तुषार कोठारी
रतलाम। शहर के ट्रैफिक को सुधारने के लिए जिला इंतजामिया के बडे साहब खुद सड़कों पर उतर पडे। बडे साहब सडक पर उतरे तो असर तो होना ही था। शहर के बीच बाजारों में हुए अवैध कब्जों को हटाने का फरमान बडे साहब ने सुनाया,तो अगले ही दिन मशीनी पंजा कब्जे हटाने पंहुच गया। बडे साहब की इस मुहिम के बाद अब एक सवाल और पूछा जा रहा है कि पार्किंगों पर हुए कब्जे कब हटाए जाएंगे,क्योकि ट्रैफिक की समस्या के पीछे यह भी एक बडा कारण है।
बडे साहब शहर की सड़कों पर दो रात पैदल घूमे। बडे साहब ने देखा कि दुकाने आगे तक निकल आई है और इसी वजह से चौडी सड़कें पतली गलियों में तब्दील हो गई है। पूरे शहर के चक्कर लगाने के बाद बडे साहब ने अगले ही दिन सड़कों को चौडी करने के लिए मुहिम शुरु करवा दी। नगर निगम अपने मशीनी पंजे के साथ उन सभी जगहों पर पंहुच गई,जहां सडकें संकरी हो गई थी।
लेकिन शहर के तमाम बाजारों में बने काम्प्लेक्स और मल्टियां भी सड़कों को संकरा करने के काम में लगी हुई है। मल्टी स्टोरी काम्प्लेक्स बनाने के लिए पार्किंग बनाना सबसे जरुरी शर्त होती है। बिना पार्किंग बनाए बिल्डिंग का नक्शा तक पास नहीं हो पाता। इस लिहाज से शहर के तमाम काम्प्लेक्स के तलघरों में पार्किंग बनी हुई है। लेकिन शहर के किसी भी मार्केट या काम्प्लेक्स को देख आईए,पार्किंग कहीं भी नजर नहीं आएगी।
तमाम मार्केट और काम्प्लेक्स के मालिकों नें नक्शे में जिस जगह पार्किंग बना रखी थी,वहां अब दुकानें बनाकर बेच दी गई है। मालिकों ने पार्किंग बेच कर लाखों बना लिए,लेकिन इसका नतीजा ये है कि जिन गाडियों को इन पार्किंग्स में खडे रहना था,वो गाडियां सड़कों पर खडी रहती है और इसका नतीजा वही है कि सड़कें संकरी होकर गलियों में बदल चुकी है।
तो कुल मिलाकर बडे साहब को सड़कें चौडी करने के लिए बाजार के तमाम काम्प्लेक्स और मार्केटों में पार्किंग का पता लगाना चाहिए। ताकि वाहनों के लिए बनाई गई जगह पर वाहन ही रहे,धन्धा ना किया जाए। यकीन मानिए,शहर के भीडभाड भरे बाजारों में अगर सड़़कों पर खडे वाहन हट जाए,तो बीच बाजार से बडे वाहन भी आसानी से गुजरने लग जाएंगे।
तो उम्मीद की जाए कि सड़कों पर अवैध कब्जा करने वालों को झटका दे चुके बडे साहब अब पार्किंग बेच कर लाखों करोडों कमाने वालों को भी अपने निशाने पर लेंगे और जब भी ऐसा होगा,शहर का ट्रैफिक चकाचक हो जाएगा।
सौ करोड का सुराज
बंजली सेजावता बायपास बना तो यहां ना सिर्फ जमीनों की कीमतें बढी,बल्कि शहर के चतुर जमीनखोर भी जमीनें कब्जाने के लिए लालायित हो गए। एक जमीनखोर ने तो सरकारी जमीन पर ना सिर्फ कब्जा कर लिया बल्कि यहां कालोनी बनाने के लिए सड़क तक तैयार करवा दी। सरकारी अमले ने एक बार पहले भी इस जमीन के कब्जे हटाए थे,लेकिन जमीन हथियाने की विशेषज्ञता हासिल कर चुके जमीनखोरों ने दोबारा से इस जमीन पर कब्जा कर लिया था। मामला बडे साहब की नजर में आया,तो उन्होने फौरन जमीन को सरकारी कब्जे में वापस लाने का फरमान जारी कर दिया। अब इस जमीन पर सौ करोड की सुराज कालोनी बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। कमजोर वर्ग के लोगों के लिए सुराज कालोनी लाटरी लगने की तरह होगी,जहां उन्हे सस्ती दरों पर अपना घर मिलेगा। शहर के आसपास ऐसी और भी कई महंगी सरकारी जमीनें मौजूद है,जिन पर लोगों ने कब्जे जमा रखे है। इंतजामिया को इन पर भी नजर डालना चाहिए,ताकि सरकारी जमीनें सुरक्षित हो सके।
सफेद कोट वाले की फरारी……
लगता है ये वक्त सफेद कोट वालों के बुरा साबित हो रहा है। अभी बच्चों का इलाज करने वाले एक सफेद कोट वाले की चर्चाएँ थमी भी नहीं थी कि लम्बे वक्त से फरारी में चल रहे एक दूसरे सफेद कोट वाले की बातें सामने आने लगी। सफेद कोट वाले ये महाशय होम्योपैथी से लगाकर आयुर्वेदिक और नर्सिंग जैसे कई कालेज चलाया करते थे। पहले पंजा पार्टी के चहेते थे,लेकिन बाद में फूल छाप का दामन थामे हुए थे। लेकिन फूल छाप का दामन थामना भी उनके काम ना आया। इनके कालेजों में पढने वालों से जबर्दस्त वसूली की पुरानी परम्परा रही है। इसी वसूली के चक्कर में एक छात्र को इतना प्रताडित किया गया कि आखिरकार उसने अपनी जान दे दी। छात्र की जान गई तो बातें सामने आई। मरने वाला अपनी डायरी में ही लिख कर गया था कि उसे इतना प्रताडित किया जा चुका है,कि उसने जान देने का फैसला कर लिया। बात खुली तो सफेद कोट वाले महाशय और उनके सुपुत्र दोनों के खिलाफ मामला दर्ज हो गया। इस बात को कई महीने गुजर गए हैैं। लोगों को उम्मीद थी कि सफेद कोट वाले साहब अदालत से राहतच हासिल कर लेंगे,लेकिन अदालत ने उन्हे अब तक कोई राहत नहीं दी है। अदालत ने भले ही उन्हे राहत ना दी हो,वर्दी वाले उन्हे पूरी राहत दे रहे है। उन्हे पकडने की कोई कोशिश तक नहीं की जा रही है। महाशय अपने तमाम कालेज भी किसी दूसरे को किराये पर उठा गए है। कहते है कि वे अब महाराष्ट्र के मेहमान है,और उनका रतलाम आने का कोई इरादा नहीं है। पता नहीं वर्दी वालों को उस केस की याद भी है या नही….?