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झाबुआ

संघ साधना का परिणाम है कि समाज में गुणसम्पन्नता दिखाई देती है – पद्मश्री श्री महेश शर्मा

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हिन्दू नववर्ष पर संघ का प्रकट कार्यक्रम आयोजित

झाबुआ – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम जी हेडगेवार का व्यक्तित्व सूर्य समान प्रतिभाशाली है। उनके एक कण के बराबर तेज सभी में आ जाए तो दुनिया का अंधकार दूर हो जाए। दुनिया की भलाई के लिए उच्च जीवन मूल्यों पर कैसे जिया जाए साथ ही समाज जीवन कैसा होना चाहिए , यह उन्होंने बखूबी बताया। परतंत्रता के दौर में जब भारत को कोई हिन्दू राष्ट्र कहने से हिचकता था तब डॉक्टर हेडगेवार जी ने घोषणा कर दी थी कि यह एक हिन्दू राष्ट्र है। 1925 में संघ स्थापना के साथ उन्होंने कहा कि 23 घण्टे परिवार के लिए लेकिन एक घण्टा संघ के माध्यम से समाज को देना चाहिये। अनेकानेक संघ स्वयंसेवकों की निरन्तर साधना का परिणाम है कि आज समाज जीवन में गुणसंपन्नता दिखाए दे रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा हिन्दू नववर्ष गुड़ी पड़वा के उपलक्ष में आयोजित प्रकट कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उक्त प्रेरक विचार पद्मश्री श्री महेश शर्मा ने व्यक्त किए। उल्लेखनीय हैं कि संघ स्वयंसेवकों द्वारा नगर में पहली बार प्रगट कार्यक्रम के माध्यम से अलग – अलग नौ विधाओं के जरिए आत्मरक्षा , योगाभ्यास व सामूहिक एकरूपता का प्रदर्शन घोष की सुमधुर धुनों के साथ किया गया। उत्कृष्ट विद्यालय खेल मैदान पर आयोजित प्रकट कार्यक्रम के मंच पर पद्मश्री श्री महेश शर्मा ( शिवगंगा ) , विहिप जिला धर्मप्रचार प्रमुख श्री कमल जी महाराज , जिला कार्यवाह श्री आकाश चौहान व नगर संघचालक श्री सुभाष गिदवाणी मंचासीन थे। इस कार्यक्रम में सभी स्वयंसेवकों द्वारा संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी को आद्य सरसंचालक प्रणाम दिया गया। जो कि प्रतिवर्ष हिन्दू नववर्ष तिथि पर दिया जाता हैं।

प्रकट कार्यक्रम में स्वयंसेवकों द्वारा योगासन , पदविन्यास , दण्ड संचालन , नियुद्ध , यष्टि , दण्ड युद्ध , सलम्बम , पिरामिड व समता की विभिन्न मुद्राओं के तहत सामूहिक व एकरूप प्रदर्शन किया गया। प्रकट कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला कार्यवाह श्री आकाश चौहान ने कहा शाखा संघ का प्रण है। यह प्रतिदिन मातृभूमि के स्पर्श के साथ राष्ट्रभक्ति की पाठशाला है। यहाँ प्रतिदिन , वर्षभर दैनंदिन कार्यक्रमों के माध्यम से स्वयंसेवक जो सीखते है। उस पर आज कई लोग शोध कर रहे हैं कि देशहित में प्राण उत्सर्ग करने की शिक्षा यहाँ व्यक्ति कैसे पाते हैं। संघ सदैव राष्ट्र सेवा के लिए तत्पर रहता है। देश में महामारी हो या किसी भी तरह का संकटकाल , संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुँच सेवा कार्य में जुटते दिखाई देते हैं। आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी बचपन से ही पक्के राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने महारानी विक्टोरिया की वर्षगाँठ पर अंग्रेजों द्वारा स्कूल में बाँटी गयी मिठाई को ना केवल फैंक दिया था बल्कि सीताबर्डी स्थित किले पर फहराते यूनियन जैक को उखाड़ फेंकने के लिए गुप्त रूप से सुरंग तक खोदना बालपन में शुरू कर अपना राष्ट्रप्रेम प्रकट कर दिया था। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वर्ष 1925 में जब बच्चों को साथ लेकर उन्होंने संघ की स्थापना की तब वे सम्पूर्ण अविभाजित भारत के सबसे उत्तम व जाने माने 80 डॉक्टरों में से एक थे। उन्होंने व्यक्ति चिकित्सा से अधिक महत्व राष्ट्र चिकित्सा को देते हुए अपना जीवन राष्ट्र सेवा में लगा दिया। उन्होंने सदैव भारत को हिदू राष्ट्र ही कहा। उनका सदा कहना था कि एक व्यक्ति भी जब तक भारत मे हिन्दू है , यह हिन्दू राष्ट्र ही है। डॉ. हेडगेवार जी को लेकर गुरू गोलवलकर जी का कहना था कि ” वो ध्येय है जो देह रूप में हिदू राष्ट्र में सक्रिय हैं। ” 1940 में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में जब भारत के प्रत्येक क्षैत्र के प्रतिनिधि मौजूद थे तब अस्वस्थता के बावजूद व्हील चेयर पर वहाँ आकर उन्होंने कहा था ” याची देही , याची डोला ” अर्थात इसी शरीर और आँखों से मैं सम्पूर्ण भारत को आज एक साथ देख रहा हूँ। जिला कार्यवाह श्री चौहान ने स्वयंसेवकों की विशेषता बताते हुए कहा कि स्वयंसेवक हिमालय में बहने वाली नारायणी नदी में मिलने वाले शालिग्राम पत्थर की तरह है जिनमें , प्रवाह में होना , तली में नहीं बैठना और अकेला नहीं बहने की गुणसम्पन्नता होना जरूरी होता हैं। प्रकट कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री कमल महाराज ने कहा भारत , हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। हम सबको कदम से कदम मिलाकर चलना है। भारत माता की लगातार सेवा करते रहना है। हमें धर्मांतरण का सामना एकत्रित रूप से करना है। आदिवासी समाज में बहुत लोग धर्मांतरित हुए हैं लेकिन उन्हें निरन्तर समझाया जा रहा है। हमें अवैध चर्चो के खिलाफ आन्दोलन में हमेशा साथ मिलकर चलना है। प्रकट कार्यक्रम में सभी आयु वर्ग के स्वयंसेवक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। प्रकट कार्यक्रम का समापन ध्वज प्रणाम व प्रार्थना के साथ किया गया।

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