झाबुआ । जिला चिकित्सालय सहित पूरे स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की भांग घुली हुई हे कहा जावे तो आश्चर्य नही होगा । दिखाने के लिये कुछ और अन्दर ही अन्दर कुलडी में ही गुड फोडने के साथ ही भ्रष्टाचार के किस कदम संरक्षण दिया जा रहा हे यह तो सतही तौर पर मालुम नही पडता । जिला मुख्यालय के एक मात्र रेफरल हास्पीटल का दर्जा प्राप्त जिला चिकित्सालय में मरीजों के स्वास्थ्य के साथ किस कदर खिलवाड होता है, यह जान लिया जावे तो कोई भी समझदार मरीज यहां भरती होकर उपचार ही नही करायेगा । वही सीएमएचओ साहब का ध्यान अस्पताल की व्यवस्थाओं पर कम और बजट और मनीष पर अधिक रहता है । मनीष का भी यही काम है कि कैसे बजट आए और कैसे अपनों को उपकृत कर, अपना हिस्सा लिया जाए , इस जुगाड़ में ही दिन भर हो जाता है ।
कहने को तो जिला चिकित्सालय में आरोग्यमय वातावरण का दावा किया जाता है किन्तु जिला अस्पताल में मरीजों के लिये लगाये गये आरओ लम्बे अरसे से बंद पडे है और मरीजों को नलों से सीधा आ रहा दुषित पानी ही पीने या उपयोग करने की मजबुरी है । जिला चिकित्सालय मे सरकार के लाखो रूपये खर्च करके आरओ पानी प्रदाय की व्यवस्था को भी अस्पताल प्रबंधन के कारण ही पूरी तरह ग्रहण लग चुका है । फिलहाल यहां के सभी आरओ बंद ही पडे हुए है । जिला चिकित्सालय में प्रथम आरओ जिला चिकित्सालय के मेन गेट के पास , आरओ के आसपास गंदगी व काई जमी हुई है तथा इसमें कभी पानी आता है और कभी बंद रहता है वही दूसरा आरओ प्रसूति विभाग में लगा हुआ है जो पूर्ण रूप से बंद है तथा तीसरा आरओ द्धित्तीय तल पर लगा है जो भी पूर्ण रूप से बंद है तथा उसके आसपास गंदगी व्याप्त है । एक और आरओ जिला चिकित्सालय के अंदर की और लगा हुआ है वह भी पूर्ण रूप से बंद है । लगभग सभी आरओ बंद पड़े हुए हैं । वही लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की ओर से जिला अस्पताल को जो पानी प्रदाय किया जारहा है, वह सीधे ही अस्पताल के पास बने पूराने कुंए में डाला जाता है और वहां संग्रहित होकर वाटर पंप मोटर के माध्यम से जिला अस्पताल के उपरी तल पर बनी पानी की टंकी जो 50 हजार लीटर की है वहां डाला जाता हैे । उक्त टंकी (वाटर टेंक )से पूरे अस्पताल के वार्डो में डायरेक्ट ही प्रदाय होता है । यहां यह बताना उचित होगा कि पिछले 20 सालों से उक्त कुए की कभी साफ सफाई करवाई गई हो , ऐसा किसी ने नही देखा है। अर्थात पीएचई का पानी सीधे कुंए में और कुए से टंकी में जाकर सप्लाय हो जाता है । यह पानी निश्चित ही दुषित होकर इस पानी की कभी जांच भी नही हुई है जिससे मरीजों को इसका उपयोग करने पर किस तरह से स्वास्थ्य लाभ होता होगा यह विचारणीय है । मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, एवं सिविल सर्जन की मिली भगत के चलते यहा मरीजों को किस तरह से देखरेख होती है यह स्वयं सिद्ध है । लाखों करोड़ों के बजट वाला यह अस्पताल आज भी मूलभूत सुविधा के लिए, जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण तरस रहा है । मुख्य सभी जिम्मेवारों के संज्ञान में लाना इसलिये जरूरी है कि अस्पताल की छत पर बनी 50 हजार लीटर की पेयजल की टंकी की कभी सफाई होती ही नही है, केवल यदा कदा निरीक्षण दल आते है तो उसकी सफाई तिथि का गाज बदल दिया जाता हे और दर्शाया जाता है कि टंकी की सफाई नियमित रूप से होती है। यदि टंकी के पानी की लेबा्रेटिरी जांच करा ली जावे तो तय है कि पानी मानक स्तर का मिलेगा ही नही । ऐसे मे मरीजों को जल्द स्वास्थ्य लाभ मिलेगा भी या नही इसकी कोई गारंटी नही हेै। शासन प्रशासन इस ओर ध्यान देकर जिला चिकित्सालय में हो रही अव्यवस्था के लिए कोई दिशा निर्देश देगा या फिर यह मनमानी यूं ही चलती रहेगी…..?
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