झाबुआ – शहर मे 13 अक्टूबर, गुरूवार को सुहागिन महिलाओं द्वारा करवा चौथ श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया। महिलाएं संध्याकाल बाद चंद द्रेवताजी के दर्शन कर, विधि-विधान से पूजन-पाठ कर पति को छलनी में निहारकर, पति के हाथों से जल ग्रहण कर एवं उनके चरण स्पर्श कर अपना व्रत खोला। इस दिन महिलाओं द्वारा समूह में भी पूजन-पाठ किया गया और करवा चौथ पर्व को उत्साहपूर्वक मनाया । उपरोक्त फोटो में कोलाज के ऊपरी हिस्से में योगिनी अनिल पटवारे का चित्र है जो कि वर्तमान में पुणे ( महाराष्ट्र ) में निवासरत है फोन पर चर्चा अनुसार योगिनी का कहना है कि वह यह करवा चौथ का व्रत करीब 15 से अधिक वर्षों से निरंतर कर रही है । तथा यह व्रत हिंदू संस्कृति और विधि अनुसार पूर्ण कर रही हू । तथा यह व्रत अपने पति की लंबी आयु के लिए कर रही हु । वही उपरोक्त फोटो में कॉलेज के निचले हिस्से में रश्मि राघव कनेरिया जो वर्तमान में राजस्थान के चित्तौड़गढ में निवासरत है वह भी यह करवा चौथ का व्रत शादी उपरांत करीब 20 वर्षों से लगातार कर रही है तथा पति की लंबी आयु के साथ-साथ परिवार में सुख और शांति बनी रहे , इसलिए यह व्रत निरंतर कर रही है । दोनों ही झाबुआ की बेटी होने के साथ ही हिंदू संस्कृति और मान्यताओं के आधार पर करवा चौथ का व्रत शादी उपरांत निरंतर कर रही है । वही दोनों का यह भी कहना है पूजा पाठ के बाद, चंद्र देव के दर्शन करने के पश्चात , पति के द्वारा जल ग्रहण करने के बाद ही व्रत को खोला गया है और पति द्वारा उन्हें गिफ्ट भी दिए गए हैं।
जानकारी अनुसार हिंदू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ का व्रत, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर, गुरुवार को रात 1 बजकर 59 मिनट पर शुरु होगा और 14 अक्टूबर को रात 3 बजकर 8 मिनट पर समाप्त हुआ। क्योंकि उदयातिथि 13 अक्टूबर को पड़ रही है, इसलिए यह व्रत 13 अक्टूबर को ही मनाया गया ।
करवा चौथ का व्रत, कैसे रखा जाता है? करवा चौथ का व्रत, सभी व्रतों में कठिन माना गया है। करवा चौथ का व्रत, निर्जला व्रत की श्रेणी में आता है। यानी, इस दिन सुहागिन स्त्रियां पूरे दिन अन्न और जल का त्याग कर, शाम को 16 श्रृंगार करने के बाद, विधि-विधान के साथ भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिक की पूजा करती हैं। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं। सुहागिन स्त्रियां, करवा चौथ का व्रत रखकर, अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
चांद को देखने के बाद तोड़ा जाता है व्रत करवा चौथ का व्रत, रात्रि में चंद्रमा के निकलने के बाद ही तोड़ा जाता है। इस दौरान चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है। करवा चौथ के पूजन के दौरान स्त्रियां, छलनी से पति का चेहरा देखकर, पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत खोलती है और उसके पश्चात पति के हाथ से भोजन ग्रहण करती हैं। करवा चौथ का व्रत, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में बड़े ही श्रद्धाभाव से मनाया जाता है।
करवा चौथ पूजन विधि इस दिन शाम के समय, पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान की मूर्ति स्थापि की गई। इसके बाद वहां एक मिट्टी का करवा और एक मीठा करवा रखा गया। फिर व्रत कथा पढ़ी गई। रात को चंद्रमा निकलने के बाद अर्घ्य दें और व्रत का पारण किया । यह भी मान्यता है कि करवा चौथ के दिन महिलाएं, अपनी सास व अपने से बड़ों को कपड़े व भोजन देती हैं। और ऐसा करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि ऐसा करना शुभ होता है और बड़ों का आशीर्वाद हमेशा व्रती के साथ बना रहता है। करवा चौथ के इस पर्व का धार्मिक के साथ-साथ, सामजिक महत्व भी है। क्योंकि इस पर्व में महिलाएं, एक समूह में कथा सुनती हैं और साथ ही इस त्यौहार से जुड़े अन्य रीति-रिवाज़ों को निभाती हैं। यहाँ तक कि, रात में चन्द्रमा के निकलने की प्रतीक्षा भी साथ मिलकर करती हैं। इस त्यौहार से भक्तिभाव की वृद्धि तो होता ही है, साथ ही साथ, दम्पति के, एक-दूसरे के प्रति, प्रेमभाव में भी वृद्धि होती हैं।
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