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झाबुआ

थांदला मे अक्षय तृतीया पर संपन्न हुई दीक्षा. जयकार यात्रा मे उमड़ा जन सैलाब

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*महाभिनिष्क्रमण यात्रा, दीक्षार्थियों ने संयम जीवन को अंगीकार किया*

तपस्वियों का सम्मान: सामूहिक पारणा विधिपूर्वक संपन्न

थांदला (वत्सल आचार्य कि खास रिपोर्ट). महाभिनिष्क्रमण यात्रा का भव्य शुभारंभ 30 अप्रैल, बुधवार को प्रातःकालीन 7:30 बजे जैन समाज के लिए एक अत्यंत पावन एवं प्रेरणादायक क्षण उपस्थित हुआ, जब दीक्षार्थी मुमुक्षु ललित भंसाली एवं मुमुक्षु नव्या शाहजी की महाभिनिष्क्रमण यात्रा उनके निवास स्थान से प्रारंभ हुई। यह यात्रा आत्मा के भीतर जागृत वैराग्य, संयम और मोक्षमार्ग की ओर बढ़ने की आध्यात्मिक चेतना का प्रत्यक्ष प्रमाण थी। दीक्षा लेने वाली आत्माओं के चेहरों पर अद्भुत तेज और उत्साह दृष्टिगोचर हो रहा था। अलौकिक भावनाओं से ओत-प्रोत वातावरण में श्रद्धालुओं की उपस्थिति से यह यात्रा और भी दिव्य एवं गरिमामयी बन गई। समाज के अनेक श्रद्धालुओं ने भावपूर्ण सहभागिता कर इन आत्माओं को संसार से भावभीनी विदाई दी।

दीक्षा उपरांत दीक्षार्थी अब नए नाम से जाने जाएंगे

पूज्य प्रवर्तक देव श्री जिनेंद्र मुनि जी म.सा. की पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से मुमुक्षु श्री ललित भंसाली दीक्षा उपरांत बने पूज्य संत ललितमुनिजी म.सा. तथा मुमुक्षु कुमारी नव्या शाहजी दीक्षा उपरांत बनीं महासती यशस्वी जी म.सा. इनकी बड़ी दीक्षा का पावन अवसर दिनांक 6 मई रविवार 2025 को ग्राम कल्याणपुरा, जिला झाबुआ (म.प्र.) को लाभ दिया गया। दीक्षा के एक दिन पूर्व दोनों मुमुक्षु द्वारा एक सामूहिक भव्य वर्षिदान एवं जुलुस का आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में श्रावक श्राविकाओ ने भाग लेकर कार्यक्रम को भव्य बना दिया।

अक्षय तृतीया पर वर्षीतप पारणा: तप, त्याग और सेवा का संगम

अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर इसी दिन जैन समाज द्वारा वर्षीतप पारणा महोत्सव का भव्य आयोजन भी संपन्न हुआ। इस वर्ष 338 तपस्वियों ने वर्षभर की कठोर तपस्या के उपरांत सामूहिक पारणा कर अपना तप पूर्ण किया। यह आयोजन समाज के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा।

तपस्वियों की तपस्या का समापन जिस श्रद्धा, विधिपूर्वकता और भावनात्मक ऊर्जा के साथ किया गया, वह दृश्य अत्यंत प्रेरक एवं अभूतपूर्व रहा। सभी तपस्वियों की अनुमोदना एवं विशेष सम्मान लाभार्थी तलेरा परिवार द्वारा प्रदान किया गया।

प्रमुख लाभार्थी: राकेश एवं प्रफुल्ल तलेरा का सेवा भाव प्रेरणास्पद

वर्षीतप पारणा महोत्सव के मुख्य लाभार्थी स्व. शांताबाई सुरेंद्रकुमार तलेरा की पुण्य स्मृति में उनके सुपुत्र श्री राकेश तलेरा एवं श्री प्रफुल्ल तलेरा रहे। उन्होंने इस आयोजन में भरपूर अर्थ सहयोग प्रदान कर जैन समाज की सेवा में एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।

उनका यह योगदान न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे समाज में सेवा, समर्पण एवं धर्मप्रेम की भावना और भी सुदृढ़ होती है। यह पुण्य अवसर उन्हें ईश्वर की विशेष कृपा से प्राप्त हुआ, और उन्होंने इसे तपस्वियों की सेवा में समर्पित कर दिया। यह उनकी आध्यात्मिक चेतना एवं समाज-सेवा के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।

धर्मसभा का आयोजन : संयम जीवन का महत्व

महाभिनिष्क्रमण यात्रा के पश्चात एक विशेष धर्मसभा का आयोजन हुआ, जिसमें प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनि जी म.सा. ने मंगल प्रवचन और मांगलिक प्रदान की। उन्होंने संयम, तप और त्याग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए दीक्षार्थियों एवं समाजजन को आध्यात्मिक प्रेरणा से अभिभूत किया। प्रातः 8:15 बजे से दीक्षा विधि का शुभारंभ हुआ। दीक्षार्थियों ने समाज के समक्ष संयम जीवन को अंगीकार करते हुए सांसारिक बंधनों से मुक्ति का व्रत लिया। यह क्षण अत्यंत भावनात्मक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर था। अनेक श्रद्धालु इस शुभ अवसर पर साक्षी बने और अपने भावों के साथ दीक्षार्थियों का उत्साहवर्धन किया।

तपस्वियों का सम्मान: सामूहिक पारणा विधिपूर्वक संपन्न

वर्षीतप आराधकों का सामूहिक पारणा विधिपूर्वक संपन्न कराया गया। इस अवसर पर सभी तपस्वियों का श्रद्धापूर्वक सम्मान किया गया। उनका त्याग, उनकी तपस्या और आत्मिक साधना समाज के लिए एक प्रेरणा है। समाज के वरिष्ठजनों, युवाओं और महिलाओं ने पूरी श्रद्धा एवं भावना से इन पुण्यात्माओं की अनुमोदना कर अपने जीवन में धर्म और संयम को अपनाने की प्रेरणा ली।

संयम, सेवा और साधना का दिव्य समागम

अत्यंत भावुक पल

यह सम्पूर्ण आयोजन जैन समाज के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था। दीक्षा लेने वाले आत्माओं की साधना, तपस्वियों का कठोर तप और दानदाताओं का निश्छल सेवा भाव इन सभी ने मिलकर इस आयोजन को दिव्यता और भक्ति से भर दिया। यह कार्यक्रम न केवल एक सामाजिक समारोह था, बल्कि आत्मिक जागृति, धर्मानुराग और वैराग्य का जीवंत उदाहरण भी बना।

राकेश तलेरा एवं प्रफुल्ल तलेरा द्वारा दिया गया सहयोग न केवल आर्थिक रूप से उपयोगी रहा, बल्कि उससे समाज को यह संदेश मिला कि सेवा और समर्पण ही जैन धर्म की आत्मा हैं। यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।

संघ का सामूहिक योगदान

इस समस्त आयोजन की सफलता में श्री संघ के सभी सदस्यों की सहभागिता अत्यंत सराहनीय रही।
हर सदस्य ने अपनी सेवा, समर्पण और श्रम से इस महोत्सव को न केवल संभव, बल्कि स्मरणीय और ऐतिहासिक बना दिया।
संघ की एकजुटता, संगठन और धर्मानुराग ने यह सिद्ध कर दिया कि जब पूरा समाज धर्मकार्य से जुड़ता है, तो आयोजन सफल होते हैं।

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