झाबुआ -एक ओर जहां मध्य प्रदेश सहित पुरे जिले में भीषण गर्मी का दौर चल रहा है, जिले में भीषण गर्मी के कारण तापमान भी करीब 43 डिग्री के आसपास है ऊपर से यह बिजली कटौती आमजन को परेशान कर रही है वहीं लोकसभा चुनाव सिर पर है। इसी बीच शहरी व ग्रामीण इलाकों में कई बार अघोषित बिजली कटौती की जा रही है। कभी रखरखाव (मेंटेनेंस) के नाम पर तो कभी खराब मौसम के नाम पर, तो कभी आगे से तकलीफ है कहकर बिजली गुल हो जाती है। जो बाद में अपने हिसाब से वापस आती है। फोन लगाने पर बिजली अफसरो द्वारा संतोषजनक जवाब नही दिए जाते। इस कारण आम आदमी का गुस्सा तो बढ़ ही रहा है। कई बिजली अधिकारियों पर भी इस कटौती की गाज गिर चुकी है वहीं विपक्षी दल भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने से नही चूक रहे है। विगत पिछले कुछ माह में मेंटेनेंस के नाम पर अघोषित कटौती भी की गई है तो फिर वर्तमान मेंटेनेंस के नाम पर कटौती क्यों ? एक तरफ तो भीषण गर्मी दूसरी तरफ अघोषित कटौती जिससे आमजन तो परेशान हो ही रहा है साथ ही साथ बिजली आधारित व्यापार भी प्रभावित हो रहे हैं लेकिन बिजली विभाग का इस और ध्यान नहीं है | इस बात में कोई शक नही है कि प्रदेश में भाजपा के शासनकाल के दौरान बिजली गुल होने की समस्या खत्म हो गई थी और ये संयोग (या अधिकारी जानबूझकर कर रहे?) ही है कि मप्र में कांग्रेस की सरकार आने के बाद बिजली की आवाजाही (अघोषित कटौती) फिर शुरू हो गई है। जिसने विपक्षियों को बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि प्रदेश सरकार का कहना है कि मप्र में बिजली सरप्लस है। ऐसे में जब हमारे यहां सरप्लस बिजली है तो फिर क्यों इसकी आंखमिचौली हो रही है? जिलें के कांग्रेस के जनप्रतिनिधि से लेकर संगठन के लोग बिजली अफसरों से क्यो इस बारे में जवाब तलब नहीं कर रहे? ऐसे हालात केवल ग्रामीण या कस्बाई इलाकों में ही नही बल्कि जिला मुख्यालय में भी देखने मे आ रहे है। ऐसे में यदि इसे सरकार में बैठे लोगों ने गम्भीरता से नही लिया तो लोकसभा चुनाव में इसका गुस्सा मौजूदा सरकार के लिए भारी पड़ सकता है | कहीं यह बार-बार अघोषित बिजली कटौती लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बत्ती ना गुल कर दे |