थांदला (वत्सल आचार्य)— आचार्य श्री अजित सागर जी से सन 1987 में दीक्षित मुनि श्री पुण्य सागर जी गुरुदेव का 19 वर्षो के बाद आर्यिका सौरभमति एवम 19 शिष्यों सहित भव्य मंगल प्रवेश होगा। जहां एक औरपरिवारवाद ,भाई भतीजाबाद राजनेतिक क्षेत्र में होने से भारत देश पीड़ित है। किंतु यही परिवारवाद भाई भतीजावाद जब आध्यात्मिक के क्षेत्र में होता है तब वह प्रशंसनीय ,अनुकरणीय प्रेरक हो जाता है ।दिगंबर जैन समाज में देखे तो प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान से परिवारवाद अध्यात्म में प्रारंभ हुआ है। श्री ऋषभदेव सहित उनके पुत्रों ने, पुत्री ने संन्यास लेकर आत्म कल्याण किया है। वर्तमान में अगर हम देखें तो जो दिगंबर मुनिराज साधु हो रहे हैं उसमें भी अनेक उदाहरण मिलते हैं जहां दादा ने ,पिता ने ,पोते ने पति-पत्नी दीक्षा लेते हैं दादाजी, बेटी ,पोती दीक्षा लेती है कहीं जगह परिवार के सभी सदस्य माता-पिता पुत्र दीक्षा लेते हैं ऐसे उदाहरण अनेक है ऐसा प्रसंग थांदला मध्य प्रदेश में देखने में आया है जहां पर पहले पुत्र संयम मार्ग पर आगे बढ़ते हैं ।प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजित सागर जी महाराज से बाल ब्रह्मचारी हसमुख जी मेहता थांदला दिगंबर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर पूज्य मुनि श्री पुण्य सागर जी महाराज हो जाते हैं।श्रीमती गुणवतीदेवी श्री पन्नालाल जी मेहता के यहां 20 सितंबर 1965 को जन्मे हंसमुख मेहता ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में सीधे मुनि दीक्षा उदयपुर में आचार्य श्री अजित सागर जी से प्राप्त कर द्वितीय मुनि शिष्य के रूप में मुनि श्री पुण्य सागर जी सात जून 1987 को बने। सात भाईयो में सात तत्व को समझ कर 5 वे क्रम के पुत्र पांचवे साधु परमेष्ठि बन गए अध्यात्म का सप्त रंग फैलाया। दीक्षा गुरु की अनायास 3 वर्षो में समाधि होने के बाद पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के संघस्थ होकर धर्म प्रभावना कर रहे हैं। आपके वैराग्य से प्रेरित होकर गृहस्थ अवस्था के माता पिता भाईयो ने आपसे दीक्षा लेकर पिता मुनि श्री परमेष्ठि सागर जी , माता आर्यिका श्री पुण्यमति ,भाई मुनि श्री महोत्सव सागर ,मुनि श्री उपहार सागर बने।चाचा क्षुल्लक श्री पूर्ण सागर एवम चाची आर्यिका पूर्णिमा मति होकर समाधिस्थ हो गई। वही भतीजे विकास भैय्या भी मुनि श्री के संघस्थ है कांतिलाल,हर्ष वर्धन देवेंद्र शरद राजेंद्र मेहता से प्राप्त जानकारी अनुसार नगर गौरव मुनि श्री पुण्य सागर जी ने अभी तक 45 से अधिक दीक्षाए दी । मुनि श्री पुण्य सागर जी का 19 वर्षो के बाद 19 दीक्षित शिष्यों के साथ प्रवेश हो रहा है मुनि श्री महोत्सव सागर ,मुनि श्री उपहार सागर एवम क्षुल्लक श्री पूर्ण सागर जी का दीक्षा के बाद प्रथम बार प्रवेश हो रहा है । दीक्षा गुरु की जन्म भूमि की रज स्पर्श के लिए शिष्य भी उत्साहित है। नगर की गौरव शाली संत परंपरा विकास भैया ने बताया कि थांदला नगर से दिगंबर जैन समाज से मुनि श्री पुण्य सागर ,मुनि श्री परमेष्ठि सागर,मुनि श्री महोत्सव सागर ,मुनि श्री उपहार सागर ,मुनि श्री शीतल सागर आर्यिका श्री प्रेरणा मति,आर्यिका श्री पुण्य मति,आर्यिका श्री पूर्णिमा मति,आर्यिका श्री विमल मति एवम क्षुल्लक श्री पुर्ण सागर जी इस धरा के रत्न हैं। मेहता परिवार के सबसे बड़े भाई कांतिलाल जी के पुत्र विकास भैया भी वर्षो से मुनि श्री के साथ संघस्थ होकर वैराग्य पथ पर अग्रसर हैं।नगर के श्वेतांबर समाज के भी अनेक भव्य आत्माओं ने दीक्षा ली हैं। बाल ब्रह्मचारिणी वीणा दीदी बिगुल अनुसार मुनि श्री ने 37 वर्ष के संयमी जीवन में दीक्षा गुरु आचार्य श्री अजित सागर जी के साथ 4 चातुर्मास दीक्षा गुरुदेव की समाधि के बाद आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के साथ 10 वर्षायोग किए धर्म प्रभावना हेतु पृथक विहार भारत देश के राजस्थान में 13,महाराष्ट्र में 7,कर्नाटक में 4,झारखंड में 6 ,बिहार में 2, असम में 4, मध्य प्रदेश में 1 कुल 37 वर्षायोग में सिद्ध क्षेत्र में 6,अतिशय क्षेत्र में 3, सहित अनेक नगरों में किए।
सल्लेखना समाधि
दीक्षा गुरु श्री अजित सागर जी मुनि श्री हित सागर जी सहित अनेक मुनियों,आर्यिका माताजी एवम 20 से अधिक शिष्यों सहित कुशल सल्लेखना समाधि 40 से अधिक करवाई है पंच कल्याणक प्रतिष्ठा संघ सानिध्य में पाषाण को भगवान बनाने का अनुष्ठान थांदला दिगंबर जैन समाज के निवेदन पर मुनि श्री हित सागर जी मुनि श्री पुण्य सागर जी मुनि श्री चिन्मय सागर जी आर्यिका श्री शीतलमती आर्यिका श्री सौरभ मति,आर्यिका श्री प्रेरणा मति संघ सानिध्य में 9 मई से 14 मई 2005 में श्री आदिनाथ ,श्री चन्द्र प्रभु तथा श्री शांति नाथ भगवान सहित अनेक प्रतिमाओं का पंच कल्याणक संपन्न हुआ। आपने देश के अनेक राज्यों महानगरों में पंच कल्याणक करवाए।
दीक्षाए आपने अभी तक 11 मुनि,27 आर्यिका ,3 क्षुल्लक तथा 5 क्षुल्लिका कुल 46 दीक्षाए दी ।
स्कूल के सहपाठी मित्र मुनि श्री की दीक्षा के पूर्व श्री हंसमुख जी मेहता ने लौकिक शिक्षा थांदला में प्राप्त की स्कूल के सहपाठी पारस,ऋषभ, भरत बैरागी,विजय, भरत भंडारी,नाथूलाल, अनूप आदि मित्र अपने साथी के मुनि अवस्था में नगर आगमन से बहुत उत्साहित होकर गर्व के साथ स्कूल समय के संस्मरण साझा कर रहे हैं। स्कूल के तत्कालीन अध्यापक भी अपने लौकिक शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति से गौरवान्वित है ।
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