द्वारा किया गया। प्रवचन के बाद दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीवरजी मसा की पूजा एवं आरती का लाभ चातुर्मास समिति के वरिष्ठ संतोष, क्रि रूनवाल परिवार ने लिया। धर्मसभा का संचालन चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमलेश कोठारी ने किया।
फोटो 001 -ः धर्मसभा में समाजजनों को प्रवचन देते आचार्य देवे श्रीमद् विजय नरेन्द्र सूरीवरजी मसा।