गुरु की आवश्यकता मनुष्यों के साथ ही स्वयं देवताओं को भी होती है- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास
3 जुलाई को मनाई जावेगा श्रद्धा भक्ति के साथ गुरूपूर्णिमा महापर्व ।
झाबुआ । गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा-गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः। अर्थ है- हे गुरु, आप देवताओं के समान हैं. आप ही भगवान ब्रह्मा हैं, आप ही भगवान विष्णु हैं और आप ही महेश हैं। आप देवताओं के देवता हैं। हे गुरुवर! आप सर्वोच्च प्राणी हैं। मैं नतमस्तक होकर आपको नमन करता हूं।पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है। इसमें गु का अर्थ अंधकार, अज्ञान से है तो वहीं रु का अर्थ दूर करना या हटाना है। इस तरह से गुरु वह है जो हमारे जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं और हमें ज्ञानी बनाते हैं. गुरु से ही जीवन में ज्ञान की ज्योति से सकारात्मकता आती है।ज्योतिर्विद पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया कि गुरु पूर्णिमा तिथि; सोमवार 3 जुलाई 2023 को मनाई जावेगी । पंचागके अनुसार गुरूपूर्णिमा पर्व आषाढ़ पूर्णिमा तिथि आरंभ रविवार 2 जुलाई 2023,रात्रि 08 बज कर 21 मिनट से होकर आषाढ़ पूर्णिमा तिथि सोमवार 3 जुलाई 2023, शाम 05 जबकर 08 मिनट तक रहेगी।
पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत महर्षि वेद व्यास जी के 5 शिष्यों द्वारा की गई। हिंदू धर्म में महर्षि वेद व्यास को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है। महर्षि वेद व्यास को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में गहरी रूचि थी। ईश्वर के ध्यान में लीन होने के लिए वो वन में जाकर तपस्या करना चाहते थे। लेकिन उनके माता-पिता ने इसके लिए उन्हें आज्ञा नहीं दी। तब वेद व्यास जी जिद्द पर अड़ गए., इसके बाद वेद व्यास जी की माता ने उन्हें वन में जाने की अनुमति दे दी। लेकिन माता ने कहा कि, वन में परिवार की याद आए तो तुरंत वापस लौट जाए। इसके बाद पिता भी राजी हो गए। इस तरह माता-पिता की अनुमति के बाद महर्षि वेद व्यास ईश्वर के ध्यान के लिए वन की ओर चले गए और तपस्या शुरू कर दी। वेद व्यास जी ने संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल की और इसके बाद उन्होंने महाभारत, 18 महापुराण, ब्रह्मसूत्र समेत कई धर्म ग्रंथों की रचना की। साथ ही वेदों का विस्तार भी किया। इसलिए महर्षि वेद व्यास जी को बादरायण के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि आषाढ़ माह के दिन ही महर्षि वेद व्यास जी ने अपने शिष्यों और ऋषि-मुनियों को श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया। तब से महर्षि वेद व्यास के 5 शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने और इस दिन गुरु पूजन करने की परंपरा की शुरुआत की। इसके बाद से हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
पण्डित व्यास के अनुसार शास्त्रों में भी गुरु को देवताओं से भी ऊंचा स्थान प्राप्त है। स्वयं भगवान शिव गुरु के बारे में कहते हैं, ‘गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते।’ यानी गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है। इसका अर्थ है कि, गुरु की आवश्यकता मनुष्यों के साथ ही स्वयं देवताओं को भी होती है। गुरु को लेकर कहा गया है कि, हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर। यानी भगवान के रूठने पर गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु अगर रूठ जाए तो कहीं भी शरण नहीं मिलती। इसलिए जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि आप जिसे भी अपना गुरु मानते हों, गुरु पूर्णिमा के दिन उसकी पूजा करने या आशीर्वाद लेने से जीवन की बाधाएं दूर हो जाती है।
वे आगे बताते है कि समाज और इसके निर्माण प्रक्रिया में गुरु एक अभिन्न अंग है। हिंदू धर्म में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है। हर साल आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु पूर्णिमा पर गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने महाकाव्य महाभारत की रचना की थी।
पण्डित द्विजेन्द्र कु अनुसार जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो दुखों का शमन हो जाए तथा परब्रह्म अर्थात् स्वयं के स्वरूप की अनुभूति हो जाए ऐसा ज्ञान गुरु कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। आदिगुरु परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषिमुनियों को शिवज्ञान प्रदान किया था, इसकी स्मृति में गुरु पूर्णिमा महापर्व मनाया जाता है। यह उन सभी गुरुजनों को समर्पित परंपरा है, जो कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक शुल्क के अपनी बुद्धिमत्ता को साझा करने के लिए तैयार हों। यह पर्व आध्यात्मिक शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा वाले दिन वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन व्यासजी का पूजन किया जाता है। वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं-व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।
अर्थात व्यास विष्णु के रूप हैं तथा विष्णु ही व्यास हैं, ऐसे वशिष्ठ-मुनि के वंशज को मैं नमन करता हूं। (वशिष्ठ के पुत्र शक्ति, शक्ति के पुत्र पराशर और पराशर के पुत्र व्यास)। जीवन में अनेक गुरु आते हैं। सर्वप्रथम गुरु माता, फिर पिता गुरु होते हैं। उसके बाद विद्यालय में विद्या गुरु प्राप्त होते हैं। अध्यात्म की ओर जाने पर दीक्षा गुरु जीवन में आते हैं। दत्तात्रेय ने जीवन में 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने पेड़, पौधे, पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, सबको अपना गुरु बनाया। श्रीमद्भागवत के 11वें स्कंध में गुरु दत्तात्रेय के 24 गुरुओं का विस्तार से उल्लेख है। गुरु शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है – अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना। गुरु किसी व्यक्ति विशेष को नहीं कहते, अपितु गुरु तत्त्व है, गुरु ज्ञान है, ज्योतिपुंज है, जो संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त है ।
गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई दिन सोमवार को मनाई जाएगी। हर वर्ष गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, इस पूर्णिमा का आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य गुरु का पूजन कर आशीर्वाद लेते हैं और गुरु के प्रति आभार व्यक्त करते हैं क्योंकि गुरु अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। सनातन धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि गुरु ही भगवान के बारे में बताते हैं और इनके बिना ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। कबीरदासजी ने लिखा है- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये। कबीरदासजी का यह दोहा गुरु के प्रति सम्मान को व्यक्त करते हुए है। गुरु पूर्णिमा गुरु व शिष्य की परंपरा के लिए विशेष होता है। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और भगवान का साक्षात्कार करवाते हैं। इसलिए गुरुओं के सम्मान में हर वर्ष यह पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के अलावा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इस दिन गाय की पूजा व सेवा और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। वहीं गुरु की पूजा करने से कुंडली में गुरु दोष समाप्त होता है। इस दिन अनेक मंदिरों और मठों में गुरु पूजा की जाती है।
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेद व्यासजी का जन्म हुआ था इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं। महर्षि वेद व्यासजी ने मानव जाति को पहली बार चार वेदों का ज्ञान दिया था इसलिए उनको मानव जाति का प्रथम गुरु भी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, व्यासजी को तीनों काल का ज्ञाता भी माना जाता है और उन्होंने महाभारत ग्रंथ, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत और मानव जाती को अनगिनत रचनाओं का भंडार दिया है। वेद व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है लेकिन वेदों की रचना करने के बाद वेदों में उन्हें वेद व्यास के नाम से ही जाना जाने लगा। गुरु पूर्णिमा की शुरुआत वेद व्यासजी के पांच शिष्यों ने शुरुआत की थी।
पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार गुरु पूर्णिमा 2 जुलाई, रात 8 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ होकर 3 जुलाई, शाम 5 बजकर 8 मिनट पर इसका समापन होगा । शास्त्रों के अनुसार उदया तिथि को मानते हुए गुरु पूर्णिमा का पर्व 3 जुलाई दिन सोमवार को ही मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा, स्नान, दान का शुभ मुहूर्त 3 जुलाई सुबह 5 बजकर 27 मिनट से 7 बजकर 12 मिनट तक है। इसके बाद सुबह 8 बजकर 56 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। फिर दोपहर में 2 बजकर 10 मिनट से शुरू होकर 3 बजकर 54 मिनट तक रहेगा।गुरु पूर्णिमा वाले दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन ब्रह्म योग, इंद्र योग और सूर्य व बुध की युति से बुधादित्य राजयोग भी बन रहा है।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि के बारे में बताते हुए उन्होने कहा कि गुरु पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विधान है। सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर के पूजाघर में पूजा अर्चना कर गुरुओं की प्रतिमा पर माला अर्पित करें। इसके बाद गुरु के घर जाएं और उनकी पूजा कर उपहार देते हुए आशीर्वाद लें। जिन लोगों के गुरु इस दुनिया में नहीं रहे, वे गुरु की चरण पादुका का पूजन करें। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के प्रति समर्पित होता है। शिष्य अपने गुरु देव की पूजा करते हैं। जिन लोगों के गुरु नहीं होते, वे अपने नए गुरु बनाते हैं।