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झाबुआ

आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक-दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर वे भूल जाते है, जीवन में प्रत्येक प्राणी को परमात्मा से एक रिश्ता जरूर बनाना चाहिए- पण्डित अनुपानंद जी  । भागवत कथा के अन्तिम दिन रूकमणी हरण एवं सुदामा चरित्र कथा ने किया भाव विभोर । अन्तिम दिन  धुमधाम सेे निकाली गई पोथी की शोभायात्रा ।

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आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक-दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर वे भूल जाते है, जीवन में प्रत्येक प्राणी को परमात्मा से एक रिश्ता जरूर बनाना चाहिए- पण्डित अनुपानंद जी  ।

भागवत कथा के अन्तिम दिन रूकमणी हरण एवं सुदामा चरित्र कथा ने किया भाव विभोर ।

अन्तिम दिन  धुमधाम सेे निकाली गई पोथी की शोभायात्रा ।

झाबुआ। शहर के श्री विश्व शांति नवग्रह शनि मंदिर परिसर में श्री पद्मवंशीय मेवाडा राठौर (तेली) समाज द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन व्यास पीठ से श्रीमद् भागवत कथा के सरस प्रवक्ता कानपुर, उप्र से पधारे आचार्य पं. अनुपानंदजी ने रूकमणी विवाह, भगवान श्री कृष्ण एवं उनके बाल सखा सुदामाजी के चरित्र का वर्णन किया।

आचार्य पं. अनुपानंदजी ने महती धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि रुक्मणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी। रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुक्मणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्मण संदेशवाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदु रथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त करके रुक्मणी का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुक्मणी से विवाह किया। इस दौरान श्रद्धालुओं को धार्मिक भजनों पर नृत्य करते व जयकारे लगाते हुए भी देखा गया। जिससे माहौल धर्ममय हो गया।


उन्होने भगवान के बाल सखा सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि संसार में मित्रता श्री कृष्ण और सुदामा की तरह होनी चाहिए। सुदामा के आने की खबर मिलने पर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल से पग धोए, अर्थात श्री कृष्ण अपने बाल सखा सुदामा के आगमन पर उनके पैर धोने के लिए पानी मंगवाया, परन्तु सुदामा की दुर्दशा को देखकर इतना दुख हुआ है कि प्रभु के आंसुओं से ही सुदामा के पैर धुल गए। आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक-दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर वे भूल जाते है। जीवन में प्रत्येक प्राणी को परमात्मा से एक रिश्ता जरूर बनाना चाहिए। भगवान से बनाया गया रिश्ता जीव को मोक्ष की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि स्वाभिमानी सुदामा ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सखा कृष्ण का चिंतन और स्मरण नहीं छोड़ा। इसके फलस्वरूप कृष्ण ने भी सुदामा को परम पद प्रदान किया। पण्डित अनुपानंद जी सुदामा के चरित्र की सप्रसंग व्याख्या की । सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए। बताया कि भागवत कथा सुनने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कथा की विश्रांति पर बैंडबाजों के साथ शहर में भागवत पौथी के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई।


बैंडबाजों के साथ निकाली शोभायात्रा
अभिनंदन समारोह के बाद शाम को शनि मंदिर परिसर से बैंडबाजों के साथ भागवत पौथी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली गई। जिसमें आगे पुरूष वर्ग और पीछे ढोल पर नृत्य करते हुए युवतियां और महिलाएं चल रही थी। इनके पीछे सु-सज्जित रथ में भगवताचार्य सरस प्रवक्ता पं. अनुपानंदजी विराजमान रहे। जिनका यात्रा मार्ग में विभिन्न समाज व संस्था के लोगों ने पुष्पवर्षा कर व पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया। शोभायात्रा सिद्वेश्वर महादेव मंदिर के प्रवेश द्वार से आरंभ होकर थांदला गेट, लक्ष्मीबाई मार्ग, राजवाडा, श्री गौवर्धननाथ मंदिर तिराहा, आजाद चैक, बाबेल चैराहा, थांदला गेट होते हुए पुनः शनि मंदिर पहुंची। जहां यात्रा का समापन हुआ। इस बीच जगह-जगह भक्तजनों द्वारा भागवत पौथीजी कोे सिर पर उठाकर चलने में अत्यधिक उत्साह के साथ यात्रा में शामिल सभीजनों पर पुष्पवर्षा की गई।


कथावाचक, लाभार्थी परिवारों, सहयोगियों का किया स्वागत
श्रीमद् भागवत कथा के 7वें दिन के कथावाचक, लाभार्थी परिवारों, समाज के पदाधिकारियों, वाद्ययंत्र टीम के कलाकारों सहित सहयोगियों का कथा के अंत में स्वागत किया गया। कथा वाचक पं. अनुपानंदजी का साफा बांधकर, साल ओढाकर एवं श्रीफल भेटकर एवं वाद्ययंत्र की टीम के कलाकर सचिन दुबे, कमल तिवारी, हिमांशु मिश्रा एवं नारायण भाई का स्वागत समाज के रामनाथ झरवार द्वारा किया गया। शनि मंदिर के पुजारी राधेश्याम जोशी का स्वागत समाज के वरिष्ठ शंकरलाल टेकचंदजी ने किया। 7वे दिन के लाभार्थी परिवार शांतिबाई सागरमल मावर, मंजु गोर्धलाल गोलानिया का गले में गमछा डालकर एवं नितेश गोर्धनलाल का साफा बांधकर, गले में गमछा डालकर व श्रीफल भेटकर तथा लाभाथी मोतलीबाई रणछोडलाल मावर का गले में गमछा डालकर एवं जितेंद्र रणछोडलाल का साफा बांधकर, गले में गमछा डालकर व श्रीफल भेटकर समाज के सचिव मनीष राठौर एवं सह सचिव कुलदीप पंडीयार द्वारा स्वागत किया गया। वही लाभाथी परिवारो को समाज के सदस्य मुकेश मदनलालजी रोजा एवं रणछोडलाल गुलाबचंदजी सोनावा द्वारा प्रतिक चिन्ह भेटकर लाभार्थी परिवार का अभिनंदन किया गया। इस कथा की शुरूआत कर पिछले 10 वर्षो से व्यवस्था का दायित्व संभालने  वाले शांतिलाल धुलजी का साफा बांधकर एवं गमछा डालकर स्वागत दिनेश राधुजी ने किया। नगर के एक वार्ड में पार्षद के रूप में निर्वाचित होने पर समाज की कविता हेमेंद्र राठौर का स्वागत रणछोड नारायणजी पंडीयार द्वारा किया गया। सात दिनों तक लाभाथी परिवारों को साफा बांधने वाले राजेश सतोगिका का स्वागत संतोष रूपचंदजी, साउंड सिस्टर की व्यवस्था देख रहे शरू भाई का स्वागत निलेश रामचंद्र राठौर एवं समाज के अध्यक्ष रामचंद्र राठौर, उपाघ्यक्ष महेश शिवम् राठौर, सचिव मनीष राठौर, कोषाध्यक्ष अजय राठौर, सह सचिव कुलदीप पंडीयार का स्वागत प्रवीण नंदलाल राठौर, महेश नेमीचंद राठौर, जगदीश तुलसीरामजी सरतालिया, दिनेश रणछोडलाल राठौर एवं हेमेंद्र नाना राठौर द्वारा किया गया। स्वागत समारोह के पश्चात लाभार्थी परिवारों द्वारा भागवतजी की आरती कर प्रसादी का वितरण किया।

 

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