झाबुआ से राजेंद्र सोनी की रिपोर्ट
कलयुग में गीता पढ़कर लोगो को अपनी समस्याओं का हल मिलता है,-पं. विशवनाथ शुक्ला
गीता जयंती के प्रथम चरण का हुआ समापन, दूसरे चरण में 4 से 6 जनवरी तक होगा गीता जी पर प्रवचन
झाबुआ । भारत की संस्कति और सभ्यता में “श्रीमद्भगवदगीता” या “भगवत गीता” का महत्वपूर्ण स्थान है। यह विश्व की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है। भारत में ही नही बल्कि विदेशों में यह ग्रंथ बहुत पढ़ा जाता है। इसमें श्रीकष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश दिया गया है। यही उपदेश भगवत गीता के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कुल 18 पर्व (अध्याय) और 720 श्लोक है। भीष्मपर्व में श्रीकष्ण का उपदेश दिया गया है। हिंदू धर्म में इस ग्रंथ को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। यह किसी जाति, धर्म विशेष का ग्रंथ नही बल्कि सम्पूर्ण मानवता का ग्रंथ है। यह मनुष्यों को कर्म का संदेश देता है। इसमें सभी वेदों का सार है। इस ग्रन्थ का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन जीवन की समस्याओं से हताश हो गये थे। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर अपने कर्म और युद्ध धर्म से विमुख हो गये थे। तब श्रीकृष्ण ने उनको निष्काम भाव से कर्म करने का उपदेश दिया था। फल की इच्छा छोड़कर कर्म करने का उपदेश दिया।“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुभूर्रू मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि” यह कहते हुए श्रीकृष्ण बोले कि आत्मा अजर अमर अविनाशी है। इसे कोई मार नही सकता है। इसे न जल भिगो सकता है और न ही अग्नि जला सकती है। आत्मा को हवा उड़ा नही सकती और कोई अस्त्र इसे काट नही सकता। जिस तरह व्यक्ति कपड़ा पुराना हो जाने पर नये वस्त्र धारण कर लेता है, उसी तरह व्यक्ति के मरने के बाद आत्मा नया शरीर धारण कर लेती है। इसे कभी मारा नही जा सकता। कलयुग में गीता पढ़कर लोगो को अपनी समस्याओं का हल मिलता है, इसे पढ़ने से आत्मिक शांति मिलती है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। इसे पढ़ने से लोगो का पाप समाप्त हो जाता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। कई बार वह भटक जाता है। उसे कुछ समझ नही आता है की क्या करे। ऐसे में गीता मनुष्यों को “क्रियाशीलता” का संदेश देती है। यह जीवन जीने की कला सिखाती है। अपने जीवन में कर्म करते हुए हम अनेक बार सफल और असफल होते है। पर तनिक सी असफलता मनुष्य को परेशान कर देती है। वो परेशान हो जाता है, चिंतित होकर जीवन जीने लगता है। ऐसे में गीता सिखाती है की कर्म करें पर फल की इक्षा न करे। फल की कामना करने से व्यक्ति अनायास ही भ्रमित चिंतित परेशान हो जाते है। गीता कहती है की फल को ईश्वर पर छोड़ देना चाहिये क्यूंकि मनुष्य के हाथ में सिर्फ कर्म करना ही है।गीता जी आम लोगो के लिए एक मुक्ति द्वार है। हमारे जीवन में अनेक समस्याएँ हमारे मन के द्वारा पैदा होती है। मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है। किसी एक जगह पर नही टिकता है। इधर से उधर भागता रहता है। स्वयं श्रीकष्ण भगवान ने इसे वश में करना अत्यंत कठिन बताया है।उक्त उदबोधन श्री चारभूजानाथ मंदिर में 17 सवे 19 दिसम्बर तक श्री गीता जयंती समारोह के प्रथम चरण के समापन के अवसर पर पण्डित विश्वनाथ ाक्ल नें उपस्थित धर्मप्रेमियों को संबोधित करते हुए गीगताजी के महत्व की व्याख्या करते हुए कहीं ।
इस अवसर पर इतिहास विद डा. केके त्रिवेदी ने भी अपने संबोधन में कहा कि 5 हजार र्वा पूर्व भगवान के श्रीमुख से कही कही गई श्रीमद भागवत गीता का हिन्दू धर्म के विद्वानो ं एवं संतों ने अपने अपने तरिके से व्याख्या करके बताया कि यह जीवन कुरूक्षेत्र की तरह होता है और जीवन के झंझावातो को सुलझाने तथा जीवन में आगे कैसे जीया जावे यह प्रेरणा गीताजी से मिलती है।लोक कैसे सुखी रहे यह सन्दे एवं मार्ग दिखाती है । श्रीकृण का विराट स्वरूप जीवन मे मृत्यु, या , अपया,ांका कुंका सभी को समाप्त करती है।श्री त्रिवेदी ने आगे कहा कि श्रीकृण ने अर्जुन को दीव्यदृषिट प्रदान की थी अर्जुन के अलावा इन्द्र को भी दीव्यदृटि के कारण उसे भगवान के विराट स्वरूप के र्दशन हुए थे । गीता का जिक्र करते हुए उन्होने आगे कहा कि समाज मे तीन भाव सात्विक, राजसी एवं तामसी गुण होते है। गीता में जीवन जीने की व्याख्या निहीत है। अर्जुन ने पुछा कि संसार क्या है तो कृण ने कहा कि जीवन मे आसक्ति का होना ही संसार है गृहस्थ जीवन में सन्यास हो सकता है। अर्जुन का सांय समाप्त होने पर उसे आभास हुआ कि संसार ही माया है। गीता मे ज्ञान गागर मे सागर की तरह है, गीता कल्पवृक्ष है ।
गीताजयंती के अवसर पर तीन दिनों तक पण्डित विशवनाथ शुक्ला के मार्गर्दाशन में श्रीमदभागवत गीता का बडी संख्या में श्रद्धालुओ ं ने पाठ किया ।नीमा समाज के हरिश शाह ने बताया कि इस आयोजन में त्रिदिवसीय गीता जयंती आयोजन मे नीमा समाज महिला मंडल के अलावा मनमोहनाह, संजय ाह लाला, शशांक वरदिया, ललित शाह, मनोज सोनी, जयप्रकाश शाह, नारायण मालवीय, गोपाल चौहान, जितेन्द्र शाह, कन्हैयालाल राठौर, द्वारा 54 वें गीता जयंती महोत्सव में सक्रिय भूमिका निभाते हुए सहयोग प्रदान किया गया । प्रथम चरण में गीताजी एवं भगवान चारभूजानाथ की आरती के साथ महाप्रसादी का वितरण किया गया ।
दूसरे चरण में गीता जयंती समारोह 4 जनवरी से 7 जनवरी तक
दशा नीमा समाज के हरिश शाह ने जानकारी देते हुए बताया कि 54 वें गीता जयंती समारोह के दूसरे चरण में 4 से 6 जनवरी तक त्रिदिवसीय गीता जयंती समारोह में भागवत वक्ता आचार्य गिरधर जी शास्त्री द्वारा श्री गोवर्धननाथ जी की हवेली में सायंकाल 7-30 बजे से रात्री 9 बजे तक श्रीमद भागवत गीता पर आध्यात्मिक प्रवचन दिये जायेगें। उन्होने नगर की धर्मप्रेमी जनता से अपील की है कि वे सपिरवार त्रिदिवसीय आयोजन में गीता अमृतपान के लिये सहभागी होकर धर्मलाभ प्राप्त करें ।