रतलाम । चित्त की वृत्तियों को अनुशासित करना ही योग है। मन में असीम शक्ति है, पर सबसे अधिक दुरुपयोग हम इसी शक्ति का करते हैं। इससे 95 प्रतिशत मानसिक शक्ति व्यर्थ चली जाती है। मन जितना शक्तिशाली होता है, उतना ही चंचल और अस्थिर भी होता है और इस चंचलता को नियंत्रित करने की योग से बेहतर शायद ही कोई दूसरी विधा हो। योग मन को नियंत्रित कर उसे दिशांतरित करने की तकनीक देता है। मोटे तौर पर बीमारियां दो प्रकार की होती हैं, शारीरिक (व्याधि) तथा मानसिक (आधि)। योग के अनुसार, जिसका मन रोगी व कमजोर है, उसका शरीर भी अवश्य रोगी व कमजोर होगा। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जहां रोग को शरीरगत मानता है, वहीं योग में मन पर अधिक जोर दिया जाता है। मानसिक समस्याओं में अवसाद, तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, मोह, लोभ, पार्किन्सन, एल्जाइमर्स, सिजोफ्रेनिया, भय व असुरक्षा आदि आते हैं। कैवल्य धाम, लोनावला के एक शोध के मुताबिक डायबिटीज, उच्च रक्तचाप जैसे शारीरिक रोगों समेत कई ऐसे मानसिक रोग हैं, जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में स्थायी बीमारियां माना जाता है, जबकि नियमित योगाभ्यास से न सिर्फ उन पर सकारात्मक असर होता है, बल्कि मानसिक रोगों को तो शत प्रतिशत ठीक किया जा सकता है। उक्त जानकारी रतलाम के कस्तुरबा नगर स्थित रोटरी गार्डन में योगाभ्यास कराते हुए योग गुरू प्रमोद पाठक ने योगाभ्यास कराते समय व्यक्त किये ।
पिछले चार दिनों ने रोटरी गार्डन कस्तुरबा गार्डन में योग गुरू प्रमोद पाठक द्वारा संगीत की स्वर लहरियों के साथ बडी संख्या में उपस्थित पुरूष एवं महिलाओं को प्रातः 6-30 बजे से 7-30 बजे तक योगाभ्यास करवाया जारहा है। योगाभ्यास में उनके द्वारा सरल तरिके से विभिन्न आसनों एवं योगाभ्यास के साथ ही जीवन को खुश रखने एवं निरोग रहने के बारे में प्रशिक्षित किया जारहा है । श्री पाठक के अनुसार यदि मन के तनाव का विज्ञान समझें तो पाएंगे कि तनाव चाहे भावनात्मक हो या मानसिक, यह हमारी पीयूष ग्रंथि को प्रभावित करता है। यह ग्रंथि शरीर की मास्टर ग्रंथि है। इस कारण यह ग्रंथि असंतुलित हार्माेन निकालने लगती है, जिसके असंतुलित हार्माेन स्राव के कारण थाइरॉएड ग्रंथि भी असंतुलित हो जाती है। इससे पूरे शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है और उसे हाइपो या हाइपर थाइरॉएडिज्म का शिकार होना पड़ता है। इसी तरह अधिक तनाव से हृदय गति तथा पल्स गति बढ़ जाती है, क्योंकि उस समय शरीर की कोशिकाओं को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है। हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे थकते-थकते एक दिन शरीर रोगी हो जाता है। इसका परिणाम हाइपरटेंशन और हृदय रोग होता है। अधिक मानसिक तनाव से हमारी सेक्स ग्रंथियां भी असंतुलित हार्माेन निकालने लगती हैं, जिससे नपुंसकता या अति सक्रियता जैसी समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। श्री पाठक के अनुसार मन को ठीक करने के लिए यौगिक क्रियाएं जैसे पद्मासन, वज्रासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन, जानुशिरासन, त्रिकोणासन तथा उष्ट्रासन आदि उपयोगी हैं। इसके अलावा नाड़ी शोधन, उज्जायी प्राणायाम एवं ध्यान का नियमित अभ्यास तन व मन दोनों के लिए उपयोगी है। योग का नियमित अभ्यास स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। याददाश्त क्षमता दुरुस्त रखता है। साथ ही रक्त संचालन व पाचन क्षमता में वृद्धि, नसों व मांसपेशियों में पर्याप्त खिंचाव उत्पन्न करने के अलावा योग से मस्तिष्क को शुद्ध रक्त मिलता है। इसके लिए खासतौर पर सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, पश्मिोत्तानासन, उष्ट्रासन व अर्धमत्स्येन्द्र आसन आदि करने चाहिए।
रोटरी गार्डन में आयोजित हो रहे योग प्रशिक्षण शिविर में अधिक से अधिक लोगों को सहभागी होकर इसका लाभ लेने तथा प्रतिदिन प्रातः 6-30 से आयोजित इस आयोजन में भाग लेने की अपील श्री पाठक ने की है ।
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